मदन पुरी का फ़िल्मी कॅरियर: Difference between revisions

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==फ़िल्मी सफर==
==फ़िल्मी सफर==
1333 के. एल. सहगल उन दिनों के यानि ’40 के दशक में सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाले स्टार थे। मदन पुरी के मुताबिक ‘उमर खयाम’ फ़िल्म में काम करने के लिए सहगल साहब को 1 लाख रुपये मिले थे! सहगल जैसे सुपर स्टार से मदन पुरी का पारिवारिक संबंध था। वे मदन जी की बुआ के बेटे थे। कलकत्ता में नौकरी करते करते, यानि पिताजी को बताये बिना ही, उन्हें दलसुख पंचोली की फ़िल्म ‘खज़ानची’ के एक गीत “सावन का नज़ारा है...” में पर्दे पर गीत गाते दिखने का मौका मिला। सिनेमा के लिए मेक अप लगाने का वह प्रथम प्रसंग था। फ़िल्म रिलीज़ होते ही पिक्चर तथा वो गाना दोनों सुपर हिट हो गए और उनके पिताजी ने ‘खज़ानची’ देखी तो अपने लाडले जैसे एक्टर को देख चौंक गए। उन्हें पता था कि मदन [[कलकत्ता]] में थे और ये पिक्चर तो [[लाहौर|लाहोर]] में बनी थी। परंतु, पिता एस. निहालचंद पुरी को और माता वेद कौर जी को कहाँ पता था कि ‘खज़ानची’ का वो एक ही गाना कलकत्ता के बोटनिकल गार्डन में शुट हुआ था और बाकी सारी फ़िल्म लाहौर के स्टुडियो में।<ref name="aa">{{cite web |url=http://tikhaaro.blogspot.in/2013/11/blog-post_3223.html|title=मदनपुरी.... ये आज भी ज़िन्दा ही है!|accessmonthday= 30 जून|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=tikhaaro.blogspot.in|language=हिन्दी}}</ref>
1333 के. एल. सहगल उन दिनों के यानि ’40 के दशक में सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाले स्टार थे। मदन पुरी के मुताबिक़ ‘उमर खयाम’ फ़िल्म में काम करने के लिए सहगल साहब को 1 लाख रुपये मिले थे! सहगल जैसे सुपर स्टार से मदन पुरी का पारिवारिक संबंध था। वे मदन जी की बुआ के बेटे थे। कलकत्ता में नौकरी करते करते, यानि पिताजी को बताये बिना ही, उन्हें दलसुख पंचोली की फ़िल्म ‘खज़ानची’ के एक गीत “सावन का नज़ारा है...” में पर्दे पर गीत गाते दिखने का मौका मिला। सिनेमा के लिए मेक अप लगाने का वह प्रथम प्रसंग था। फ़िल्म रिलीज़ होते ही पिक्चर तथा वो गाना दोनों सुपर हिट हो गए और उनके पिताजी ने ‘खज़ानची’ देखी तो अपने लाडले जैसे एक्टर को देख चौंक गए। उन्हें पता था कि मदन [[कलकत्ता]] में थे और ये पिक्चर तो [[लाहौर|लाहोर]] में बनी थी। परंतु, पिता एस. निहालचंद पुरी को और माता वेद कौर जी को कहाँ पता था कि ‘खज़ानची’ का वो एक ही गाना कलकत्ता के बोटनिकल गार्डन में शुट हुआ था और बाकी सारी फ़िल्म लाहौर के स्टुडियो में।<ref name="aa">{{cite web |url=http://tikhaaro.blogspot.in/2013/11/blog-post_3223.html|title=मदनपुरी.... ये आज भी ज़िन्दा ही है!|accessmonthday= 30 जून|accessyear= 2017|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=tikhaaro.blogspot.in|language=हिन्दी}}</ref>


