काम की खुन्दक -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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<div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>काम की खुन्दक<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | <div style=text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;><font color=#003333 size=5>काम की खुन्दक<small> -आदित्य चौधरी</small></font></div><br /> | ||
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"पंडिज्जी धीरे...! पंडिज्जी धीरे...!" जूते के प्रत्येक प्रहार पर छोटे की कराह निकल जाती। साथ ही छोटे के सिर पर जूता पड़ते ही पहलवान की आँखों में तरह-तरह के चमकीले रंगों की रोशनी डिस्को लाइट जैसी भी दिख जाती। | "पंडिज्जी धीरे...! पंडिज्जी धीरे...!" जूते के प्रत्येक प्रहार पर छोटे की कराह निकल जाती। साथ ही छोटे के सिर पर जूता पड़ते ही पहलवान की आँखों में तरह-तरह के चमकीले रंगों की रोशनी डिस्को लाइट जैसी भी दिख जाती। | ||
बीस जूते खाकर छोटे बोला "पंडिज्जी रुक जाओ, जूतों से अच्छी तो प्याज़ पड़ रही थी। मैं प्याज़ ही खाऊँगा।" प्याज़ खाने और जूते खाने का सिलसिला काफी देर चलता रहा। कुल-मिलाकर हुआ ये कि छोटे ने अस्सी प्याज़ खाली और जूते पूरे सौ पड़े और एक रुपया भी इनाम मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था। | बीस जूते खाकर छोटे बोला "पंडिज्जी रुक जाओ, जूतों से अच्छी तो प्याज़ पड़ रही थी। मैं प्याज़ ही खाऊँगा।" प्याज़ खाने और जूते खाने का सिलसिला काफी देर चलता रहा। कुल-मिलाकर हुआ ये कि छोटे ने अस्सी प्याज़ खाली और जूते पूरे सौ पड़े और एक रुपया भी इनाम मिलने का तो सवाल ही नहीं उठता था। | ||
दरअसल छोटे पहलवान की असमंजस वाली मन: स्थिति हम में से बहुतों के साथ घटती रहती है। अपनी वर्तमान स्थिति, नौकरी, पढ़ाई, स्थान, गृहस्थी, जीवन साथी आदि जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर हम असंतुष्ट रहते हैं और जिनका विश्लेषण और मूल्यांकन भी नहीं करना चाहते। परिवर्तन-शीलता मनुष्य का सहज स्वभाव है, इसलिए किसी भी स्थान, व्यक्ति या कार्य से ऊब हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया है और यही प्रक्रिया हमारी असंतुष्टि का कारण बनती है। | दरअसल छोटे पहलवान की असमंजस वाली मन: स्थिति हम में से बहुतों के साथ घटती रहती है। अपनी वर्तमान स्थिति, नौकरी, पढ़ाई, स्थान, गृहस्थी, जीवन साथी आदि जैसे कई मुद्दे हैं, जिन पर हम असंतुष्ट रहते हैं और जिनका विश्लेषण और मूल्यांकन भी नहीं करना चाहते। परिवर्तन-शीलता मनुष्य का सहज स्वभाव है, इसलिए किसी भी स्थान, व्यक्ति या कार्य से ऊब हो जाना एक सामान्य प्रक्रिया है और यही प्रक्रिया हमारी असंतुष्टि का कारण बनती है। | ||
मनुष्य के इस स्वभाव पर शोध होते रहते हैं, जैसे कि लगातार इक्कीस मिनट तक कोई एक ही चीज़ को सुनते या देखते रहने से हमारा ध्यान उसकी ओर से हटने लगता है। | मनुष्य के इस स्वभाव पर शोध होते रहते हैं, जैसे कि लगातार इक्कीस मिनट तक कोई एक ही चीज़ को सुनते या देखते रहने से हमारा ध्यान उसकी ओर से हटने लगता है। | ||
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<small>प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक</small> | <small>प्रशासक एवं प्रधान सम्पादक</small> | ||
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Revision as of 08:32, 12 November 2012
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश काम की खुन्दक -आदित्य चौधरी "ये प्याज़ कमबख़्त ऐसी चीज़ है जो ज़्यादा नहीं खाई जा सकती... और हम तो भैया प्याज़ का एक टुकड़ा भी नहीं खा सकते !" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