कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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"बस, यही समझने वाली बात है। नेता बनने के बाद तुमको समस्याओं को ऐसे ही सुलझाना है। गर्म कॉफ़ी नई समस्या, ठंडी सॉफ़्ट ड्रिंक पुरानी समस्या... दोनों को ऐसे ही छोड़ दो... कुछ बोलो ही मत... सब कुछ अपने आप ही नॉर्मल हो जाएगा... बहुत समय से बड़े-बड़े मंत्री भी इसी तरीक़े को अपना रहे हैं।... सुपर हिट पॉलिसी है ये... पार्लियामेन्ट में यही पॉलिसी अच्छी रहती है। हमारे बहुत से नेता हर एक समस्या का समाधान इसी तरह करते हैं।" | "बस, यही समझने वाली बात है। नेता बनने के बाद तुमको समस्याओं को ऐसे ही सुलझाना है। गर्म कॉफ़ी नई समस्या, ठंडी सॉफ़्ट ड्रिंक पुरानी समस्या... दोनों को ऐसे ही छोड़ दो... कुछ बोलो ही मत... सब कुछ अपने आप ही नॉर्मल हो जाएगा... बहुत समय से बड़े-बड़े मंत्री भी इसी तरीक़े को अपना रहे हैं।... सुपर हिट पॉलिसी है ये... पार्लियामेन्ट में यही पॉलिसी अच्छी रहती है। हमारे बहुत से नेता हर एक समस्या का समाधान इसी तरह करते हैं।" | ||
इनकी बात-चीत को छोड़कर चलिए कॉफ़ी हाउस से वापस चलें- | इनकी बात-चीत को छोड़कर चलिए कॉफ़ी हाउस से वापस चलें- | ||
दुनिया | दुनिया में भाषण देने के और विभिन्न सदनों में बोलने के तमाम कीर्तिमान हैं। क्यूबा (कुबा) के पूर्व शासक फ़िदेल कास्रो का संयुक्त राष्ट्र संघ में 4 घंटे 29 मिनट लगातार भाषण देने का कीर्तिमान है, जो गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। कास्त्रो का एक कीर्तिमान क्यूबा की राजधानी हवाना में 7 घंटे 10 मिनट का भी है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी। 300 शब्द प्रति मिनट की गति से भाषण दे पाना बहुत ही कम लोगों के वश में है, कॅनेडी ने इस वक्तव्य में कभी-कभी 350 शब्द तक की गति भी छू ली थी। | ||
कैसे बोल लेते हैं लोग इतने देर तक, इतनी तेज़ गति से और इतना प्रभावशाली ? सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनिया में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। | कैसे बोल लेते हैं लोग इतने देर तक, इतनी तेज़ गति से और इतना प्रभावशाली ? सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनिया में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। | ||
भारतीय संसद में अनेक प्रभावशाली संबोधन होते रहे हैं। एक समय में संसद में प्रकाशवीर शास्त्री धारा-प्रवाह बोला करते थे। संसद से बाहर (संसद बनी भी नहीं थी तब तक) [[लोकमान्य तिलक]], [[सुभाष चंद्र बोस]], [[स्वामी विवेकानंद]] जैसे कितने ही नाम हैं जो | भारतीय संसद में अनेक प्रभावशाली संबोधन होते रहे हैं। एक समय में संसद में प्रकाशवीर शास्त्री धारा-प्रवाह बोला करते थे। संसद से बाहर (संसद बनी भी नहीं थी तब तक) [[लोकमान्य तिलक]], [[सुभाष चंद्र बोस]], [[स्वामी विवेकानंद]] जैसे कितने ही नाम हैं जो महान् वक्ताओं की श्रेणी में आते हैं। आजकल प्रभावी वक्ताओं की संख्या में कमी आ गई है। क्या लगता है कि उनके पास बोलने को कुछ नहीं है या फिर सुनने वाले उकता गए हैं ? [[अटल बिहारी वाजपेयी]] और [[सोमनाथ चटर्जी]] के बाद कौन सा ऐसा नाम है जिसे हम संसद के प्रभावशाली सदस्य के रूप में याद रखेंगे ?</poem> {{दाँयाबक्सा|पाठ=अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी।|विचारक=}} | ||
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स्वामी विवेकानंद का एक संस्मरण देखिए- | स्वामी विवेकानंद का एक संस्मरण देखिए- | ||
स्वामी विवेकानंद एक सभा में 'शब्द' की महिमा बता रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा- | स्वामी विवेकानंद एक सभा में 'शब्द' की महिमा बता रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा- | ||
"शब्द का कोई मूल्य नहीं कोई महत्व नहीं है और आप शब्द को सबसे | "शब्द का कोई मूल्य नहीं कोई महत्व नहीं है और आप शब्द को सबसे महत्त्वपूर्ण बता रहे हैं... जबकि ध्यान की तुलना में शब्द कुछ भी नहीं है" | ||
विवेकानंद ने कहा- | विवेकानंद ने कहा- | ||
"बैठ जा मूर्ख, खड़ा क्यों हो गया।" | "बैठ जा मूर्ख, खड़ा क्यों हो गया।" |
Latest revision as of 11:46, 3 August 2017
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी "हम नेता बनना चाहते हैं।" छोटे पहलवान ने अपनी पहचान वाले एक नेता जी से सकुचाने का हास्यास्पद उपक्रम करते हुए कहा।
अगर इतनी लम्बी लिस्ट में से, कुछ भी ऐसा नहीं है, जो कि आप कर सकते हों तो आप नेता नहीं बन सकते।"
स्वामी विवेकानंद का एक संस्मरण देखिए- |
टीका टिप्पणी और संदर्भ