यू.एन. ढेबर: Difference between revisions

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== संक्षिप्त परिचय ==
== संक्षिप्त परिचय ==
उच्चारंगरे नवल शंकर ढेबर का जन्म [[21 सितम्बर]], [[1905]] को जामनगर से ग्यारह मील दूर गंगाजला ग्राम में हुआ था। नवल शंकर नागर साम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते थे। उनके परिवार को गरीबी के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा।  
उच्चारंगरे नवल शंकर ढेबर का जन्म [[21 सितम्बर]], [[1905]] को जामनगर से ग्यारह मील दूर गंगाजला ग्राम में हुआ था। नवल शंकर नागर साम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते थे। उनके परिवार को ग़रीबी के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा।  
== शिक्षा ==
== शिक्षा ==
नवल शंकर ने शिक्षा के बाद वकालत की तैयारी शुरू की और बहुत शीघ्र वकील के रूप में नाम कमा लिया। [[महात्मा गांधी]] के प्रभाव से उन्होंने फायदेमंद वकालत के पेशे को [[1936]] में छोड़ दिया और देश की सेवा में स्वयं को अर्पित कर दिया।  
नवल शंकर ने शिक्षा के बाद वकालत की तैयारी शुरू की और बहुत शीघ्र वकील के रूप में नाम कमा लिया। [[महात्मा गांधी]] के प्रभाव से उन्होंने फायदेमंद वकालत के पेशे को [[1936]] में छोड़ दिया और देश की सेवा में स्वयं को अर्पित कर दिया।  

Revision as of 09:16, 12 April 2018

यू.एन. ढेबर
पूरा नाम उच्चारंगरे नवल शंकर ढेबर
अन्य नाम यू.एन. ढेबर
जन्म 21 सितम्बर, 1905
जन्म भूमि जामनगर
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद सौराष्ट्र मुख्यमंत्री
कार्य काल 1948
शिक्षा वकालत
जेल यात्रा 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान उनको पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।
विशेष योगदान नवल शंकर ने सौराष्ट्र में गांवों के उत्थान के लिये बहुत सुधार किये।
अन्य जानकारी नवल शंकर बहुत सी संस्थाओं से जुड़े रहे, जो देश को सामाजिक तथा शैक्षिक सेवा दे रही थी।
अद्यतन‎ 06:29, 2 जून 2017 (IST)

उच्चारंगरे नवल शंकर ढेबर (जन्म- 21 सितम्बर, 1905, जामनगर) भारतीय राजनीतिज्ञ थे, इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। नवल शंकर 1948 में सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री चुने गये। अपने प्रशासन के दौरान इन्होंने सौराष्ट्र में गांवों के उत्थान के लिये बहुत सुधार किये। 1962 में इन्हें लोक सभा के लिये चुना गया।

संक्षिप्त परिचय

उच्चारंगरे नवल शंकर ढेबर का जन्म 21 सितम्बर, 1905 को जामनगर से ग्यारह मील दूर गंगाजला ग्राम में हुआ था। नवल शंकर नागर साम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते थे। उनके परिवार को ग़रीबी के विरुद्ध संघर्ष करना पड़ा।

शिक्षा

नवल शंकर ने शिक्षा के बाद वकालत की तैयारी शुरू की और बहुत शीघ्र वकील के रूप में नाम कमा लिया। महात्मा गांधी के प्रभाव से उन्होंने फायदेमंद वकालत के पेशे को 1936 में छोड़ दिया और देश की सेवा में स्वयं को अर्पित कर दिया।

जेल यात्रा

1941 में गांधी जी ने नवल शंकर को चुनकर विरामगन में विशेष सत्याग्रह का काम सौंपा। नवल शंकर को कुछ समय बाद गिरफ्तार कर लिया गया, और छह महीने के लिये जेल हो गयी। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान उनको पुनः गिरफ्तार कर लिया गया।

राजनैतिक जीवन

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, नवल शंकर ने काठियावाड़ रियासत को भारत संघ में विलय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और काठियावाड़ संघ को ‘सौराष्ट्र’ पुकारा गया। 1948 में वह सौराष्ट्र के मुख्यमंत्री चुने गये। अपने प्रशासन के दौरान उन्होंने सौराष्ट्र में गांवों के उत्थान के लिये बहुत सुधार किये।

1955 में नवल शंकर को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुना गया। इस पद पर पाँच साल 1959 तक, कार्य करते रहे। अध्यक्ष के रूप में उनका पहला काम एक सप्ताह तक सभा में कांग्रेस के आला नेताओं को इकट्ठा करना रहा, ताकि फैसला हो सके कि किस तरह कांग्रेस देश की अच्छी तरह सेवा कर सके।

1962 में इन्हें लोक सभा के लिये चुना गया। नवल शंकर बहुत सी संस्थाओं से जुड़े रहे, जो देश को सामाजिक तथा शैक्षिक सेवा दे रही थी।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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