मदन पुरी अब [[कलकत्ता]] में छोटी छोटी भूमिकाओं में काम करने लगे थे। जिस के फल स्वरूप उन्होंने ‘माय सिस्टर’, ‘राज लक्ष्मी’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘बनफुल’ जैसी फिल्मों में काम किया और एक दिन ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोडकर वे [[1945]] में तीन हजार रुपये लेकर [[बम्बई]] चले गए। उनके पिताजी को ये अच्छा नहीं लगा। क्योंकि तब तक मदन जी की शादी भी हो चूकी थी और वे दो बच्चों के पिता भी बन चूके थे। मगर तीन ही महिने में उन्हें बतौर हीरो ‘कुलदीप’ फ़िल्म में लिया गया, जो फ्लॉप हो गई। इतना ही नहीं पहले पहल आई चारों पिक्चरें असफल रहीं। तब वे पहली बार खलनायक बने देव आनंद और सुरैया की फ़िल्म ‘विद्या’ में। उस वक्त से जो हीरोगीरी छुटी और पहले विलन तथा बाद में चरित्र अभिनेता बने। उस प्रकार की भूमिकाओं में 1985 में उनके देहांत तक मदन पुरी ने काम किया। खास कर ’60 और ’70  के दशक में आई कितनी ही हिट और सुपर हिट फ़िल्मों के वे हिस्सा थे।<ref name="aa"/>
मदन पुरी अब [[कलकत्ता]] में छोटी छोटी भूमिकाओं में काम करने लगे थे। जिस के फल स्वरूप उन्होंने ‘माय सिस्टर’, ‘राज लक्ष्मी’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘बनफुल’ जैसी फिल्मों में काम किया और एक दिन ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोडकर वे [[1945]] में तीन हजार रुपये लेकर [[बम्बई]] चले गए। उनके पिताजी को ये अच्छा नहीं लगा। क्योंकि तब तक मदन जी की शादी भी हो चूकी थी और वे दो बच्चों के पिता भी बन चूके थे। मगर तीन ही महिने में उन्हें बतौर हीरो ‘कुलदीप’ फ़िल्म में लिया गया, जो फ्लॉप हो गई। इतना ही नहीं पहले पहल आई चारों पिक्चरें असफल रहीं। तब वे पहली बार खलनायक बने देव आनंद और सुरैया की फ़िल्म ‘विद्या’ में। उस वक्त से जो हीरोगीरी छुटी और पहले विलन तथा बाद में चरित्र अभिनेता बने। उस प्रकार की भूमिकाओं में 1985 में उनके देहांत तक मदन पुरी ने काम किया। खास कर ’60 और ’70  के दशक में आई कितनी ही हिट और सुपर हिट फ़िल्मों के वे हिस्सा थे।<ref name="aa"/>

Latest revision as of 09:53, 11 February 2021

Template:साँचा:मदन पुरी विषय सूची Template:साँचा:सूचना बक्सा मदन पुरी मदन पुरी रंगमंच तथा हिन्दी सिनेमा के सबसे मशहूर खलनायक के रूप में प्रसिद्धि बटोरने वाले अभिनेता थे। उन्होंने हीरो के रूप में सन 1947 में दो तीन फिल्मों में में काम किया लेकिन वह पिक्चरें बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिट गई तो किसी निर्माता ने भी उन्हें हीरो नही लिया तो उन्होंने विलेन के रोल स्वीकार करने शुरू कर दिये और इसमें उन्हें सफलता भी मिली। आज तक वह कुल मिलाकर 150 फिल्मों में खलनायक की भूमिका में काम कर चुके हैं। इसके अलावा 10 फिल्में ऐसी हैं जिनमें उन्होंने चीनी आदमी के रोल किये हैं। और 50 फिल्में और हैं जिनमें उन्होंने तरह-तरह के कैरेक्टर रोल किये हैं।[1]

