कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) No edit summary |
No edit summary |
||
Line 15: | Line 15: | ||
कॉफ़ी हाउस पहुँच कर उन्होंने तीन कॉफ़ी और एक ठंडा पेय मंगाया। एक कॉफ़ी छोटे पहलवान को दे दी और एक ख़ुद पीने लगे बाक़ी जो एक कॉफ़ी और एक सॉफ़्ट ड्रिंक थी वो ऐसे ही मेज़ पर रखी रही। | कॉफ़ी हाउस पहुँच कर उन्होंने तीन कॉफ़ी और एक ठंडा पेय मंगाया। एक कॉफ़ी छोटे पहलवान को दे दी और एक ख़ुद पीने लगे बाक़ी जो एक कॉफ़ी और एक सॉफ़्ट ड्रिंक थी वो ऐसे ही मेज़ पर रखी रही। | ||
"नेता तो तुम बन ही सकते हो लेकिन... हमारे देश में नेता बनने के लिए कुछ न कुछ गुण अवश्य होने चाहिए।" | "नेता तो तुम बन ही सकते हो लेकिन... हमारे देश में नेता बनने के लिए कुछ न कुछ गुण अवश्य होने चाहिए।" | ||
छोटे पहलवान ने पूछा-'जैसे ?' | छोटे पहलवान ने पूछा- 'जैसे ?' | ||
उन्होंने कहा- "जैसे कि आप अच्छे वक्ता हों, आवाज़ बुलन्द हो। जिससे कि आपका लच्छेदार भाषण सुनने भीड़ इकट्ठी हो जाए, अगर भाषण देना नहीं आता हो तो बहुत ज़ोरदार नारे लगाना ही आता हो... नारों की आवाज़ बड़े-बड़े नेताओं को भावुक कर देती है।" | उन्होंने कहा- "जैसे कि आप अच्छे वक्ता हों, आवाज़ बुलन्द हो। जिससे कि आपका लच्छेदार भाषण सुनने भीड़ इकट्ठी हो जाए, अगर भाषण देना नहीं आता हो तो बहुत ज़ोरदार नारे लगाना ही आता हो... नारों की आवाज़ बड़े-बड़े नेताओं को भावुक कर देती है।" | ||
उन्होंने धारा प्रवाह कहना शुरू किया- | उन्होंने धारा प्रवाह कहना शुरू किया- | ||
Line 31: | Line 31: | ||
ताक़त न हो तो कंठ मधुर हो सुरीला हो, मतलब ये कि अपनी बात को भाषण से न कहकर गाकर सुना दें। गाना सुनकर जनता ख़ुश हो जाती है। आजकल फ़ॅशन में भी है। गाना नहीं आता तो नाचना आता हो कि लोगों को नाच दिखाकर, ठुमका लगाकर आकर्षित कर लें। नाच-नाचकर भीड़ इकट्ठी कर सकते हैं। राजनीति में नाचना बड़े काम की चीज़ है। | ताक़त न हो तो कंठ मधुर हो सुरीला हो, मतलब ये कि अपनी बात को भाषण से न कहकर गाकर सुना दें। गाना सुनकर जनता ख़ुश हो जाती है। आजकल फ़ॅशन में भी है। गाना नहीं आता तो नाचना आता हो कि लोगों को नाच दिखाकर, ठुमका लगाकर आकर्षित कर लें। नाच-नाचकर भीड़ इकट्ठी कर सकते हैं। राजनीति में नाचना बड़े काम की चीज़ है। | ||
या फिर | या फिर | ||
आप किसी रजवाड़े से सम्बन्धित हों, किसी महाराजाधिराज के साले जीजा हों तो वैसे ही आपकी जय-जयकार होगी, आराम से नेता बन जायेंगे। राजा नहीं तो बहुत बड़े रिटायर्ड अधिकारी हों। | आप किसी रजवाड़े से सम्बन्धित हों, किसी महाराजाधिराज के साले, जीजा हों तो वैसे ही आपकी जय-जयकार होगी, आराम से नेता बन जायेंगे। राजा नहीं तो बहुत बड़े रिटायर्ड अधिकारी हों। | ||
या फिर | या फिर | ||
किसी नेता के दूर के या पास के रिश्तेदार हों, फिर तो जनता यूं ही आपको नेता मान लेगी। अगर कोई नेता रिश्तेदार नहीं भी हुआ तो किसी साधु-संन्यासी के चेले बनने की कला आती हो। साधु-संन्यासी ऐसा हो जिसके हज़ारों चेले हों। आजकल इस लाइन में बड़ा स्कोप है। | किसी नेता के दूर के या पास के रिश्तेदार हों, फिर तो जनता यूं ही आपको नेता मान लेगी। अगर कोई नेता रिश्तेदार नहीं भी हुआ तो किसी साधु-संन्यासी के चेले बनने की कला आती हो। साधु-संन्यासी ऐसा हो जिसके हज़ारों चेले हों। आजकल इस लाइन में बड़ा स्कोप है। | ||
