काम की खुन्दक -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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"लेकिन अगर नहीं खा पाया तो...?" लाला ने पंडित जी से पूछा लेकिन छोटे ने बीच में ही बात काट कर कहा | "लेकिन अगर नहीं खा पाया तो...?" लाला ने पंडित जी से पूछा लेकिन छोटे ने बीच में ही बात काट कर कहा | ||
"तो फिर सौ जूते मारना मेरी चाँद में... अगर सौ प्याज़ ना खाऊँ तो..." | "तो फिर सौ जूते मारना मेरी चाँद में... अगर सौ प्याज़ ना खाऊँ तो..." | ||
पंडित ने सौ प्याज़ गिनकर छोटे के सामने रख दीं और छोटे ने खाना शुरू कर दिया। लगातार पाँच प्याज़ खाने से छोटे की आँखों से आँसू बहने लगे। पानी पीकर उसने पाँच प्याज़ और खालीं। अब हालत ज़्यादा ख़राब हो गई। पहलवान ने सोचा कि जूते खाना ज़्यादा आसान रहेगा। | |||
"पंडिज्जी ! मुझसे प्याज़ नहीं खाई जा रही, आप जूते ही मार लो।" | "पंडिज्जी ! मुझसे प्याज़ नहीं खाई जा रही, आप जूते ही मार लो।" | ||
पंडित जी जूतों के मामले में काफ़ी प्रयोगधर्मी दृष्टिकोण रखते थे। विभिन्न मौसमों का सामना करते-करते जूतों का भार और आकार किसी भी जीव-वैज्ञानिक के लिए वैसी ही चुनौती बन सकता था जैसी कि उसे हज़ारों वर्ष पहले लुप्त हो चुके भारी भरकम आदि मानव 'नीएन्डरटल' के जूते कहीं खुदाई में मिल जाने पर मिलती। | पंडित जी जूतों के मामले में काफ़ी प्रयोगधर्मी दृष्टिकोण रखते थे। विभिन्न मौसमों का सामना करते-करते जूतों का भार और आकार किसी भी जीव-वैज्ञानिक के लिए वैसी ही चुनौती बन सकता था जैसी कि उसे हज़ारों वर्ष पहले लुप्त हो चुके भारी भरकम आदि मानव 'नीएन्डरटल' के जूते कहीं खुदाई में मिल जाने पर मिलती। |
Revision as of 02:49, 25 December 2014
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20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश काम की खुन्दक -आदित्य चौधरी "ये प्याज़ कमबख़्त ऐसी चीज़ है जो ज़्यादा नहीं खाई जा सकती... और हम तो भैया प्याज़ का एक टुकड़ा भी नहीं खा सकते !" |
टीका टिप्पणी और संदर्भ