बस एक चान्स -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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"बोलने को बचा क्या है जो बोलें... हमको अपनी बुद्धि पर तरस आता है... कहने को तो हम अब सैकड़ों किताब पढ़ चुके हैं... और एक-एक विषय पर घंटों व्याख्यान देने की क्षमता भी हमारे अंदर पैदा हो गई है... लेकिन अब हमको लगता है कि हमने तो अभी बिल्कुल ही कुछ भी नहीं पढ़ा है... जैसे एक नये-नये विद्यार्थी की हालत होती है, वही है हमारी अब... हमें पता चल चुका है कि हम एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसमें न बुद्धि है और न कोई प्रतिभा... ना ही कोई कला...अब हमारी उम्र मतदान करने लायक़ हो गई है और सबसे पहला 'मत' हमने ख़ुद को ही दिया है और वो ये कि हम 'निरे अज्ञानी' हैं" | "बोलने को बचा क्या है जो बोलें... हमको अपनी बुद्धि पर तरस आता है... कहने को तो हम अब सैकड़ों किताब पढ़ चुके हैं... और एक-एक विषय पर घंटों व्याख्यान देने की क्षमता भी हमारे अंदर पैदा हो गई है... लेकिन अब हमको लगता है कि हमने तो अभी बिल्कुल ही कुछ भी नहीं पढ़ा है... जैसे एक नये-नये विद्यार्थी की हालत होती है, वही है हमारी अब... हमें पता चल चुका है कि हम एक ऐसे व्यक्ति हैं जिसमें न बुद्धि है और न कोई प्रतिभा... ना ही कोई कला...अब हमारी उम्र मतदान करने लायक़ हो गई है और सबसे पहला 'मत' हमने ख़ुद को ही दिया है और वो ये कि हम 'निरे अज्ञानी' हैं" | ||
यह सुनकर बड़े मुस्कुरा गए और बोले- | यह सुनकर बड़े मुस्कुरा गए और बोले- | ||
"बस बस बस... छोटे अब तुम बहुत बड़े हो गए हो... अब तुमको पढ़ने की नहीं बल्कि लिखने की ज़रूरत है... तुम विलक्षण बुद्धि वाले उद्भट विद्वान हो... तुम्हारी यह विनम्रता ही | "बस बस बस... छोटे अब तुम बहुत बड़े हो गए हो... अब तुमको पढ़ने की नहीं बल्कि लिखने की ज़रूरत है... तुम विलक्षण बुद्धि वाले उद्भट विद्वान हो... तुम्हारी यह विनम्रता ही विद्वत्ता का सबसे बड़ा प्रमाण है... जाओ लिखो... दुनियाँ को तुम्हारे जैसे ही विद्वानों की ज़रूरत है" | ||
आइए छोटे पहलवान को लिखता छोड़ कर ज़रा ये सोचें कि क्या ऐसा हम सब के साथ भी नहीं घटता ? क्या हमारे अंदर भी कभी न कभी एक छोटे पहलवान नहीं रहा होगा... या आज भी है ? | आइए छोटे पहलवान को लिखता छोड़ कर ज़रा ये सोचें कि क्या ऐसा हम सब के साथ भी नहीं घटता ? क्या हमारे अंदर भी कभी न कभी एक छोटे पहलवान नहीं रहा होगा... या आज भी है ? | ||
आइंस्टाइन ने कहा था "गणित तो मेरी भी समझ में नहीं | आइंस्टाइन ने कहा था "गणित तो मेरी भी समझ में नहीं आता।" सारी दुनियाँ को भौतिकी और गणित पढ़ाने वाले वैज्ञानिक का यह कथन अपने आप में एक पूरा ग्रंथ है जो कि सब कुछ कह रहा है। सब कुछ जान लेना या सब कुछ सीख लेना जैसी कोई स्थिति कभी नहीं होती। जब हम किसी विधा को सीखने के लिए आगे बढ़ते हैं तभी हमें उसकी सही जानकारी होती है। अधिकतर लोग बहुत आसानी से ख़ुद को 'विशेष प्रतिभाशाली' मान बैठते हैं लेकिन जब विद्वानों के बीच जाते हैं तभी असली परीक्षा होती है। | ||
जब हम कोई सृजन कर रहे होते हैं, तब ही हमको ज्ञान होता है उस सृजन की कठिनाइयों का। अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनसे उस कृति के पीछे छुपे अथाह परिश्रम का आभास हो सकता है- | जब हम कोई सृजन कर रहे होते हैं, तब ही हमको ज्ञान होता है उस सृजन की कठिनाइयों का। अनेक ऐसे उदाहरण हैं जिनसे उस कृति के पीछे छुपे अथाह परिश्रम का आभास हो सकता है- | ||
* अर्नेस्ट हेमिंग्वे, 1954 में, नोबेल पुरस्कार प्राप्त अमेरिका के मशहूर लेखक हुए हैं। उन्होंने अपने विश्व प्रसिद्ध उपन्यास 'द ओल्ड मॅन एंड द सी' को शुरू से आख़िर तक बार-बार लिखा और जब वे सौ से भी अधिक बार इसे लिख चुके तभी संतुष्ट हुए। | * अर्नेस्ट हेमिंग्वे, 1954 में, नोबेल पुरस्कार प्राप्त अमेरिका के मशहूर लेखक हुए हैं। उन्होंने अपने विश्व प्रसिद्ध उपन्यास 'द ओल्ड मॅन एंड द सी' को शुरू से आख़िर तक बार-बार लिखा और जब वे सौ से भी अधिक बार इसे लिख चुके तभी संतुष्ट हुए। |
Revision as of 13:03, 5 May 2012
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टीका टिप्पणी और संदर्भ