देवप्रयाग: Difference between revisions

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Revision as of 09:49, 27 July 2014

[[चित्र:Devprayag.jpg|thumb|300px|देवप्रयाग, उत्तराखंड]] देवप्रयाग उत्तराखंड में कुमायूँ हिमालय के केंद्रीय क्षेत्र में टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। यह अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद से नदी को 'गंगा' के नाम से जाना जाता है। संगम स्थल पर स्थित होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही देवप्रयाग का भी धार्मिक महत्त्व अत्यधिक है। हिन्दुओं के सर्वश्रेष्ठ धार्मिक स्थलों में से देवप्रयाग एक है।

स्थिति

देवप्रयाग समुद्र की सतह से 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका सबसे निकटतम शहर ऋषिकेश है, जो यहां से 70 किलोमीटर दूर है। यह स्थान उत्तराखण्ड राज्य के पंच प्रयागों में से एक माना जाता है।

नामकरण

देवप्रयाग भगवान श्रीराम से जुड़ा विशिष्ट तीर्थ है। देवप्रयाग को लेकर एक बड़ी प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार- सत युग में देव शर्मा नामक एक ब्राह्मण ने यहां बड़ा कठोर तप किया, इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि यह स्थान कालान्तर में तुम्हारे नाम से प्रसिद्ध होगा। तभी से इसे 'देव प्रयाग' कहा जाने लगा।

संगम

यहां पहाड़ के एक तरफ़ से अलकनंदा और दूसरी ओर से भागीरथी आकर जिस बिन्दु पर मिलती हैं, वह दृश्य अद्भुत है। लगता है घंटों अपलक निहारते रहें। यह संगम 'सास-बहू' के मिलन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है। 'सास' यानी भागीरथी और 'बहू' यानी अलकनंदा। भागीरथी जिस तरह हरहराकर, उछलती कूदती, तांडव-सा करती यहां पहुंचती है, उसे सास का प्रतिरूप माना गया है और अलकनंदा शांत, शरमाती-सी मानो लोकलाज में बंधी बहू का रूप धर अपने अस्तित्व को समर्पित कर देती है। दोनों की धाराएं मिलते हुए साफ देखी जा सकती हैं। अलकनंदा का जल थोड़ा मटमैला-सा, जबकि भागीरथी का निरभ्र आकाश जैसा नीला जल।

कथा

दोनों ओर ऊँचे पहाड़ों से घिरा यह संगम भगवान श्रीराम की हज़ारों साल पुरानी स्मृतियों को आज भी अपने में समेटे हुए है। कथा है कि जब लंका विजय कर राम लौटे तो जहां राक्षसी शक्ति के संहार का यश उनके साथ जुड़ा था, वहीं रावण वध के बाद ब्राह्मण हत्या का प्रायश्चित दोष भी उन्हें लगा। ऋषि-मुनियों ने उन्हें सुझाया कि देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के संगम तट पर तपस्या करने से ही उन्हें ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति मिल सकती है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे, निष्कलंक जीवनव्रती। वे ब्राह्मण हत्या का कलंक लेकर कैसे जी सकते थे। इसलिए उन्होंने ऋषि-मुनियों का आदेश शिरोधार्य कर इस स्थान को अपनी साधना स्थली बनाया और यहीं एक शिला पर बैठकर दीर्घ अवधि तक तप किया। पंडे-पुरोहित उस शिला को दिखाते हैं। इस विशाल शिला पर आज भी ऐसे निशान बने हैं, जैसे लंबे समय तक किसी के वहां पालथी मारकर बैठने से घिसकर बने हों। एक शिला पर चरणों की सी आकृति बनी है, जो भगवान राम के चरण चिन्ह बताए जाते हैं।[1]

आकर्षक स्थल

इसके बारे में कहा जाता है कि जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो 33 करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया, जो गंगा की जन्म भूमि है। गढ़वाल क्षेत्र मे मान्यतानुसार भगीरथी नदी को 'सास' तथा अलकनंदा नदी को 'बहू' कहा जाता है। यहां के मुख्य आकर्षण में संगम के अलावा एक शिव मंदिर तथा रघुनाथ मंदिर हैं, जिनमें रघुनाथ मंदिर द्रविड शैली से निर्मित है। देवप्रयाग प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। यहां का सौन्दर्य अद्वितीय है। इसके निकट डांडा नागराज मंदिर और चंद्रबदनी मंदिर भी दर्शनीय हैं। देवप्रयाग को 'सुदर्शन क्षेत्र' भी कहा जाता है। यहां कौवे दिखायी नहीं देते, जो की एक आश्चर्य की बात है। पंचप्रयागों में एक देवप्रयाग (हिन्दी) श्री न्यूज। अभिगमन तिथि: 27 जुलाई, 2014।

व्यवसाय

देवप्रयाग में चावल, गेहूँ, जौ, सरसों, राई और आलू का व्यवसाय होता है।

कब जाएँ

जनवरी से जून और सितंबर से दिसंबर का समय देवप्रयाग जाने के लिए उचित है।

कैसे पहुँचें

देवप्रयाग पहुंचने के लिए उत्तराखण्ड परिवहन की बस सेवा ली जा सकती है। साथ ही यात्री अपनी निजी गाड़ी से भी यहां पहुंच सकते हैं। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है और निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट है, जो देहरादून में स्थित हैं। देश की राजधानी दिल्ली से इस स्थान की दूरी लगभग 300 किलोमीटर है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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