सत्तरिया नृत्य

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सत्तरिया नृत्य (अंग्रेज़ी: Sattriya Dance) असम का लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्य है। वहां हर घर की लड़कियां इसे सीखतीं हैं। असम में कला, साहित्य और संस्कृति के प्रति जनमानस में गहरी अभिरुचि है। शहर के हर चौराहे पर किताब और वाद्य यंत्रों की दुकानें नजर आती हैं। फिर, महान संत शंकर देव ने सत्र परंपरा को स्थापित किया। उसे आज भी समाज सत्तरिया नृत्य संगीत को प्रोत्साहित करके किसी न किसी रूप में संरक्षित कर रहा है। इस क्रम में संगीत नाटक अकादमी का प्रयास भी सराहनीय है। यह तथ्य भी महत्त्वपूर्ण है कि कुछ कलाकार अपने प्रयासों से इस नृत्य को असम के अलावा, देश के सभी प्रदेशों के लोगों से इसे परिचित करवाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसमें एक नाम नवोदित नृत्यांगना मीनाक्षी मेधी का है।

परिचय

'सत्तरिया नृत्य' नृत्य और नृत्य नाटक की उन भाव-भगिमाओं को संदर्भित करता है जिनका विकास असम के सत्तराओं अथवा मठों में सोलहवीं सदी के पश्‍चात हुआ, जब सन्‍त और समाज सुधारक शंकर देव (1449-1586 ई.) द्वारा प्रचारित वैष्णव आस्‍था भूमि पर फैली। यह भारतीय शास्त्रीय नृत्य रूप के भीतर एक विशिष्‍ट शैली है जो कृष्ण की भक्ति पर केन्द्रित हाथ के इशारे की विकसित भाषा (हस्‍त), कदमों के प्रयोग (पाद कर्म), गति और अभिव्‍यक्ति (नृत्‍य एवं अभिनय), तथा प्रदर्शनों की फेहरिस्‍त पर आधारित है।[1]

नृत्य शैली

20वीं शताब्‍दी के द्वितीय भाग के पश्‍चात से, जब यह मठीय कला इसके कलाकारों द्वारा सत्तराओं से बाहर फैली, सत्तरिया नृत्‍य भी आधुनिक रंगमंच कला के रूप में प्रस्‍तुत किया जाने लगा। आज मंच पर एक कलाकार कभी-कभी नई कोरियोग्राफी द्वारा सहायता लेकर परम्‍परागत प्रदर्शनों से ग्रहण किये गये कार्यक्रम प्रस्‍तुत करता है। आमतौर पर यह सत्तरा में प्रदर्शन के संचालक सूत्रधार के नृत्‍य द्वारा देवताओं की प्रार्थना, कृष्ण अथवा राम से प्रारम्‍भ होता है। चुने हुए विषय को नृत्‍य की इन शाखाओं में उसकी पूर्ण निपुणता के साथ अभिन्‍य विस्‍तार देते हुए नर्तक तब सत्तराओं के विशाल साहित्‍य पर आधारित शुद्ध नृत्‍य और अभिन्‍य का मिश्रण प्रस्‍तुत कर सकता है।

रमदानी, चाली, मेला नाच और झूमर नृत्‍य के लिए कार्य क्षेत्र जबकि अभिनय को गीटर नाच के रूप में प्रस्‍तुत किया जा सकता है। समूह नृत्‍य भी परंपरागत और आधुनिक सत्तरिया नृत्‍य में आम है और ये संगीतकारों के एक समूह द्वारा ड्रमों, गायन बायन पर मंचित लघु संगीतमय ‘मध्‍यांतर’ के साथ प्रारंभ होता है। संपूर्ण रूप से परंपरागत सत्तरिया नृत्‍य की शैली में मूलत: नृत्‍य नाटक भी आज मंच पर प्रस्‍तुत किए जाते हैं। नृत्‍य के संगीतमय संघटक इसके लयबद्ध, माधुरीय और गीतात्‍मक पहलुओं में समृद्ध और भिन्‍न है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. नृत्य (हिंदी) indiaculture.nic.in। अभिगमन तिथि: 24 सितम्बर, 2021।

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