Line 43: | Line 43: | ||
"वो तो ठीक है लेकिन नेता बनने के बाद करना क्या होगा... मेरा मतलब है कि मान लीजिए मंत्री बन गए तो फिर पॉलिसी क्या अपनाएँगे हम ?" | "वो तो ठीक है लेकिन नेता बनने के बाद करना क्या होगा... मेरा मतलब है कि मान लीजिए मंत्री बन गए तो फिर पॉलिसी क्या अपनाएँगे हम ?" | ||
"इसे समझने के लिए पहले कॉफ़ी और कोल्ड ड्रिंक को छूकर देखो।" | "इसे समझने के लिए पहले कॉफ़ी और कोल्ड ड्रिंक को छूकर देखो।" | ||
जो कॉफ़ी और ठंडा पेय नेताजी ने मेज़ पर ऐसे ही रख छोड़ा था उन्हें छूकर छोटे ने कहा- | जो कॉफ़ी और ठंडा पेय नेताजी ने मेज़ पर ऐसे ही रख छोड़ा था, उन्हें छूकर छोटे ने कहा- | ||
"दोनों का टॅम्परेचर एक ही हो गया है, ना तो कॉफ़ी गर्म रही और ना ही कोल्ड-ड्रिंक ठंडी..." | "दोनों का टॅम्परेचर एक ही हो गया है, ना तो कॉफ़ी गर्म रही और ना ही कोल्ड-ड्रिंक ठंडी..." | ||
"बस, यही समझने वाली बात है। नेता बनने के बाद तुमको समस्याओं को ऐसे ही सुलझाना है। गर्म कॉफ़ी नई समस्या, ठंडी सॉफ़्ट ड्रिंक पुरानी समस्या... दोनों को ऐसे ही छोड़ दो... कुछ बोलो ही मत... सब कुछ अपने आप ही नॉर्मल हो जाएगा... बहुत समय से बड़े-बड़े मंत्री भी इसी तरीक़े को अपना रहे हैं।... सुपर हिट पॉलिसी है ये... पार्लियामेन्ट में यही पॉलिसी अच्छी रहती है। हमारे बहुत से नेता हर एक समस्या का समाधान इसी तरह करते हैं।" | "बस, यही समझने वाली बात है। नेता बनने के बाद तुमको समस्याओं को ऐसे ही सुलझाना है। गर्म कॉफ़ी नई समस्या, ठंडी सॉफ़्ट ड्रिंक पुरानी समस्या... दोनों को ऐसे ही छोड़ दो... कुछ बोलो ही मत... सब कुछ अपने आप ही नॉर्मल हो जाएगा... बहुत समय से बड़े-बड़े मंत्री भी इसी तरीक़े को अपना रहे हैं।... सुपर हिट पॉलिसी है ये... पार्लियामेन्ट में यही पॉलिसी अच्छी रहती है। हमारे बहुत से नेता हर एक समस्या का समाधान इसी तरह करते हैं।" | ||
इनकी बात-चीत को छोड़कर चलिए कॉफ़ी हाउस से वापस चलें- | इनकी बात-चीत को छोड़कर चलिए कॉफ़ी हाउस से वापस चलें- | ||
दुनियाँ मे भाषण देने के और सदनों में बोलने के तमाम कीर्तिमान हैं। क्यूबा (कुबा) के पूर्व शासक फ़िदेल कास्रो का संयुक्त राष्ट्र संघ में 4 घंटे 29 मिनट लगातार भाषण देने का कीर्तिमान है, जो गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। कास्त्रो का एक कीर्तिमान क्यूबा की राजधानी हवाना में 7 घंटे 10 मिनट का भी है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी। 300 शब्द प्रति मिनट की गति से भाषण दे पाना बहुत ही कम लोगों के वश में है, कॅनेडी ने इस वक्तव्य में कभी-कभी 350 शब्द तक की गति भी छू ली थी। | दुनियाँ मे भाषण देने के और सदनों में बोलने के तमाम कीर्तिमान हैं। क्यूबा (कुबा) के पूर्व शासक फ़िदेल कास्रो का संयुक्त राष्ट्र संघ में 4 घंटे 29 मिनट लगातार भाषण देने का कीर्तिमान है, जो गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। कास्त्रो का एक कीर्तिमान क्यूबा की राजधानी हवाना में 7 घंटे 10 मिनट का भी है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी। 300 शब्द प्रति मिनट की गति से भाषण दे पाना बहुत ही कम लोगों के वश में है, कॅनेडी ने इस वक्तव्य में कभी-कभी 350 शब्द तक की गति भी छू ली थी। | ||
