दुर्गा: Difference between revisions

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दुर्गा शब्दका पदच्छेद यों है- दुर्ग+आ। 'दुर्ग' शब्द दैत्य, महाविघ्न, भवबन्धन, कर्म, शोक, दु:ख, नरक, यमदण्ड, जन्म, महान भय तथा अत्यन्त रोग के अर्थ में आता है तथा 'आ' शब्द 'हन्ता' का वाचक है। जो देवी इन दैत्य और महाविघ्न आदि का हनन करती है, उसे 'दुर्गा' कहा गया है।  
दुर्गा शब्द का पदच्छेद यों है- दुर्ग+आ। 'दुर्ग' शब्द दैत्य, महाविघ्न, भवबन्धन, कर्म, शोक, दु:ख, नरक, यमदण्ड, जन्म, महान भय तथा अत्यन्त रोग के अर्थ में आता है तथा 'आ' शब्द 'हन्ता' का वाचक है। जो देवी इन दैत्य और महाविघ्न आदि का हनन करती है, उसे 'दुर्गा' कहा गया है।  


'''नारायणी'''
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Revision as of 05:50, 22 October 2012

thumb|200px|दुर्गा देवी
Durga Devi
दुर्गा पार्वती का दूसरा नाम है। हिन्दुओं के शाक्त सम्प्रदाय में भगवती दुर्गा को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है (शाक्त सम्प्रदाय ईश्वर को देवी के रूप में मानता है) वेदों में तो दुर्गा का कोई ज़िक्र नहीं है, मगर उपनिषद में देवी 'उमा हैमवती' उमा, हिमालय की पुत्री का वर्णन है। पुराण में दुर्गा को आदिशक्ति माना गया है। दुर्गा असल में शिव की पत्नी पार्वती का एक रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिये, देवताओं की प्रार्थना पर, पार्वती देवी ने जन्म लिया था। इस तरह दुर्गा युद्ध की देवी हैं । देवी दुर्गा के स्वयं कई रूप हैं। मुख्य रूप उनका 'गौरी' है अर्थात शान्तमय, सुन्दर और गोरा रूप। उनका सबसे भयानक रूप काली है, अर्थात काला रूप। विभिन्न रूपों में दुर्गा भारत और नेपाल के कई मन्दिरों और तीर्थस्थानों में पूजी जाती हैं। कुछ दुर्गा मन्दिरों में पशुबलि भी चढ़ती है। भगवती दुर्गा की सवारी शेर है। दुर्गा जी की पूजा में दुर्गा जी की आरती और दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है।

नवरात्र में देवी पूजन

हिन्दू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय नवरात्र होता है। भारत में नवरात्र का पर्व, एक ऐसा पर्व है जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है। वर्ष के चार नवरात्रों में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक नौ दिन के होते हैं, परंतु प्रसिद्धि में चैत्र और आश्विन के नवरात्र ही मुख्य माने जाते हैं। इनमें भी देवीभक्त आश्विन के नवरात्र अधिक करते हैं। इनको यथाक्रम वासन्ती और शारदीय नवरात्र भी कहते हैं। इनका आरम्भ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से होता है। अतः यह प्रतिपदा ’सम्मुखी’ शुभ होती है। [1]

दुर्गा जी के सोलह नाम

ब्रह्म वैवर्त पुराण से उद्धृत:
नारदजी बोले- ब्रह्मन्! मैंने अत्यन्त अद्भुत सम्पूर्ण उपाख्यानों को सुना। अब दुर्गाजी के उत्तम उपाख्यान को सुनना चाहता हूँ। वेद की कौथुमी शाखा में जो दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी, सर्वमंगला, अम्बिका, वैष्णवी, गौरी, पार्वती और सनातनी- ये सोलह नाम बताये गये हैं, वे सब के लिये कल्याणदायक हैं। वेदवेत्ताओं में श्रेष्ठ नारायण! इन सोलह नामों का जो उत्तम अर्थ है, वह सबको अभीष्ट है। उसमें सर्वसम्मत वेदोक्त अर्थ को आप बताइये। पहले किसने दुर्गाजी की पूजा की है? फिर दूसरी, तीसरी और चौथी बार किन-किन लोगों ने उनका सर्वत्र पूजन किया है?
श्रीनारायण ने कहा- देवर्षे! भगवान् विष्णु ने वेद में इन सोलह नामों का अर्थ किया है, तुम उसे जानते हो तो भी मुझसे पुन: पूछते हो। अच्छा, मैं आगमों के अनुसार उन नामों का अर्थ कहता हूँ।

दुर्गा

अन्य सम्बंधित लेख


दुर्गा शब्द का पदच्छेद यों है- दुर्ग+आ। 'दुर्ग' शब्द दैत्य, महाविघ्न, भवबन्धन, कर्म, शोक, दु:ख, नरक, यमदण्ड, जन्म, महान भय तथा अत्यन्त रोग के अर्थ में आता है तथा 'आ' शब्द 'हन्ता' का वाचक है। जो देवी इन दैत्य और महाविघ्न आदि का हनन करती है, उसे 'दुर्गा' कहा गया है।

नारायणी [[चित्र:Durga-Puja.jpg|250px|thumb|left|दुर्गा पूजा, कोलकाता
Durga Puja, Kolkata]] यह दुर्गा यश, तेज, रूप और गुणों में नारायण के समान है तथा नारायण की ही शक्ति है। इसलिये 'नारायणी' कही गयी हैं

ईशाना

ईशाना का पदच्छेद इस प्रकार है- ईशान+आ। 'ईशान' शब्द सम्पूर्ण सिद्धियों के अर्थ में प्रयुक्त होता है और 'आ' शब्द दाताका वाचक है। जो सम्पूर्ण सिद्धियों को देने वाली है, वह देवी 'ईशाना' कही गयी है।

