वामदेव: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 26: Line 26:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{ॠषि-मुनि2}}{{ॠषि-मुनि}}
{{ॠषि-मुनि2}}{{ॠषि-मुनि}}
[[Category:ॠषि मुनि]]
[[Category:ऋषि मुनि]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Revision as of 11:00, 2 August 2011

चित्र:Disamb2.jpg वामदेव एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- वामदेव (बहुविकल्पी)

वामदेव गौतम ऋषि के पुत्र थे तथा वामदेव को गौतम भी कहा जाता है।

जन्म

वामदेव जब माँ के गर्भ में थे तभी से उन्हें अपने पूर्वजन्म आदि का ज्ञान हो गया था। उन्होंने सोचा, माँ की योनि से तो सभी जन्म लेते हैं और यह कष्टकर है, अत: माँ का पेट फाड़ कर बाहर निकलना चाहिए। वामदेव की माँ को इसका आभास हो गया। अत: उसने अपने जीवन को संकट में पड़ा जानकर देवी अदिति से रक्षा की कामना की। अदिति और इंद्र ने प्रकट होकर गर्भ में स्थित वामदेव को बहुत समझाया, किंतु वामदेव नहीं माने और वामदेव ने इंद्र से कहा, "इंद्र! मैं जानता हूँ कि पूर्वजन्म में मैं ही मनु तथा सूर्य रहा हूँ। मैं ही ऋषि कक्षीवत (कक्षीवान) था। कवि उशना भी मैं ही था। मैं जन्मत्रयी को भी जानता हूँ। वामदेव कहने लगे जीव का प्रथम जन्म तब होता है, जब पिता के शुक कीट माँ के शोणिक द्रव्य से मिलते है। दूसरा जन्म योनि से बाहर निकलकर है, और तीसरा जन्म मृत्युपरांत पुनर्जन्म है। यही प्राणी का अमरत्व भी है।" वामदेव ने इंद्र को अपने समस्त ज्ञान का परिचय देकर योग से श्येन पक्षी का रुप धारण किया तथा अपनी माता के उदय से बाहर निकल आये।

युद्ध

इंद्र ने युद्ध के लिए वामदेव को ललकारा इंद्र वामदेव के सम्मुख परास्त हो गये। इंद्र के परास्त होने के बाद सभी देवताओं की एक बैठक में वामदेव ने कहा, कि यदि कोई इंद्र को लेना चाहता है तो उसे मुझे दस दुधारु गाय देनी होगी तथा वामदेव ने यह शर्त भी रखी कि यदि इंद्र उसके शत्रुओं का नाश कर देगा तो वामदेव उन गायों को लौटा देंगे। वामदेव की इस बात से इंद्र क्रोध से तमतमा रहे थे तदुपरांत वामदेव ने इंद्र की स्तुति करके उन्हें शांत कर दिया।

संकट

वामदेव पर दरिद्रता देवी ने कृपा की। इसी कारण वामदेव के सभी मित्रों ने वामदेव से मुँह मोड़ लिया-कष्ट चारों ओर से घिर आये। वामदेव के तप, व्रत ने भी उनकी कोई सहायता नहीं की। वामदेव के आश्रम के सभी पेड़-पौधे फलविहीन हो गये। वामदेव ऋषि की पत्नी पर वृद्धावस्था और जर्जरता का प्रकोप हुआ। पत्नी के अतिरिक्त सभी ने वामदेव ऋषि का साथ छोड़ दिया था, किंतु ऋषि शांत और अडिग थे। वामदेव ऋषि के पास खाने के लिए और कुछ भी नहीं था तभी एक दिन वामदेव ने यज्ञ-कुंड की अग्नि में कुत्ते की आंते पकानी आरंभ कीं। तभी वामदेव को एक सूखे ठूंठ पर एक श्येन पक्षी बैठा दिखायी दिया, उसने पूछा "वामदेव जहाँ तुम हवि अर्पित करते थे, वहाँ कुत्ते की आंतें पका रहे हो-यह कौन सा धर्म है?" ऋषि ने कहाँ, "यह आपद धर्म है। चाहो तो तुम्हें भी इसी से तुष्ट कर सकता हूँ। वामदेव ने कहा मैंने अपने समस्त कर्म भी क्षुधा को अर्पित कर दिये हैं। आज जब सबसे उपेक्षित हूँ, तो हे पक्षी, तुम्हारा कृतज्ञ हूँ कि तुमने करुणा प्रदर्शित की।" श्येन पक्षी वामदेव की करुण स्थिति को देखकर द्रवित हो उठा। इंद्र ने श्येन का रुप त्याग अपना स्वाभविक रुप धारण किया तथा वामदेव को मधुर रस अर्पित किया। वामदेव का कंठ कृतज्ञता से अवरुद्ध हो गया।

शिव पुराण के अनुसार

वामदेव नामक योगी शिव जी के भक्त थे। उन्होंने अपने समस्त शरीर पर भस्म धारण कर रखी थी। एक बार एक व्यभिचारी पापी ब्रह्मराक्षस उन्हें खाने के लिए उनके पास पहुँचा। उसने ज्यों ही वामदेव को पकड़ा, उसके शरीर से वामदेव के शरीर की भस्म लग गयी, अत: भस्म लग जाने से उसके पापों का शमन हो गया तथा उसे शिवलोक की प्राप्ति हो गयी। वामदेव के पूछने पर ब्रह्मराक्षस ने बताया कि वह पच्चीस जन्म पूर्व दुर्जन नामक राजा था, अनाचारों के कारण मरने के बाद वह रूधिर कूप मे डाल दिया गया। फिर चौबीस बार जन्म लेने के उपरांत वह ब्रह्मराक्षस बना।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख