कंडाल: Difference between revisions

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एक बाजा जो पीतल की नली का बनता है और मुँह से लगाकर बजाया जाता है। नरसिंहा। तूरही। तूरी।
एक बाजा जो पीतल की नली का बनता है और मुँह से लगाकर बजाया जाता है। नरसिंहा। तूरही। तूरी।
'''कंडाल''' - [[संज्ञा]] [[पुल्लिंग]] ([[हिन्दी]] कंड = मूँज)
जोलाहों का एक कैंचीनुमा औजार, जिस पर ताना फैलाकर पाई करते हैं।
'''विशेष'''- यह दो सरकंडों का बनता है। दो बराबर बराबर सरकंडों को एक साथ रखकर बीच में बाँध देते हैं। फिर उनको आड़े कर आमने सामने के भागों को पतली रस्सी से तानते और ऊपर के सिरों पर तागा बांधकर नीचे के सिरों को जमीन में गाड़ देते हैं। इस तरह कई एक को दूर दूर पर गाड़कर उनके सिरे पर बँधे तागों पर ताना फैलाते हैं।


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Latest revision as of 07:45, 21 October 2021

कंडाल - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कण्डोल)[1]

लोहे और पीतल आदि की चद्दर का बना हुआ कूपाकार एक गहरा बर्तन जिसका मुँह गोल और चौड़ा होता है। इसमें जल रखा जाता है।


कंडाल - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत करनाल; फ़ारसी करनाय)

एक बाजा जो पीतल की नली का बनता है और मुँह से लगाकर बजाया जाता है। नरसिंहा। तूरही। तूरी।


कंडाल - संज्ञा पुल्लिंग (हिन्दी कंड = मूँज)

जोलाहों का एक कैंचीनुमा औजार, जिस पर ताना फैलाकर पाई करते हैं।

विशेष- यह दो सरकंडों का बनता है। दो बराबर बराबर सरकंडों को एक साथ रखकर बीच में बाँध देते हैं। फिर उनको आड़े कर आमने सामने के भागों को पतली रस्सी से तानते और ऊपर के सिरों पर तागा बांधकर नीचे के सिरों को जमीन में गाड़ देते हैं। इस तरह कई एक को दूर दूर पर गाड़कर उनके सिरे पर बँधे तागों पर ताना फैलाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 723 |

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