संतराम बी. ए.: Difference between revisions
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संतराम की सामाजिक सेवा कार्यों के प्रति विद्यार्थी जीवन से ही रुचि थी। [[स्वामी दयानन्द]] और श्रद्धानन्द के विचारों के सम्पर्क में आने से उनको और भी प्रेरणा मिली। वे देश में फैली जाति-पाति की प्रथा को मिटाने के लिए कुछ ठोस काम करना चाहते थे। इसी बीच उन्हें भाई परमानन्द का भाषण सुनने का अवसर मिला। उन्होंने अपने भाषण में जाति-पाति को दूर करने पर ज़ोर दिया था। संतराम को अपने विचारों का समर्थक एक प्रमुख व्यक्ति मिल गया। उसके बाद ही ‘जाति-पाति तोड़क मंडल’ की स्थापना हुई। भाई परमानन्द इसके प्रधान और संतराम मंत्री बने। ‘जाति-पाति तोड़क मंडल’ पंजाब तक ही सीमिति नहीं रह गया। कई राज्यों में इसकी शाखाएँ खुलीं। मंडल के प्रयास से सैंकड़ों अंतर्जातीय विवाह हुए। संतराम ने स्वयं अपनी संतानों का विवाह जाति भेद तोड़कर किया। यह उन दिनों बड़े साहस का काम था। वे देश में समान विचारों के व्यक्तियों के निरन्तर सम्पर्क में रहे। | संतराम की सामाजिक सेवा कार्यों के प्रति विद्यार्थी जीवन से ही रुचि थी। [[स्वामी दयानन्द]] और श्रद्धानन्द के विचारों के सम्पर्क में आने से उनको और भी प्रेरणा मिली। वे देश में फैली जाति-पाति की प्रथा को मिटाने के लिए कुछ ठोस काम करना चाहते थे। इसी बीच उन्हें भाई परमानन्द का भाषण सुनने का अवसर मिला। उन्होंने अपने भाषण में जाति-पाति को दूर करने पर ज़ोर दिया था। संतराम को अपने विचारों का समर्थक एक प्रमुख व्यक्ति मिल गया। उसके बाद ही ‘जाति-पाति तोड़क मंडल’ की स्थापना हुई। भाई परमानन्द इसके प्रधान और संतराम मंत्री बने। ‘जाति-पाति तोड़क मंडल’ पंजाब तक ही सीमिति नहीं रह गया। कई राज्यों में इसकी शाखाएँ खुलीं। मंडल के प्रयास से सैंकड़ों अंतर्जातीय विवाह हुए। संतराम ने स्वयं अपनी संतानों का विवाह जाति भेद तोड़कर किया। यह उन दिनों बड़े साहस का काम था। वे देश में समान विचारों के व्यक्तियों के निरन्तर सम्पर्क में रहे।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=878|url=}}</ref> | ||
==हिन्दी गद्य लेखक== | ==हिन्दी गद्य लेखक== | ||
संतराम बी. ए. अपने समय के प्रमुख हिन्दी गद्य लेखक थे। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ उनके निबन्धों को स्थान देती थीं। उन्होंने अपने जीवन में एक सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनकी आत्मकथा समकालीन दलित-विमर्श में विशेष रूप से प्रासंगिक हो उठी है। ‘जाति-पाति तोड़क’ पत्र के भी वे सम्पादक थे। उनका कहना था कि, ‘नैतिक श्रेष्ठता, चरित्र निर्माण और समाज की गंदगी दूर करना मेरे जीवन का मुख्य ध्येय रहा है, और यही लक्ष्य मेरे पूरे साहित्य में पाया जाता है’। उनका दृढ़ मत था कि, जब तक प्रान्तीयता और जातीयता नहीं छोड़ी जाती, तब तक सुदृढ़ राष्ट्र की कल्पना करना भी बेकार है। | संतराम बी. ए. अपने समय के प्रमुख हिन्दी गद्य लेखक थे। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ उनके [[निबन्ध|निबन्धों]] को स्थान देती थीं। उन्होंने अपने जीवन में एक सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनकी [[आत्मकथा]] समकालीन दलित-विमर्श में विशेष रूप से प्रासंगिक हो उठी है। ‘जाति-पाति तोड़क’ पत्र के भी वे सम्पादक थे। उनका कहना था कि, ‘नैतिक श्रेष्ठता, चरित्र निर्माण और समाज की गंदगी दूर करना मेरे जीवन का मुख्य ध्येय रहा है, और यही लक्ष्य मेरे पूरे साहित्य में पाया जाता है’। उनका दृढ़ मत था कि, जब तक प्रान्तीयता और जातीयता नहीं छोड़ी जाती, तब तक सुदृढ़ राष्ट्र की कल्पना करना भी बेकार है। | ||
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संतराम बी. ए.
