कुछ तो कह जाते -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) No edit summary |
आदित्य चौधरी (talk | contribs) No edit summary |
||
Line 19: | Line 19: | ||
उन्होंने धारा प्रवाह कहना शुरू किया- | उन्होंने धारा प्रवाह कहना शुरू किया- | ||
या फिर | या फिर | ||
आप संगठन की क्षमता रखते | आप संगठन की क्षमता रखते हों तो आप एक संगठन खड़ा कर सकते हैं, हज़ारों लोग आपके साथ हो जायेंगे। संगठन नहीं कर सकते तो लड़वा दें। लड़वाने की कला राजनीति में कमाल के फ़ायदे दिलवाती है, औरों को लड़वाकर खुद फ़ायदा उठा लें। | ||
या फिर | या फिर | ||
लड़ाना नहीं जानते तो झूठ बोलना आता हो। प्रभावशाली ढंग से गप्प मारना आता हो। अगर ये कला आप जानते हैं तो वारे-न्यारे समझिये। झूठ हर एक जगह काम आता है। गप्प मारने में मज़ा भी आता है और फ़ायदा भी बहुत होता है। | लड़ाना नहीं जानते तो झूठ बोलना आता हो। प्रभावशाली ढंग से गप्प मारना आता हो। अगर ये कला आप जानते हैं तो वारे-न्यारे समझिये। झूठ हर एक जगह काम आता है। गप्प मारने में मज़ा भी आता है और फ़ायदा भी बहुत होता है। | ||
Line 25: | Line 25: | ||
आपके पास ख़र्च करने के लिए पैसा बहुत होना चाहिए। पैसे की चमक से और चाँदी के जूते की मार से ही कार्यकर्ता और दूसरे नेता आपके साथ आ जाएँगे। पैसे न हो तो आपको चापलूसी और चमचागिरी करने में महारथ हासिल हो, जिससे किसी बड़े नेता को आप अपनी चापलूसी से ही पटा लें। | आपके पास ख़र्च करने के लिए पैसा बहुत होना चाहिए। पैसे की चमक से और चाँदी के जूते की मार से ही कार्यकर्ता और दूसरे नेता आपके साथ आ जाएँगे। पैसे न हो तो आपको चापलूसी और चमचागिरी करने में महारथ हासिल हो, जिससे किसी बड़े नेता को आप अपनी चापलूसी से ही पटा लें। | ||
या फिर | या फिर | ||
आप दिखने में बहुत सुन्दर-सलोने, चिकने-चुपड़े हों कि आपको देखते ही कुछ नेता आप पर रीझ जाएँ। ऐसे नेता आजकल बहुत पॉपूलर हो रहे | आप दिखने में बहुत सुन्दर-सलोने, चिकने-चुपड़े हों कि आपको देखते ही कुछ नेता आप पर रीझ जाएँ। ऐसे नेता आजकल बहुत पॉपूलर हो रहे हैं, अगर सुन्दर न हों तो फिर आप दिखने में भयंकर और डरावने हों, चेहरा रौबिला हो, बड़ी-बड़ी मूँछें हों, जिनको देखकर ही लोग आपसे दहशत खा जाएँ। | ||
या फिर | या फिर | ||
शरीर लम्बा-चौड़ा हो, कोई रिटायर्ड पहलवान हों जिससे दूर से ही भीड़ में अलग दिखें। भीड़ में लोगों को कोहनी मार-मार कर आगे पहुँच जाएँ। इसे 'कोहनी-मार' राजनीति कहते हैं। | शरीर लम्बा-चौड़ा हो, कोई रिटायर्ड पहलवान हों जिससे दूर से ही भीड़ में अलग दिखें। भीड़ में लोगों को कोहनी मार-मार कर आगे पहुँच जाएँ। इसे 'कोहनी-मार' राजनीति कहते हैं। | ||
Line 31: | Line 31: | ||
ताक़त न हो तो कंठ मधुर हो सुरीला हो, मतलब ये कि अपनी बात को भाषण से न कहकर गाकर सुना दें। गाना सुनकर जनता ख़ुश हो जाती है। आजकल फ़ॅशन में भी है। गाना नहीं आता तो नाचना आता हो कि लोगों को नाच दिखाकर, ठुमका लगाकर आकर्षित कर लें। नाच-नाचकर भीड़ इकट्ठी कर सकते हैं। राजनीति में नाचना बड़े काम की चीज़ है। | ताक़त न हो तो कंठ मधुर हो सुरीला हो, मतलब ये कि अपनी बात को भाषण से न कहकर गाकर सुना दें। गाना सुनकर जनता ख़ुश हो जाती है। आजकल फ़ॅशन में भी है। गाना नहीं आता तो नाचना आता हो कि लोगों को नाच दिखाकर, ठुमका लगाकर आकर्षित कर लें। नाच-नाचकर भीड़ इकट्ठी कर सकते हैं। राजनीति में नाचना बड़े काम की चीज़ है। | ||
या फिर | या फिर | ||
आप किसी रजवाड़े से सम्बन्धित हों, किसी महाराजाधिराज के साले | आप किसी रजवाड़े से सम्बन्धित हों, किसी महाराजाधिराज के साले-जीजा हों तो वैसे ही आपकी जय-जयकार होगी, आराम से नेता बन जायेंगे। राजा नहीं तो बहुत बड़े रिटायर्ड अधिकारी हों। | ||
