कंकण

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कंकण - संज्ञा पुल्लिंग (संस्कृत कङ्कण)[1]

1. कलाई में पहनने का एक आभूषण कंकना। कड़ा। कडुवा। चूड़ा।

उदाहरण

है कर कंकण दर्पण देषै।[2]

2. एक धागा जिसमें सरसों आदि की पुटली पीले कपड़े में बाँधकर लोहे के एक छल्ले के साथ विवाह के समय से पहले दुलहा या दुलहिन के हाथ में रक्षार्थ बाँधते हैं।

विशेष - विवाह में देशाचार के अनुसार चोकर, सरसों, अजवायन आदि की नौ पोटलियाँ पीले कपड़े में लाल तागे से बाँधते हैं। एक तो लोहे के छल्ले के साथ दूल्हा या दुलहिन के हाथ में बाँध दी जाती है और शेष आठ मूसल, चक्की, ओखली, पीढ़ा, हरिस, लोढ़ा, कलश आदि में बाँधी जाती है।

3. एक प्रकार का षाड़व राग, जो गांधार से आरम्भ होता है और जिसमें पंचम स्वर वर्जित है। इसमें प्राय: मध्यम स्वर का अधिक प्रयोग होता है। इसके गाने का समय दोपहर के उपरांत संध्या तक होता है।

क्रिया प्रयोग - बाँधना। खोलना। पहनना। पहनाना।

4. ताल के आठ भेदों में से एक।

5. आभूषण। मंडन[3]

6. मुकुट। ताज[4]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हिंदी शब्द सागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी.ए. (मूल सम्पादक) |प्रकाशक: शंभुनाथ वाजपेयी द्वारा, नागरी मुद्रण वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 716 |
  2. सुंदरदास ग्रंथावली, पृष्ठ 586, दो भाग, सं. हरिनारायण शर्मा, राजस्थान रिसर्च सोसायटी, कलकत्ता, प्रथम संस्करण
  3. अन्य कोश
  4. अन्य कोश

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