ताराशंकर बंद्योपाध्याय: Difference between revisions
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==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
ताराशंकर बंद्योपाध्याय का जन्म [[23 जुलाई]], [[1898]] को [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के [[वीरभूम पश्चिम बंगाल|वीरभूमि]] के लाभपुर में हुआ था। ताराशंकर अपने समय के बंगला उपन्यासकारों में सबसे अधिक प्रसिद्ध रहे हैं। उनके उपन्यास 'आरोग्य निकेतन' और 'गणदेवता' को पुरस्कृत किया जा चुका था। 'आरोग्य निकेतन' पर [[1956]] में [[साहित्य अकादमी]] की ओर से तथा 'गणदेवता' पर 1967 में [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] प्राप्त हुए थे। उनकी विशेषता यह थी कि वे प्रादेशिक जीवन को व्यापक रूप में चित्रित करते रहे। इस काम में उन्हें अच्छी सफलता भी प्राप्त हुई। संभवत: उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण भी यही था। प्रादेशीय जीवन का चित्रण करते समय ऐसा प्रतीत होता है कि किसी फोटोग्राफर ने चित्र उतारकर रख दिया है। ताराशंकर जी की कहानी 'जलसाघर' पर [[सत्यजीत रे]] ने फिल्म भी बनाई थी।<ref>पुस्तक- भारतीय चरित कोश | लेखक- लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | पृष्ठ संख्या- 357</ref> | ताराशंकर बंद्योपाध्याय का जन्म [[23 जुलाई]], [[1898]] को [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के [[वीरभूम पश्चिम बंगाल|वीरभूमि]] के लाभपुर में हुआ था। ताराशंकर अपने समय के बंगला उपन्यासकारों में सबसे अधिक प्रसिद्ध रहे हैं। उनके उपन्यास 'आरोग्य निकेतन' और 'गणदेवता' को पुरस्कृत किया जा चुका था। 'आरोग्य निकेतन' पर [[1956]] में [[साहित्य अकादमी]] की ओर से तथा 'गणदेवता' पर 1967 में [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] प्राप्त हुए थे। उनकी विशेषता यह थी कि वे प्रादेशिक जीवन को व्यापक रूप में चित्रित करते रहे। इस काम में उन्हें अच्छी सफलता भी प्राप्त हुई। संभवत: उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण भी यही था। प्रादेशीय जीवन का चित्रण करते समय ऐसा प्रतीत होता है कि किसी फोटोग्राफर ने चित्र उतारकर रख दिया है। ताराशंकर जी की कहानी 'जलसाघर' पर [[सत्यजीत रे]] ने फिल्म भी बनाई थी।<ref>पुस्तक- भारतीय चरित कोश | लेखक- लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | पृष्ठ संख्या- 357</ref> |
Revision as of 08:05, 20 July 2014
ताराशंकर बंद्योपाध्याय
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पूरा नाम | ताराशंकर बंद्योपाध्याय |
अन्य नाम | ताराशंकर बनर्जी |
जन्म | 23 जुलाई, 1898 |
जन्म भूमि | लाभपुर, वीरभूमि, बंगाल |
मृत्यु | 14 सितम्बर 1971 |
मृत्यु स्थान | कलकत्ता (अब कोलकाता, पश्चिम बंगाल |
कर्म-क्षेत्र | उपन्यासकार, कहानीकार |
मुख्य रचनाएँ | 'आरोग्य निकेतन', 'गणदेवता', चैताली घुरनी, चंपादनगर बोउ, निशिपोद्दो आदि |
भाषा | बांग्ला |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, पद्म भूषण |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | ताराशंकर जी की कहानी 'जलसाघर' पर सत्यजीत रे ने फिल्म भी बनाई थी। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
ताराशंकर बंद्योपाध्याय (अंग्रेज़ी: Tarasankar Bandyopadhyay, जन्म: 23 जुलाई, 1898 - मृत्यु: 14 सितम्बर, 1971) एक बांग्ला भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। इन्हें इनके प्रसिद्ध उपन्यास 'गणदेवता' के लिए 1966 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। ताराशंकर बंद्योपाध्याय को साहित्य एवं शिक्षा क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1969 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। ये पश्चिम बंगाल से हैं।
जीवन परिचय
ताराशंकर बंद्योपाध्याय का जन्म 23 जुलाई, 1898 को बंगाल के वीरभूमि के लाभपुर में हुआ था। ताराशंकर अपने समय के बंगला उपन्यासकारों में सबसे अधिक प्रसिद्ध रहे हैं। उनके उपन्यास 'आरोग्य निकेतन' और 'गणदेवता' को पुरस्कृत किया जा चुका था। 'आरोग्य निकेतन' पर 1956 में साहित्य अकादमी की ओर से तथा 'गणदेवता' पर 1967 में ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुए थे। उनकी विशेषता यह थी कि वे प्रादेशिक जीवन को व्यापक रूप में चित्रित करते रहे। इस काम में उन्हें अच्छी सफलता भी प्राप्त हुई। संभवत: उनकी लोकप्रियता का सबसे बड़ा कारण भी यही था। प्रादेशीय जीवन का चित्रण करते समय ऐसा प्रतीत होता है कि किसी फोटोग्राफर ने चित्र उतारकर रख दिया है। ताराशंकर जी की कहानी 'जलसाघर' पर सत्यजीत रे ने फिल्म भी बनाई थी।[1]
सम्मान और पुरस्कार
- 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार
- 1966 में ज्ञानपीठ पुरस्कार
- 1969 में पद्म भूषण
निधन
ताराशंकर बंद्योपाध्याय का निधन अपने गृह राज्य पश्चिम बंगाल के कलकत्ता (अब कोलकाता) में 14 सितम्बर 1971 को हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- भारतीय चरित कोश | लेखक- लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' | पृष्ठ संख्या- 357
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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