न्यायलीलावती: Difference between revisions

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==वल्लभाचार्य रचित न्यायलीलावती==
'''वल्लभाचार्य रचित न्यायलीलावती'''
 
*न्यायलीलावती वल्लभाचार्य (1175 ई.) कृत एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। इसमें वैशेषिक मितमाषिणी; विजयनगर ग्रन्थमाला सं. 6 में प्रकाशित, पदार्थचन्द्रिका; कलकत्ता से.सी.नं. 8 में प्रकाशित,शिशुबोधिनी; क.सं.सी.सं. 8 में प्रकाशित के सिद्धान्तों का बड़ी प्रौढ़िता के साथ निरूपण किया गया है।  
*न्यायलीलावती वल्लभाचार्य (1175 ई.) कृत एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। इसमें वैशेषिक मितमाषिणी; विजयनगर ग्रन्थमाला सं. 6 में प्रकाशित, पदार्थचन्द्रिका; कलकत्ता से.सी.नं. 8 में प्रकाशित,शिशुबोधिनी; क.सं.सी.सं. 8 में प्रकाशित के सिद्धान्तों का बड़ी प्रौढ़िता के साथ निरूपण किया गया है।  
*इसमें विभाग, वैधर्म्य, साधर्म्य और प्रक्रिया नामक चार परिच्छेद हैं, जिनको सत्ताईस प्रकरणों में विभक्त किया गया है। उद्देश, लक्षण और परीक्षा नामक तीन शास्त्रप्रवृत्तियों में से इसमें परीक्षा नामक प्रवृत्ति के विश्लेषण पर अधिक बल दिया गया है। प्रत्येक विषय पर विचार के अन्त में सम्बन्धित प्रकरण का सार पद्यबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है।  
*इसमें विभाग, वैधर्म्य, साधर्म्य और प्रक्रिया नामक चार परिच्छेद हैं, जिनको सत्ताईस प्रकरणों में विभक्त किया गया है। उद्देश, लक्षण और परीक्षा नामक तीन शास्त्रप्रवृत्तियों में से इसमें परीक्षा नामक प्रवृत्ति के विश्लेषण पर अधिक बल दिया गया है। प्रत्येक विषय पर विचार के अन्त में सम्बन्धित प्रकरण का सार पद्यबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है।  

Revision as of 10:00, 22 April 2010

वल्लभाचार्य रचित न्यायलीलावती

  • न्यायलीलावती वल्लभाचार्य (1175 ई.) कृत एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। इसमें वैशेषिक मितमाषिणी; विजयनगर ग्रन्थमाला सं. 6 में प्रकाशित, पदार्थचन्द्रिका; कलकत्ता से.सी.नं. 8 में प्रकाशित,शिशुबोधिनी; क.सं.सी.सं. 8 में प्रकाशित के सिद्धान्तों का बड़ी प्रौढ़िता के साथ निरूपण किया गया है।
  • इसमें विभाग, वैधर्म्य, साधर्म्य और प्रक्रिया नामक चार परिच्छेद हैं, जिनको सत्ताईस प्रकरणों में विभक्त किया गया है। उद्देश, लक्षण और परीक्षा नामक तीन शास्त्रप्रवृत्तियों में से इसमें परीक्षा नामक प्रवृत्ति के विश्लेषण पर अधिक बल दिया गया है। प्रत्येक विषय पर विचार के अन्त में सम्बन्धित प्रकरण का सार पद्यबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  • विद्याभूषण प्रभृति विद्वानों का यह मत है कि न्यायलीलावतीकार वल्लभाचार्य और शुद्धादैत मत के प्रवर्तक वल्लभाचार्य दो विभिन्न व्यक्ति थे।
  • गंगेश की तत्त्वचिन्तामणि में हेतुद्वय का खण्डन किया गया है। अत: न्यायलीलावती और तत्त्वचिन्तामणि में पूर्वापरता दिखाई देती है।
  • गंगेशोपाध्याय के पुत्र बर्धमानोपाध्याय ने न्यायलीलावती पर प्रकाश नाम की व्याख्या लिखी, अत: यह स्पष्ट है कि न्यायलीलावती का न्याय और वैशेषिक दोनों दर्शनों के पूर्वाचार्यों ने भी बड़ा महत्त्व माना है।
  • वल्लभाचार्य ने छ: ही पदार्थ माने तथा अभाव, तमस्, ज्ञातता, सादृश्य आदि के पदार्थत्व का खण्डन किया।
  • न्यायलीलावती में उदयनाचार्य, भासर्वज्ञ, श्रीधर तथा कुमारिल भट्ट आदि के मतों का खण्डन किया गया है। इस ग्रन्थ में आचार्य वाचस्पति मिश्र, धर्मकीर्ति, व्योमशिवाचार्य, चरकाचार्य आदि आचार्य का तथा कर्नाटक, काश्मीर, वाराणसी आदि नगरों का भी उल्लेख है।
  • श्रीवल्लभ ने ईश्वरसिद्धि नामक एक अन्य ग्रन्थ की भी रचना की थी, किन्तु वह अब उपलब्ध नहीं है।
  • वल्लभाचार्य ने उदयनाचार्य (10 शती) का उल्लेख किया और चित्सुखाचार्य (1200 ई.) तथा वादीन्द्र 1225 ई. ने वल्लभाचार्य का उल्लेख किया। अत: श्रीवल्लभाचार्य का समय बारहवीं शती का पूर्वार्द्ध सिद्ध होता है।
  • न्यायलीलावती पर आचार्यों ने अनेक टीकाएँ लिखीं, उनमें से कुछ के नाम निम्नलिखित हैं—
  1. न्यायलीलावतीप्रकाश - वर्धमान उपाध्याय
  2. न्यायलीलावतीविवेक - पक्षधर मिश्र
  3. न्यायलीलावतीकण्ठाभरण - शंकर मिश्र
  4. न्यायलीलावतीवर्धमानेन्दु - वाचस्पति मिश्र द्वितीय
  5. न्यायलीलावतीविभूति - रधुनाथ शिरोमणि
  6. न्यायलीलावतीप्रकाश - रामकृष्ण भट्टाचार्य
  7. न्यायलीलावतीरहस्यफक्किका - मथुरानाथ तर्कवागीश
  8. न्यायलीलावतीदर्पण - वटेश्वरोपाध्याय
  • न्यायलीलावती की टीकाओं में से न्यायलीलावतीविवेक (पक्षधर मिश्र) और न्यायलीलावतीरहस्य (मथुरानाथ) अभी अमुद्रित हैं। इनकी पाण्डुलिपियाँ लन्दन पुस्तकालय में उपलब्ध हैं।

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