या फिर | या फिर | ||
किसी नेता के दूर के या पास के रिश्तेदार हों, फिर तो जनता यूं ही आपको नेता मान लेगी। अगर कोई नेता रिश्तेदार नहीं भी हुआ तो किसी साधु-संन्यासी के चेले बनने की कला आती हो। साधु-संन्यासी ऐसा हो जिसके हज़ारों चेले हों। आजकल इस लाइन में बड़ा स्कोप है। | किसी नेता के दूर के या पास के रिश्तेदार हों, फिर तो जनता यूं ही आपको नेता मान लेगी। अगर कोई नेता रिश्तेदार नहीं भी हुआ तो किसी साधु-संन्यासी के चेले बनने की कला आती हो। साधु-संन्यासी ऐसा हो जिसके हज़ारों चेले हों। आजकल इस लाइन में बड़ा स्कोप है। | ||
Line 37: | Line 37: | ||
आप घरेलू कामों में एक्सपर्ट हों। जैसे - खाना बनाना, बर्तन मांजना, बच्चे खिलाना, कपड़े धोना, मालिश करना, जिससे कि आपको किसी बड़े नेता के घर पर रखवा दिया जाए और वह नेता आपसे खुश हो जाये। कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो इसी रास्ते को अपना कर नेता बने हैं। | आप घरेलू कामों में एक्सपर्ट हों। जैसे - खाना बनाना, बर्तन मांजना, बच्चे खिलाना, कपड़े धोना, मालिश करना, जिससे कि आपको किसी बड़े नेता के घर पर रखवा दिया जाए और वह नेता आपसे खुश हो जाये। कुछ नेता ऐसे भी हैं, जो इसी रास्ते को अपना कर नेता बने हैं। | ||
या फिर | या फिर | ||
कुछ नहीं तो कम से कम चौराहे पर आपका ऊँचा सा मकान हो, जिस पर कोई पार्टी अपना एक झंडा लगा सके। मकान न हो तो आप झंडा लेकर भागने की क्षमता रखते हों कि मीलों भागते चले जाएं। जिससे नेता और जनता का ध्यान आकर्षित करें।</poem>{{दाँयाबक्सा|पाठ=क्यूबा (कुबा) के पूर्व शासक फ़िदेल कास्रो का संयुक्त राष्ट्र संघ में 4 घंटे 29 मिनट लगातार भाषण देने का कीर्तिमान है, जो गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है।|विचारक=}} | |||
<poem> | <poem> | ||
अगर | अगर इतनी लम्बी लिस्ट में से, कुछ भी ऐसा नहीं है, जो कि आप कर सकते हों तो आप नेता नहीं बन सकते।" | ||
उन्होंने एक लम्बी सांस ली और फिर बोलने लगे "बोलो क्या कहते हो, बनना है नेता ?" | उन्होंने एक लम्बी सांस ली और फिर बोलने लगे "बोलो क्या कहते हो, बनना है नेता ?" | ||
"वो तो ठीक है लेकिन नेता बनने के बाद करना क्या होगा... मेरा मतलब है कि मान लीजिए मंत्री बन गए तो फिर पॉलिसी क्या अपनाएँगे हम ?" | "वो तो ठीक है लेकिन नेता बनने के बाद करना क्या होगा... मेरा मतलब है कि मान लीजिए मंत्री बन गए तो फिर पॉलिसी क्या अपनाएँगे हम ?" | ||
Line 47: | Line 47: | ||
"बस, यही समझने वाली बात है। नेता बनने के बाद तुमको समस्याओं को ऐसे ही सुलझाना है। गर्म कॉफ़ी नई समस्या, ठंडी सॉफ़्ट ड्रिंक पुरानी समस्या... दोनों को ऐसे ही छोड़ दो... कुछ बोलो ही मत... सब कुछ अपने आप ही नॉर्मल हो जाएगा... बहुत समय से बड़े-बड़े मंत्री भी इसी तरीक़े को अपना रहे हैं।... सुपर हिट पॉलिसी है ये... पार्लियामेन्ट में यही पॉलिसी अच्छी रहती है। हमारे बहुत से नेता हर एक समस्या का समाधान इसी तरह करते हैं।" | "बस, यही समझने वाली बात है। नेता बनने के बाद तुमको समस्याओं को ऐसे ही सुलझाना है। गर्म कॉफ़ी नई समस्या, ठंडी सॉफ़्ट ड्रिंक पुरानी समस्या... दोनों को ऐसे ही छोड़ दो... कुछ बोलो ही मत... सब कुछ अपने आप ही नॉर्मल हो जाएगा... बहुत समय से बड़े-बड़े मंत्री भी इसी तरीक़े को अपना रहे हैं।... सुपर हिट पॉलिसी है ये... पार्लियामेन्ट में यही पॉलिसी अच्छी रहती है। हमारे बहुत से नेता हर एक समस्या का समाधान इसी तरह करते हैं।" | ||
इनकी बात-चीत को छोड़कर चलिए कॉफ़ी हाउस से वापस चलें- | इनकी बात-चीत को छोड़कर चलिए कॉफ़ी हाउस से वापस चलें- | ||