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पूरा नाम | संतराम बी. ए. |
जन्म | 1886 |
जन्म भूमि | बस्ती गाँव, होशियारपुर, पंजाब |
मृत्यु | 31 मई, 1988 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | समाज सुधारक, लेखक |
विद्यालय | गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर |
शिक्षा | बी. ए. |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | संतराम बी. ए. ने अपने जीवन में एक सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनकी आत्मकथा समकालीन दलित-विमर्श में विशेष रूप से प्रासंगिक हो उठी है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
संतराम बी. ए. (अंग्रेज़ी: Santram B.A., जन्म: 1886; मृत्यु- 31 मई, 1988) प्रसिद्ध समाज सुधारक और हिन्दी के लेखक थे। संतराम का जन्म पंजाब में होशियारपुर के बस्ती गाँव में 1886 ई. में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा बजवाड़ा के हाई स्कूल में हुई थी। 1909 में उन्होंने गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर से बी. ए. की परीक्षा पास की। तभी से वे संतराम बी. ए. के नाम से प्रसिद्ध हुए।
समाज सुधारक
संतराम की सामाजिक सेवा कार्यों के प्रति विद्यार्थी जीवन से ही रुचि थी। स्वामी दयानन्द और श्रद्धानन्द के विचारों के सम्पर्क में आने से उनको और भी प्रेरणा मिली। वे देश में फैली जाति-पाति की प्रथा को मिटाने के लिए कुछ ठोस काम करना चाहते थे। इसी बीच उन्हें भाई परमानन्द का भाषण सुनने का अवसर मिला। उन्होंने अपने भाषण में जाति-पाति को दूर करने पर ज़ोर दिया था। संतराम को अपने विचारों का समर्थक एक प्रमुख व्यक्ति मिल गया। उसके बाद ही ‘जाति-पाति तोड़क मंडल’ की स्थापना हुई। भाई परमानन्द इसके प्रधान और संतराम मंत्री बने। ‘जाति-पाति तोड़क मंडल’ पंजाब तक ही सीमिति नहीं रह गया। कई राज्यों में इसकी शाखाएँ खुलीं। मंडल के प्रयास से सैंकड़ों अंतर्जातीय विवाह हुए। संतराम ने स्वयं अपनी संतानों का विवाह जाति भेद तोड़कर किया। यह उन दिनों बड़े साहस का काम था। वे देश में समान विचारों के व्यक्तियों के निरन्तर सम्पर्क में रहे।[1]
हिन्दी गद्य लेखक
संतराम बी. ए. अपने समय के प्रमुख हिन्दी गद्य लेखक थे। सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएँ उनके निबन्धों को स्थान देती थीं। उन्होंने अपने जीवन में एक सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की। उनकी आत्मकथा समकालीन दलित-विमर्श में विशेष रूप से प्रासंगिक हो उठी है। ‘जाति-पाति तोड़क’ पत्र के भी वे सम्पादक थे। उनका कहना था कि, ‘नैतिक श्रेष्ठता, चरित्र निर्माण और समाज की गंदगी दूर करना मेरे जीवन का मुख्य ध्येय रहा है, और यही लक्ष्य मेरे पूरे साहित्य में पाया जाता है’। उनका दृढ़ मत था कि, जब तक प्रान्तीयता और जातीयता नहीं छोड़ी जाती, तब तक सुदृढ़ राष्ट्र की कल्पना करना भी बेकार है।
निधन
संतराम बी. ए. का 31 मई, 1988 ई. को देहान्त हो गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 878 |
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