अक्षयवट: Difference between revisions

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*अक्षयवट को [[जैन]] भी पवित्र मानते हैं।  
*अक्षयवट को [[जैन]] भी पवित्र मानते हैं।  
*उनकी परम्परा के अनुसार इसके नीचे [[ऋषभदेव]] जी ने तप किया था।
*उनकी परम्परा के अनुसार इसके नीचे [[ऋषभदेव]] जी ने तप किया था।
* यह बट का वृक्ष प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर आज भी अवस्थित कहा जाता है।  
* यह बट का वृक्ष प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर आज भी अवस्थित कहा जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या= |url=}}</ref>





Latest revision as of 11:21, 19 May 2018

अक्षयवट इलाहाबाद में गंगा-यमुना संगम के पास क़िले के भीतर स्थित एक वृक्ष है।

  • यह सनातन विश्ववृक्ष माना जाता है, इस वृक्ष का पुराणों में वर्णन है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है जिसके एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं।
  • अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री युवान्‌ च्वांग के यात्रा विवरणों में मिलते हैं।
  • असंख्य यात्री इसकी पूजा करने के लिए आते हैं।
  • काशी और गया में भी अक्षयवट है, जिनकी पूजा-परिक्रमा की जाती है।
  • अक्षयवट को जैन भी पवित्र मानते हैं।
  • उनकी परम्परा के अनुसार इसके नीचे ऋषभदेव जी ने तप किया था।
  • यह बट का वृक्ष प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर आज भी अवस्थित कहा जाता है।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |

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