Difference between revisions of "उद्धव कुण्ड गोवर्धन"

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[[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], [[गोवर्धन]] के ठीक पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाहिनी ओर उद्धव कुण्ड है। [[स्कन्द पुराण]] के [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]]–माहात्म्य प्रसंग में इसका बड़ा ही रोचक वर्णन है। [[वज्रनाभ]] महाराज ने [[शाण्डिल्य]] आदि ऋषियों के आनुगत्य में यहाँ उद्धव कुण्ड का प्रकाश किया। उद्धव जी यहाँ पास में ही [[गोपी|गोपियों]] की चरणधूलि में अभिषिक्त होने के लिए तृण–गुल्म के रूप में सर्वदा निवास करते हैं।
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'''उद्धव कुण्ड''' [[कुसुम सरोवर गोवर्धन|कुसुम सरोवर]], [[गोवर्धन]] के ठीक पश्चिम में परिक्रमा मार्ग पर दाहिनी ओर स्थित है। [[पुराण|पुराणों]] आदि में भी इस कुण्ड का बड़ा ही वर्णन किया गया है। [[उद्धव|उद्धव जी]] ने [[द्वारका]] की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी।
==कथा==
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==पुराण उल्लेख==
श्री [[कृष्ण]] लीला अप्रकट होने पर कृष्ण की [[द्वारका]] वाली पटरानियाँ बड़ी दु:खी थीं। एक बार वज्रनाभ जी उनको साथ लेकर यहाँ उपस्थित हुए। बड़े ज़ोरों से संकीर्तन आरम्भ हुआ। देखते–देखते उस महासंकीर्तन में कृष्ण के सभी परिकर क्रमश: आविर्भूत होने लगे। [[अर्जुन]] मृदंग वादन करते हुए नृत्य करने लगे। इस प्रकार द्वारका के सभी परिकर उस संकीर्तन मण्डल में नृत्य और कीर्तन करने लगे। हठात महाभागवत उद्धव भी वहाँ के तृण गुल्म से आविर्भूत होकर नृत्य में विभोर हो गये। फिर भला कृष्ण ही कैसे रह सकते थे? [[राधा|राधिका]] आदि सखियों के साथ वे भी उस महासंकीर्तन [[रासलीला|रास]] में आविर्भूत हो गये। थोड़ी देर के बाद ही वे अन्तर्धान हो गये। उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी।
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[[स्कन्द पुराण]] के [[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]] माहात्म्य प्रसंग में इसका बड़ा ही रोचक वर्णन है। [[वज्रनाभ]] महाराज ने शाण्डिल्य आदि ऋषियों के आनुगत्य में यहाँ उद्धव कुण्ड का प्रकाश किया। उद्धव जी यहाँ पास में ही [[गोपी|गोपियों]] की चरणधूलि में अभिषिक्त होने के लिए तृण–गुल्म के रूप में सर्वदा निवास करते हैं।
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====कथा====
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[[कृष्णलीला]] अप्रकट होने पर [[कृष्ण]] की [[द्वारका]] वाली पटरानियाँ बड़ी दु:खी थीं। एक बार वज्रनाभ जी उनको साथ लेकर यहाँ उपस्थित हुए। बड़े ज़ोरों से संकीर्तन आरम्भ हुआ। देखते–देखते उस महासंकीर्तन में कृष्ण के सभी परिकर क्रमश: आविर्भूत होने लगे। [[अर्जुन]] [[मृदंग]] वादन करते हुए नृत्य करने लगे। इस प्रकार द्वारका के सभी परिकर उस संकीर्तन मण्डल में [[नृत्य]] और कीर्तन करने लगे। हठात महाभागवत उद्धव भी वहाँ के तृण गुल्म से आविर्भूत होकर नृत्य में विभोर हो गये। फिर भला कृष्ण कैसे रह सकते थे? [[राधा|राधिका]] आदि सखियों के साथ वे भी उस महासंकीर्तन [[रासलीला|रास]] में आविर्भूत हो गये। थोड़ी देर के बाद ही वे अन्तर्धान हो गये। उद्धव जी ने द्वारका की महिषियों को यहीं पर सांत्वना दी थी।
  
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Revision as of 11:33, 27 April 2014

[[chitr:Uddhav-Kund-1.jpg|thumb|200px|uddhav kund, govardhan]] [[chitr:Uddhav-Kund-2.jpg|thumb|200px|uddhav bihari ji, uddhav kund, govardhan]] uddhav kund kusum sarovar, govardhan ke thik pashchim mean parikrama marg par dahini or sthit hai. puranoan adi mean bhi is kund ka b da hi varnan kiya gaya hai. uddhav ji ne dvaraka ki mahishiyoan ko yahian par saantvana di thi.

puran ullekh

skand puran ke shrimadbhagavat mahatmy prasang mean isaka b da hi rochak varnan hai. vajranabh maharaj ne shandily adi rrishiyoan ke anugaty mean yahaan uddhav kund ka prakash kiya. uddhav ji yahaan pas mean hi gopiyoan ki charanadhooli mean abhishikt hone ke lie trin–gulm ke roop mean sarvada nivas karate haian.

katha

krishnalila aprakat hone par krishna ki dvaraka vali pataraniyaan b di du:khi thian. ek bar vajranabh ji unako sath lekar yahaan upasthit hue. b de zoroan se sankirtan arambh hua. dekhate–dekhate us mahasankirtan mean krishna ke sabhi parikar kramash: avirbhoot hone lage. arjun mridang vadan karate hue nrity karane lage. is prakar dvaraka ke sabhi parikar us sankirtan mandal mean nrity aur kirtan karane lage. hathat mahabhagavat uddhav bhi vahaan ke trin gulm se avirbhoot hokar nrity mean vibhor ho gaye. phir bhala krishna kaise rah sakate the? radhika adi sakhiyoan ke sath ve bhi us mahasankirtan ras mean avirbhoot ho gaye. tho di der ke bad hi ve antardhan ho gaye. uddhav ji ne dvaraka ki mahishiyoan ko yahian par saantvana di thi.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

sanbandhit lekh