कोकामुख

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कोकामुख का उल्लेख महाभारत, वनपर्व में हुआ है-

'कोकामुखमुपस्पृश्य ब्रह्मचारी यतव्रत:, जातिस्मरत्वमाप्नोति दृष्टमेतत् पुरातनै:'[1]

अर्थात् संयम-सम्पन्न ब्रह्मचारी कोकामुख तीर्थ में जाने से पूर्वजन्मों का वृत्तांत जान लेता है। यह बात प्राचीन लोगों की अनुभूत है। महाभारत, वनपर्व के अंतर्गत तीर्थों के वर्णन में इसका उल्लेख है।

  • प्रसंग से कोकामुख की स्थिति पंजाब में जान पड़ती है, क्योंकि आगे 84, 160 में सरस्वती नदी के तीर्थों का वर्णन है।[2]
  • कोकामुख का उल्लेख 'उर्वशीतीर्थ' और 'कुंभकर्णाश्रम'[3] के आगे है, किंतु इन स्थानों का अभिज्ञान अनिश्चत है।
  • श्री नं. ला. डे के अनुसार कोकामुख, ज़िला पूर्णिया में स्थित वराह क्षेत्र है।
  • श्री वासुदेव शरण अग्रवाल के मत में यह गंगा की उत्तरपूर्वी सहायक नदी सुनकोसी और ताम्ररुणा नदियों के संगम पर स्थित था।[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, वनपर्व 84, 158.
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 229 |
  3. कुंभकर्णाश्रम (84, 157)
  4. कादंबिनी, सितम्बर 1962.

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