कनफ़्यूशीवाद: Difference between revisions
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कनफ़्यूशीवाद चीन के महान दार्शनिक 'कनफ़्यूशस' अथवा 'कनफ़्यूशियस' के दार्शनिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विचारों पर आधारित मत को कहा जाता है। इसे 'कुंगफुत्सीवाद' नाम भी दिया गया है।
समाज का संगठन
कनफ़्यूशस के मतानुसार भलाई मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। मनुष्य को यह स्वाभाविक गुण ईश्वर से प्राप्त हुआ है। अत: इस स्वभाव के अनुसार कार्य करना ईश्वर की इच्छा का आदर करना है और उसके अनुसार कार्य न करना ईश्वर की अवज्ञा करना है। कनफ़्यूशीवाद के अनुसार समाज का संगठन पाँच प्रकार के संबंधों पर आधारित है[1]-
- शासक और शासित
- पिता और पुत्र
- ज्येष्ठ भ्राता और कनिष्ठ भ्राता
- पति और पत्नी
- इष्ट मित्र
उपरोक्त पाँच में से पहले चार संबंधों में, एक ओर आदेश देना और दूसरी ओर उसका पालन करना निहित है। शासक का धर्म आज्ञा देना और शासित का कर्तव्य उस आज्ञा का पालन करना है। इसी प्रकार पिता, पति और बड़े भाई का धर्म आदेश देना है और पुत्र, पत्नी एवं छोटे भाई का कर्तव्य आदेशों का पालन करना है। परंतु साथ ही यह आवश्यक है कि आदेश देने वाले का शासन औचित्य, नीति और न्याय पर आधारित हो। तभी शासित गण से भी यह आशा की जा सकती है कि वे विश्वास तथा ईमानदारी से आज्ञाओं का पालन कर सकेंगे। पाँचवें, अर्थात् मित्रों के संबंध में पारस्परिक गुणों का विकास ही मूल निर्धारक सिद्धांत होना चाहिए। जब इन संबंधों के अंतर्गत व्यक्तियों के रागद्वेष के कारण कर्तव्यों की अवहेलना होती है, तभी एक प्रकार की सामाजिक अराजकता की अवस्था उत्पन्न हो जाती है।
मूल सिद्धांत
मनुष्य में अपने श्रेष्ठ व्यक्तियों का अनुकरण करने का स्वाभाविक गुण है। यदि किसी समाज में आदर्श शासक प्रतिष्ठित हो जाए तो वहाँ की जनता भी आदर्श जनता बन सकती है। कुशल शासक अपने चरित्र का उदाहरण प्रस्तुत करके अपने राज्य की जनता का सर्वतोमुखी सुधार कर सकता है। कनफ़्यूशीवाद की शिक्षा में धर्मनिरपेक्षता का सर्वांगपूर्ण उदाहरण मिलता है। कनफ़्यूशीवाद का मूल सिद्धांत इस स्वर्णिम नियम पर आधारित है कि "दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो, जैसा तुम उनके द्वारा अपने प्रति किए जाने की इच्छा करते हो"।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ कनफ़्यूशीवाद (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 29 जून, 2014।