फ़िल्मी सफर

1333 के. एल. सहगल उन दिनों के यानि ’40 के दशक में सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाले स्टार थे। मदन पुरी के मुताबिक़ ‘उमर खयाम’ फ़िल्म में काम करने के लिए सहगल साहब को 1 लाख रुपये मिले थे! सहगल जैसे सुपर स्टार से मदन पुरी का पारिवारिक संबंध था। वे मदन जी की बुआ के बेटे थे। कलकत्ता में नौकरी करते करते, यानि पिताजी को बताये बिना ही, उन्हें दलसुख पंचोली की फ़िल्म ‘खज़ानची’ के एक गीत “सावन का नज़ारा है...” में पर्दे पर गीत गाते दिखने का मौका मिला। सिनेमा के लिए मेक अप लगाने का वह प्रथम प्रसंग था। फ़िल्म रिलीज़ होते ही पिक्चर तथा वो गाना दोनों सुपर हिट हो गए और उनके पिताजी ने ‘खज़ानची’ देखी तो अपने लाडले जैसे एक्टर को देख चौंक गए। उन्हें पता था कि मदन कलकत्ता में थे और ये पिक्चर तो लाहोर में बनी थी। परंतु, पिता एस. निहालचंद पुरी को और माता वेद कौर जी को कहाँ पता था कि ‘खज़ानची’ का वो एक ही गाना कलकत्ता के बोटनिकल गार्डन में शुट हुआ था और बाकी सारी फ़िल्म लाहौर के स्टुडियो में।[2]

मदन पुरी अब कलकत्ता में छोटी छोटी भूमिकाओं में काम करने लगे थे। जिस के फल स्वरूप उन्होंने ‘माय सिस्टर’, ‘राज लक्ष्मी’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘बनफुल’ जैसी फिल्मों में काम किया और एक दिन ब्रिटिश सरकार की नौकरी छोडकर वे 1945 में तीन हजार रुपये लेकर बम्बई चले गए। उनके पिताजी को ये अच्छा नहीं लगा। क्योंकि तब तक मदन जी की शादी भी हो चूकी थी और वे दो बच्चों के पिता भी बन चूके थे। मगर तीन ही महिने में उन्हें बतौर हीरो ‘कुलदीप’ फ़िल्म में लिया गया, जो फ्लॉप हो गई। इतना ही नहीं पहले पहल आई चारों पिक्चरें असफल रहीं। तब वे पहली बार खलनायक बने देव आनंद और सुरैया की फ़िल्म ‘विद्या’ में। उस वक्त से जो हीरोगीरी छुटी और पहले विलन तथा बाद में चरित्र अभिनेता बने। उस प्रकार की भूमिकाओं में 1985 में उनके देहांत तक मदन पुरी ने काम किया। खास कर ’60 और ’70 के दशक में आई कितनी ही हिट और सुपर हिट फ़िल्मों के वे हिस्सा थे।[2]

मदन जी को ‘आराधना’ के उस करूणामय जैलर के रूप में कौन भूल सकता है; जो रिटायर होकर कैदी शर्मिला टैगोर को अपने घर ले जाते हैं? तो दुसरी और ‘उपकार’ में भाई भाई के बीच आग लगाकर खुश होने वाले खलनायक ‘चरणदास’ को भी कोई कैसे भूल सकता है? उनके छोटे भाई अमरीश पुरी के साथ दिलीप कुमार की मुख्य भूमिका वाली यश चोपड़ा की फ़िल्म ‘मशाल’ में वे ‘तोलाराम’ बने थे और हर बार अमरीशजी अपनी भारी आवाज़ में कहते थे, “ज़माना बहोत खराब है, तोलाराम”! उनकी 250 से अधिक फ़िल्मों और उनकी भूमिकाओं के बारे में इतने छोटे से आलेख में लिखना, ‘डोन’ के अमिताभ के स्टाइल में कहें तो, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. उपलब्धियां पर कितनी? – मदन पुरी (हिन्दी) tikhaaro.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 30 जून, 2017।
  2. 2.0 2.1 2.2 मदनपुरी.... ये आज भी ज़िन्दा ही है! (हिन्दी) tikhaaro.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 30 जून, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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