दुनियाँ मे भाषण देने के और सदनों में बोलने के तमाम कीर्तिमान हैं। क्यूबा (कुबा) के पूर्व शासक फ़िदेल कास्रो का संयुक्त राष्ट्र संघ में 4 घंटे 29 मिनट लगातार भाषण देने का कीर्तिमान है, जो गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। कास्त्रो का एक कीर्तिमान क्यूबा की राजधानी हवाना में 7 घंटे 10 मिनट का भी है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी। 300 शब्द प्रति मिनट की गति से भाषण दे पाना बहुत ही कम लोगों के वश में है, कॅनेडी ने इस वक्तव्य में कभी-कभी 350 शब्द तक की गति भी छू ली थी। | दुनियाँ मे भाषण देने के और विभिन्न सदनों में बोलने के तमाम कीर्तिमान हैं। क्यूबा (कुबा) के पूर्व शासक फ़िदेल कास्रो का संयुक्त राष्ट्र संघ में 4 घंटे 29 मिनट लगातार भाषण देने का कीर्तिमान है, जो गिनेस बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। कास्त्रो का एक कीर्तिमान क्यूबा की राजधानी हवाना में 7 घंटे 10 मिनट का भी है। अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी। 300 शब्द प्रति मिनट की गति से भाषण दे पाना बहुत ही कम लोगों के वश में है, कॅनेडी ने इस वक्तव्य में कभी-कभी 350 शब्द तक की गति भी छू ली थी। | ||
कैसे बोल लेते हैं लोग इतने देर तक, इतनी तेज़ गति से और इतना प्रभावशाली ? सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनियाँ में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। | कैसे बोल लेते हैं लोग इतने देर तक, इतनी तेज़ गति से और इतना प्रभावशाली ? सीधी सी बात है अगर आपके पास कुछ 'कहने' को है तो आप बोल सकते हैं। यदि कुछ कहने को नहीं है तो बोलना तो क्या मंच पर खड़ा होना भी मुश्किल है। दुनियाँ में तमाम तरह के फ़ोबिया (डर) हैं जिनमें से सबसे बड़ा फ़ोबिया भाषण देना है, इसे ग्लोसोफ़ोबिया (Glossophobia) कहते हैं। यूनानी (ग्रीक) भाषा में जीभ को 'ग्लोसा' कहते हैं इसलिए इसका नाम भी ग्लोसोफ़ोबिया है। | ||
भारतीय संसद में अनेक प्रभावशाली संबोधन होते रहे हैं। एक समय में संसद में प्रकाशवीर शास्त्री धारा-प्रवाह बोला करते थे। संसद से बाहर (संसद बनी भी नहीं थी तब तक) [[लोकमान्य तिलक]], [[सुभाष चंद्र बोस]], [[स्वामी विवेकानंद]] जैसे कितने ही नाम हैं जो महान वक्ताओं की श्रेणी में आते हैं। आजकल प्रभावी वक्ताओं की संख्या में कमी आ गई है। क्या लगता है कि उनके पास बोलने को कुछ नहीं है या फिर सुनने वाले उकता गए हैं ? [[अटल बिहारी वाजपेयी]] और [[सोमनाथ चटर्जी]] के बाद कौन सा ऐसा नाम है जिसे हम संसद के प्रभावशाली सदस्य के रूप में याद रखेंगे ?</poem> {{दाँयाबक्सा|पाठ=अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी।|विचारक=}} | भारतीय संसद में अनेक प्रभावशाली संबोधन होते रहे हैं। एक समय में संसद में प्रकाशवीर शास्त्री धारा-प्रवाह बोला करते थे। संसद से बाहर (संसद बनी भी नहीं थी तब तक) [[लोकमान्य तिलक]], [[सुभाष चंद्र बोस]], [[स्वामी विवेकानंद]] जैसे कितने ही नाम हैं जो महान वक्ताओं की श्रेणी में आते हैं। आजकल प्रभावी वक्ताओं की संख्या में कमी आ गई है। क्या लगता है कि उनके पास बोलने को कुछ नहीं है या फिर सुनने वाले उकता गए हैं ? [[अटल बिहारी वाजपेयी]] और [[सोमनाथ चटर्जी]] के बाद कौन सा ऐसा नाम है जिसे हम संसद के प्रभावशाली सदस्य के रूप में याद रखेंगे ?</poem> {{दाँयाबक्सा|पाठ=अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कॅनेडी ने दिसम्बर1961 में जो भाषण दिया था उसमें 300 शब्द प्रति मिनट से भी तेज़ गति थी।|विचारक=}} | ||
<poem> | <poem> | ||
स्वामी विवेकानंद का एक संस्मरण देखिए- | स्वामी विवेकानंद का एक संस्मरण देखिए- |
Revision as of 03:12, 27 May 2012
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