कैसे बोल लेते हैं लोग इतने देर तक, इतनी तेज़ गति से और इतना प्रभावशाली ? सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते | कैसे बोल लेते हैं लोग इतने देर तक, इतनी तेज़ गति से और इतना प्रभावशाली ? सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनियाँ में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। | ||
भारतीय संसद में अनेक प्रभावशाली संबोधन होते रहे हैं। एक समय में संसद में प्रकाशवीर शास्त्री धारा-प्रवाह बोला करते थे। संसद से बाहर (संसद बनी भी नहीं थी तब तक) [[लोकमान्य तिलक]], [[सुभाष चंद्र बोस]], [[स्वामी विवेकानंद]] जैसे कितने ही नाम हैं जो महान वक्ताओं की श्रेणी में आते हैं। आजकल प्रभावी वक्ताओं की संख्या में कमी आ गई है। क्या लगता है कि उनके पास बोलने को कुछ नहीं है या फिर सुनने वाले उकता गए हैं ? [[अटल बिहारी वाजपेयी]] और [[सोमनाथ चटर्जी]] के बाद कौन सा ऐसा नाम है जिसे हम संसद के प्रभावशाली सदस्य के रूप में याद रखेंगे ?</poem> {{दाँयाबक्सा|पाठ=अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी।|विचारक=}} | भारतीय संसद में अनेक प्रभावशाली संबोधन होते रहे हैं। एक समय में संसद में प्रकाशवीर शास्त्री धारा-प्रवाह बोला करते थे। संसद से बाहर (संसद बनी भी नहीं थी तब तक) [[लोकमान्य तिलक]], [[सुभाष चंद्र बोस]], [[स्वामी विवेकानंद]] जैसे कितने ही नाम हैं जो महान वक्ताओं की श्रेणी में आते हैं। आजकल प्रभावी वक्ताओं की संख्या में कमी आ गई है। क्या लगता है कि उनके पास बोलने को कुछ नहीं है या फिर सुनने वाले उकता गए हैं ? [[अटल बिहारी वाजपेयी]] और [[सोमनाथ चटर्जी]] के बाद कौन सा ऐसा नाम है जिसे हम संसद के प्रभावशाली सदस्य के रूप में याद रखेंगे ?</poem> {{दाँयाबक्सा|पाठ=अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी।|विचारक=}} | ||
<poem> | <poem> | ||
स्वामी विवेकानंद का एक संस्मरण देखिए- | स्वामी विवेकानंद का एक संस्मरण देखिए- | ||
स्वामी विवेकानंद एक सभा में 'शब्द' की महिमा बता रहे थे तभी एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा- | स्वामी विवेकानंद एक सभा में 'शब्द' की महिमा बता रहे थे, तभी एक व्यक्ति ने खड़े होकर कहा- | ||
"शब्द का कोई मूल्य नहीं कोई महत्व नहीं है और शब्द को सबसे महत्वपूर्ण बता रहे हैं... ध्यान के आगे शब्द कुछ नहीं है" | "शब्द का कोई मूल्य नहीं कोई महत्व नहीं है और शब्द को सबसे महत्वपूर्ण बता रहे हैं... ध्यान के आगे शब्द कुछ नहीं है" | ||
विवेकानंद ने कहा- | विवेकानंद ने कहा- | ||
"बैठ जा मूर्ख खड़ा क्यों हो गया।" | "बैठ जा मूर्ख, खड़ा क्यों हो गया।" | ||
उस व्यक्ति ने नाराज़ होकर कहा- | उस व्यक्ति ने नाराज़ होकर कहा- | ||
"आप मुझे मूर्ख कह रहे हैं। यह भी कोई सभ्यता है ?" | "आप मुझे मूर्ख कह रहे हैं। यह भी कोई सभ्यता है ?" |
Revision as of 15:15, 26 May 2012
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