विष्णुमाया

पूर्वकाल में सृष्टि के समय परमात्मा विष्णु ने माया की सृष्टि की थी और अपनी उस मायाद्वारा सम्पूर्ण विश्व को मोहित किया। वह मायादेवी विष्णु की ही शक्ति है, इसलिये 'विष्णुमाया' कही गयी है।

शिवा

'शिवा' शब्द का पदच्देद यों है- शिव+आ। 'शिव' शब्द शिव एवं कल्याण अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा 'आ' शब्द प्रिय और दाता-अर्थ में। वह देवी कल्याणस्वरूपा है, शिवदायिनी है और शिवप्रिया है, इसलिये 'शिवा' कही गयी है।

सती

देवी दुर्गा सद्बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं, प्रत्येक युग में विद्यमान हैं तथा पतिव्रता एवं सुशीला हैं। इसीलिये उन्हें 'सती' कहते हैं।

नित्या

जैसे भगवान् नित्य हैं, उसी तरह भगवती भी 'नित्या' हैं। प्राकृत प्रलय के समय वे अपनी माया से परमात्मा श्रीकृष्ण में तिरोहित रहती हैं। [[चित्र:Durga-Mathura-Museum-86.jpg|thumb|250px|दुर्गा, राजकीय संग्रहालय, मथुरा
Durga, Govt. Museum, Mathura]] सत्या ब्रह्मासे लेकर तृण अथवा कीटपर्यन्त सम्पूर्ण जगत् कृत्रिम होने के कारण मिथ्या ही है, परंतु दुर्गा सत्यस्वरूपा हैं। जैसे भगवान् सत्य हैं, उसी तरह प्रकृतिदेवी भी 'सत्या' हैं।

भगवती [[चित्र:Goddess-Durga-Kolkata.jpg|thumb|left|250px|दुर्गा माँ की छवि, साल्ट लेक, कोलकाता
Image of Goddess Durga, Salt Lake, Kolkata]] सिद्ध, ऐश्वर्य आदि के अर्थ में 'भग' शब्द का प्रयोग होता है, ऐसा समझना चाहिये। वह सम्पूर्ण सिद्ध, ऐश्वर्यादिरूप भग प्रत्येक युग में जिनके भीतर विद्यमान है, वे देवी दुर्गा 'भगवती' कही गयी हैं।

सर्वाणी

जो विश्व के सम्पूर्ण चराचर प्राणियों को जन्म, मृत्यु, जरा आदि की तथा मोक्षकी भी प्राप्ति कराती हैं, वे देवी अपने इसी गुण के कारण 'सर्वाणी' कही गयी हैं।

सर्वमंगला

'मंगल' शब्द मोक्ष का वाचक है और 'आ' शब्द दाताका। जो सम्पूर्ण मोक्ष देती हैं, वे दी देवी 'सर्वमंगला' हैं। 'मंगल' शब्द हर्ष, सम्पत्ति और कल्याण के अर्थ में प्रयुक्त होता है। जो उन सबको देती हैं, वे ही देवी 'सर्वमंगला' नामसे विख्यात हैं।

अम्बिका

'अम्बा' शब्द माता का वाचक है तथा वन्दन और पूजन-अर्थ में भी 'अम्ब' शब्द का प्रयोग होता है। वे देवी सबके द्वारा पूजित और वन्दित हैं तथा तीनों लोकों की माता हैं, इसलिये 'अम्बिका' कहलाती हैं। thumb|दुर्गा|left|150px वैष्णवी

देवी श्रीविष्णु की भक्ता, विष्णुरूपा तथा विष्णु की शक्ति हैं। साथ ही सृष्टकाल में विष्णु के द्वारा ही उनकी सृष्टि हुई है। इसलिये उनकी 'वैष्णवी' संज्ञा है।

गौरी

'गौर' शब्द पीले रंग, निर्लिप्त एवं निर्मल परब्रह्म परमात्मा के अर्थ में प्रयुक्त होता है। उन 'गौर' शब्दवाच्य परमात्मा की वे शक्ति हैं, इसलिये वे 'गौरी' कही गयी हैं। भगवान् शिव सबके गुरु हैं और देवी उनकी सती-साध्वी प्रिया शक्ति हैं। इसलिये 'गौरी' कही गयी हैं। श्रीकृष्ण ही सबके गुरु हैं और देवी उनकी माया है। इसलिये भी उनको 'गौरी' कहा गया है।

पार्वती

'पर्व' शब्द तिथिभेद (पूर्णिमा), पर्वभेद, कल्पभेद तथा अन्यान्य भेद अर्थ में प्रयुक्त होता है तथा 'ती' शब्द ख्याति के अर्थ में आता है। उन पर्व आदि में विख्यात होने से उन देवी की 'पार्वती' संज्ञा है। 'पर्वन्' शब्द महोत्सव-विशेष के अर्थ में आता है। उसकी अधिष्ठात्री देवी होने के नाते उन्हें 'पार्वती' कहा गया है। वे देवी पर्वत (गिरिराज हिमालय)- की पुत्री हैं। पर्वत पर प्रकट हुई हैं तथा पर्वत की अधिष्ठात्री देवी हैं। इसलिये भी उन्हें 'पार्वती' कहते हैं।'

सनातनी

'सना' का अर्थ है सर्वदा और 'तनी' का अर्थ है विद्यमाना। सर्वत्र और सब काल में विद्यमान होने से वे देवी 'सनातनी' कही गयी हैं।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

टीका टिप्पणी

  1. चैत्र या वासन्ती नवरात्र (हिन्दी) रीति डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2012।

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