तामस मनु: Difference between revisions
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- तामस मनु श्वेतवाराह कल्प के मनु थे।
- ब्रह्मा जी के एक दिन को कल्प कहते है एक कल्प में 14 मनु होते है उन्हीं में से तामस मनु चतुर्थ मनु है।
जन्म की कथा
स्वराष्ट्र नामक विख्यात राजा के मंत्री के तप से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने राजा को बहुत लम्बी आयु प्रदान की। राजा की सौ रानियाँ थीं। राजा की सभी रानियाँ सेवकों, सेनापतियों और मंत्रियों सहित स्वर्ग सिधार गयीं। राजा की लम्बी आयु अभी शेष थी। राजा को दुखी और क्षीण देखकर राजा विमर्द ने उसे युद्ध में परास्त कर उसका राज्य ग्रहण कर लिया। राजा वितस्ता (झेलम) के तट पर प्रकृति का कोप सहता हुआ तपस्या करने लगा। एक दिन राजा बाढ़ में वह बह गया। बहते हुए उसने एक मृगी की पूँछ पकड़ ली। तट पर लगकर कीचड़ पार करने तक भी वह उसकी पूँछ पकड़े रहा। मृगी ने उसके काम-विमोहित भाव को पहचानकर मानव वाणी में उससे कहा, "मैं आपकी पटरानी उत्पलावती थी। बचपन में काम-क्रीड़ारत एक मृग युगल को विलग कर देने के कारण मृग ने मुझे इस जीवन में मृगी बनकर अपने पुत्र का वहन करने का शाप दिया था। मृगी के प्रेम के कारण उसने मृग का रूप धारण कर रखा था। वास्तव में वह मुनिपुत्र था। मेरे अनुनय-विनय पर उसने मुझे पुत्र जन्म के पश्चात शापमुक्त होकर उत्तम लोक प्राप्त करने का वर दिया था। उसने यह भी कहा था कि वह वीर पुत्र यशस्वी मनु होगा।" मृगी ने पुत्र जन्म के उपरान्त उत्तम लोक प्राप्त किये। राजा ने उसका पालन किया। तामसी योनि में पड़ी हुई माता के जन्म लेने के कारण उसका नाम तामस रखा गया। उसने अपने पिता (राजा) के समस्त शत्रुओं का दमन किया तथा अनेक यज्ञ किये। वही चौथा मनु था।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ (पुस्तक 'भारतीय मिथक कोश') पृष्ठ संख्या-119