भारत का नामकरण: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
कात्या सिंह (talk | contribs) m (भारतवर्ष का नामकरण का नाम बदलकर भारत का नामकरण कर दिया गया है) |
(No difference)
|
Revision as of 05:23, 18 August 2011
पं. जवाहरलाल नेहरू ने संस्कृति के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए कहा है कि, ‘संस्कृति का अर्थ मनुष्य का आन्तरिक विकास और उसकी नैतिक उन्नति है, पारम्परिक सदव्यवहार है और एक-दूसरे को समझने की शक्ति है।’ वस्तुत: संस्कृति से आशय मानव की मानसिक, नैतिक, भौतिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं कलात्मक जीवन की समस्त उपलब्धियों की समग्रता से है।
भारतवर्ष का नामकरण
- भारतवर्ष का नामकरण के विषय में ऐसा कहा जाता है कि दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा है।
- कुछ विद्वानों का मत है कि ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र का नाम भरत था, और उन्हीं के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है।
- ईरानियों ने इस देश को हिन्दुस्तान कहकर सम्बोधित किया है और यूनानियों ने इसे इण्डिया कहा है।
- प्राचीन साहित्य में भारतवर्ष को ‘भारतभूमि’ की संज्ञा दी गई है। इसे जम्बूद्वीप का एक भाग माना गया है।
- भारत को ‘चतु: संस्थान संस्थितम्’ कहा गया है।
- हिन्दू शब्द भी महान सिन्धु नदी से निकला है। सिन्धु प्रदेश प्राचीनतम सभ्यता का विकास स्थल रह चुका है।
प्राचीन उल्लेख
- भारत के प्राचीन साहित्य में भारत को पाँच भागों में बाँटे होने का उल्लेख मिलता है। सिन्धु और गंगा के मध्य में मध्य प्रदेश था।
- ब्राह्मण ग्रन्थों के अनुसार यह भू-भाग सरस्वती नदी से प्रयाग, काशी तक और बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार राजमहल तक फैला हुआ था। इसी क्षेत्र का पश्चिमी भाग 'ब्रह्मऋषि देश' कहलाता है।
- पतंजलि ने इस समस्त भू-भाग को 'आर्यावर्त' कहा है।
- स्मृतिग्रन्थों में आर्यावर्त हिमालय और विन्ध्य पर्वत के बीच बताया गया है।
- प्राचीन ग्रन्थों के अनुसार 'मध्यदेश' के उत्तर में ‘उत्तरापथ’ (उदीच्य), पश्चिम में ‘अपरान्त’ (प्रतीच्य), दक्षिण में ‘दक्षिणापथ’ (दक्खिन) और पूरब में ‘प्राच्यदेश’ (प्राची) थे।
- भारतवर्ष के नौ भेद ‘मत्स्य पुराण’ में इस प्रकार से बताये गये हैं - इन्द्रद्वीप, कसेरू, ताम्रपर्णी, गभस्तिमान्, नागद्वीप, सौम्य, गन्धर्व, वारूण और सागर।
- व्यापार और संस्कृति के प्रसार से भारत के लोग जहाँ पर भी गए, वहाँ वह लोग उसे भारत ही समझने लगे। परन्तु वह सब भारत का हिस्सा नहीं था।
- भौगोलिक दृष्टिकोण से कश्मीर से लंका की सीमा तक और कश्मीर से असम तक ही भारत का सही भू-भाग था, जिसका प्रमाण हमें अपने ग्रन्थों से मिलता है।
- शंकराचार्य ने अपने चार पीठों को बदरी - केदार[1], द्वारिका, पुरी और श्रृंगेरी (मैसूर) में स्थापित किया था।
- भारतीयता
- प्रान्तीय तथा स्थानीय विशेषताओं के बावजूद स्थापत्यकला, चित्रकला, संगीत, रंगमंच आदि में भारतीयता की झलक मिलती है। साहित्य, कला और चिन्तन के क्षेत्र में भी विचित्र साम्य देखने को मिलता है। संस्कृत को भारतीय एकता का सबसे बड़ा प्रमाण माना जा सकता है। भारत की सांस्कृतिक सम्पत्ति इसी भाषा में संरक्षित है। सुदूर दक्षिण में तमिलदेश या तमिलकम् था। आधुनिक इस देश का नाम भारत है।
वृहत्तर भारत
आधुनिक अनुसंधानों ने इस बात को सिद्ध कर दिया है कि प्राचीनकाल के भारतवासी केवल अपने देश की भौगोलिक सीमाओं तक ही सीमित नहीं थे, वरन् उन्हें विदेशों का भी ज्ञान था, जहाँ पर उन्होंने अपने व्यापारिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक केन्द्रों की स्थापना की थी। यह भी सिद्ध हो चुका है कि समस्त एशिया को सभ्य बनाने का मुख्य श्रेय भारत व चीन को जाता है। वृहत्तर भारत के अन्तर्गत यह समस्त भू-भाग आता है। जहाँ पर भी भारतीय पहुँचे और उन्होंने अपने उपनिवेशों की स्थापना की तथा वहाँ से सांस्कृतिक व व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित किये। वृहत्तर भारत से तात्पर्य भारत से बाहर उस विस्तृत भूखण्ड से है, जहाँ पर भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार हुआ तथा जिसमें भारतीयों ने अपने उपनिवेशों की स्थापना की।
|
|
|
|
|