मास: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "राजनैतिक" to "राजनीतिक") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
Line 32: | Line 32: | ||
*राजनीतिक 'कार्यों में सौर मास का उपयोग होना चाहिये; क्योंकि उसमें तिथियों के घटने-बढ़ने की बात न होने से हिसाब ही ठीक रखा जा सकता है। | *राजनीतिक 'कार्यों में सौर मास का उपयोग होना चाहिये; क्योंकि उसमें तिथियों के घटने-बढ़ने की बात न होने से हिसाब ही ठीक रखा जा सकता है। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= |
Revision as of 13:19, 10 January 2011
वर्ष गणना के जैसे कई भेद हैं, वैसे ही मास गणना के भी चार भेद हैं-
इनमें से नक्षत्र और सावन मास विशेषत: वैदिक कार्यों में देखे जाते हैं। सौर एवं चन्द्र मासों का व्यवहार लोक में चलता है। इनमें भी सौर मास खगोल एवं भूगोल से सम्बन्ध रखनेवाले हैं। ये क्षय-वृद्धि से रहित तथा गणना रखने में सुगम हैं। इनके नाम भी आकाशीय नक्षत्रों के अनुसार हैं।
- आकाश में 27 नक्षत्र हैं,
- इन नक्षत्रों के 108 पाद होते हैं।
- इनमें से नौ पादों की आकृति के अनुसार मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन- ये बारह सौर मास होते हैं।
- पृथ्वी पर भी इन मासों (राशियों) की रेखा स्थिर की गयी है, जिसे 'क्रान्ति' कहते हैं।
- ये क्रान्तियाँ विषुवत रेखा से 24 उत्तर में और 24 दक्षिण में मानी जाती हैं। उत्तरायण में विषुवत रेखा से उत्तर 12 अंश तक मेष, 20 अंश तक वृष, 24 अंश तक मिथुन, 24 उत्तर क्रम में कर्क रेखा और फिर उलटे क्रम से 20 अंश तक कर्क, 12 अंश तक सिंह तथा विषुवत रेखा तक कन्या राशि होती है। इसी प्रकार दक्षिणायन में विषुवतरेखा से दक्षिण 12 अंश तक तुला, 20 अंश तक वृश्चिक, 24 अंश तक धन और 24 अंश को मकर रेखा कहते हैं। फिर उलटे क्रम से 20 अंश तक मकर, 12 अंश तक कुम्भ और विषुवत रेखा तक मीन राशि होती है। मासों का यह स्थान सूर्य की गति के अनुसार है।
चन्द्रमास
- जैसे सौर मास का सम्बन्ध सूर्य से है, वैसे ही चन्द्र मास का सम्बन्ध चन्द्रमा से है।
- अमावस्या के पश्चात चन्द्रमा जब मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में प्रकट होकर प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ता हुआ 15 वें दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्णता को प्राप्त करता है, तब वह मास 'चित्रा' नक्षत्र-के कारण 'चैत्र' कहा जाता है।
- जिस पक्ष में चन्द्रमा क्रमश: बढ़ता हुआ शुक्लता – प्रकाश को प्राप्त करता है, वह शुक्ल पक्ष और जिसमें घटता हुआ कृष्णता-अन्धकार बढ़ाता है, वह कृष्ण पक्ष कहा जाता है।
- मास का नाम उस नक्षत्र के अनुसार होता है, जो महीने भर सायंकाल से प्रात:काल तक दिखलायी पड़े और जिसमें चन्द्रमा पूर्णता प्राप्त करे। चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठा, आषाढ़ा, श्रवण, भाद्रपदा, अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिरा, पुष्य, मघा और फाल्गुनी नक्षत्रों के अनुसार ही चन्द्र मासों के नाम क्रमश:
- चैत्र,
- वैशाख,
- ज्येष्ठ,
- आषाढ़,
- श्रावण,
- भाद्रपद,
- आश्विन,
- कार्तिक,
- मार्गशीर्ष,
- पौष,
- माघ
- फाल्गुन होते हैं।
- चन्द्र वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन, 3 घड़ी 48 पल कम होता है। सौर वर्ष से चन्द्र वर्ष का सामंजस्य रखने के लिये 32 महीने, 16 दिन, 4 घड़ी पर एक चन्द्र मास की वृद्धि मानी जाती है। इस पर भी पूरा सामंजस्य न होने से लगभग 140 या 190 वर्ष के बाद एक चन्द्र मास का क्षय माना जाता है; किंतु जिस वर्ष में क्षय-मास होता है, उस वर्ष में क्षय-मास से तीन मास पूर्व के और तीन मास पश्चात के दोनों चन्द्र मासों की वृद्धि होती है। इस प्रकार उस वर्ष दो अधिक मास भी होते हैं। क्षय-मास कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष-इन तीन मासों में से ही कोई होता है; क्योंकि इन्हीं महीनों में सौर मास चन्द्र मास से न्यून हो सकता है।
- कार्तिक मास मध्य का है, अत: इसकी वृद्धि या क्षय दोनों सम्भव हैं।
- माघ मास स्थिर मास है। यह न क्षय होता है, न बढ़ता ही है। जब दो अमावस्याओं के बीच में सूर्य की दो संक्रान्तियाँ पड़ जायँ तो वह चन्द्र मास क्षय माना जायगा; क्योंकि समस्त पुण्य कर्म तिथियों के अनुसार होते हैं, अतएव धार्मिक कृत्यों में तो चन्द्र मास ही उपयोग में आ सकता है।
- राजनीतिक 'कार्यों में सौर मास का उपयोग होना चाहिये; क्योंकि उसमें तिथियों के घटने-बढ़ने की बात न होने से हिसाब ही ठीक रखा जा सकता है।
|
|
|
|
|