ऋभुगण: Difference between revisions

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Revision as of 12:13, 23 April 2011

ऋभुगण, अंगिरस के पुत्र सुधन्वा के पुत्र थे। सुधन्वा के तीन पुत्र हुए- ऋभुगण, बिंबन तथा बाज। वे तीनों त्वष्टा के निपुण शिष्य हुए। वे मूलत: मानव थे किन्तु अपनी कठिन साधना से उन्होंने देवत्व की उपलब्धि प्राप्त की। त्वष्टा ने एक चमस पात्र का निर्माण किया था। अग्निदेव ने देवताओं को दूत के रूप में जाकर उन तीनों से कहा कि एक चमस पात्र से चार चमस बना दें। उन्होंने स्वीकार कर लिया तथा चार चमस बना दिये। फलस्वरूप तीसरे सवन में स्वधा के अधिकारी हुए। उन्हें सोमपान का अधिकार प्राप्त हुआ तथा देवताओं में उनकी गणना होने लगी। उन्होंने अमरत्व प्राप्त किया।

सुधन्वा पुत्रों में से कनिष्ठ बाज देवताओं से, मध्यम बिंबन वरुण से ज्येष्ठ ऋभुगण इंद्र से सम्बन्धित हुए। उन्होंने अनेक उल्लेखनीय कार्य किये। अपने वृद्ध माता-पिता को पुन: युवा बना दिया। अश्विनीकुमारों के लिए तीन आसनों वाला रथ बनवाया, जो अश्व के बिना चलता था। इंद्र के लिए रथ का निर्माण किया। देवताओं के लिए दृढ़ कवच बनाया तथा अनेक आयुधों का निर्माण भी किया।[1]

अग्नि वसु आदि देवतागण ऋभुओं के साथ सोमपान नहीं करना चाहते थे, क्योंकि उन्हें मनुष्य की गंध से डर लगता था। सविता तथा प्रजापति (ऋभुओं के दोनों पार्श्व में विद्यमान रहकर) उनके साथ सोमपान करते थे। ऋभुओं को स्तोत्र देवता नहीं माना गया यद्यपि प्रजापति ने उन्हें अमरत्व प्रदान कर दिया था।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

विद्यावाचस्पति, डॉ. उषा पुरी भारतीय मिथक कोश (हिंदी)। भारत डिस्कवरी पुस्तकालय: नेशनल पब्लिशिंग हाउस, 41।

  1. ऋग्वेद 1|20, 1|161, 4|34, 35, 36, 37
  2. ऐतरेय ब्राह्मण, 3|30, 6|12, शतपथ ब्राह्मण, 12|3|4|5

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