चर्स: Difference between revisions
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'''चर्स''' अथवा '''पुर''' प्राचीन समय में खेतों में सिंचाई के दौरान उपयोग होने वाला एक पात्र। [[प्राचीन भारत]] में सिंचाई के कुछ साधन ऐसे थे जो अब विद्यमान नहीं हैं और कुछ अब भी हैं। इन्हीं में से एक था 'चर्स' या 'पुर' द्वारा सिंचाई। यह एक जटिल और जोखिम का काम था इसमें दो बैल और दो आदमी लगते थे। जो '[[न्हैचिया]]' पर चलते थे। न्हैचिया उस ढलान को कहते थे जिस पर चलकर बैल पानी खींचते थे। | '''चर्स''' अथवा '''पुर''' प्राचीन समय में खेतों में सिंचाई के दौरान उपयोग होने वाला एक पात्र। [[प्राचीन भारत]] में सिंचाई के कुछ साधन ऐसे थे जो अब विद्यमान नहीं हैं और कुछ अब भी हैं। इन्हीं में से एक था 'चर्स' या 'पुर' द्वारा सिंचाई। यह एक जटिल और जोखिम का काम था इसमें दो बैल और दो आदमी लगते थे। जो '[[न्हैचिया]]' पर चलते थे। न्हैचिया उस ढलान को कहते थे जिस पर चलकर बैल पानी खींचते थे। | ||
'चर्स' या 'पुर' लगभग 7 मन पानी (लगभग पौने तीन सौ लीटर पानी) की क्षमता रखता था। यह चमड़े का बना होता था। जब पानी से भरा हुआ 'पुर' [[कुआँ|कुँए]] की मेड़ पर आता था तो एक व्यक्ति उसको अपनी तरफ़ खींचकर ख़ाली करता था। इस क्षण पर उसे ज़ोर से 'राम' कहना होता था, जिससे बैलों के साथ वाला व्यक्ति बैलों की रस्सी से 'किल्ली' (लकड़ी की मोटी कील) को निकाल देता था। 'पुर' आसानी से ख़ाली हो जाता था। जब कुँए पर बैठा व्यक्ति 'राम' कहना भूल जाता था तो आदत के अनुसार बैल वापस चल देते थे। इससे 'पुर' भरी हुई हालत में ही कुँए में वापस जाने लगता था। यह भयानक विपत्ति होती थी जिसके कारण कभी-कभी बैल भी कुँए में चले जाते थे।<ref>भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी जी की फ़ेसबुक वॉल से उद्धृत </ref> | 'चर्स' या 'पुर' लगभग 7 मन पानी (लगभग पौने तीन सौ लीटर पानी) की क्षमता रखता था। यह चमड़े का बना होता था। जब पानी से भरा हुआ 'पुर' [[कुआँ|कुँए]] की मेड़ पर आता था तो एक व्यक्ति उसको अपनी तरफ़ खींचकर ख़ाली करता था। इस क्षण पर उसे ज़ोर से 'राम' कहना होता था, जिससे बैलों के साथ वाला व्यक्ति बैलों की रस्सी से 'किल्ली' (लकड़ी की मोटी कील) को निकाल देता था। 'पुर' आसानी से ख़ाली हो जाता था। जब कुँए पर बैठा व्यक्ति 'राम' कहना भूल जाता था तो आदत के अनुसार बैल वापस चल देते थे। इससे 'पुर' भरी हुई हालत में ही कुँए में वापस जाने लगता था। यह भयानक विपत्ति होती थी जिसके कारण कभी-कभी बैल भी कुँए में चले जाते थे।<ref>भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी जी की फ़ेसबुक वॉल से उद्धृत </ref> |
Latest revision as of 13:58, 25 November 2014
thumb|सिंचाई के दौरान जल से भरे हुए चर्स को खींचते बैल चर्स अथवा पुर प्राचीन समय में खेतों में सिंचाई के दौरान उपयोग होने वाला एक पात्र। प्राचीन भारत में सिंचाई के कुछ साधन ऐसे थे जो अब विद्यमान नहीं हैं और कुछ अब भी हैं। इन्हीं में से एक था 'चर्स' या 'पुर' द्वारा सिंचाई। यह एक जटिल और जोखिम का काम था इसमें दो बैल और दो आदमी लगते थे। जो 'न्हैचिया' पर चलते थे। न्हैचिया उस ढलान को कहते थे जिस पर चलकर बैल पानी खींचते थे। 'चर्स' या 'पुर' लगभग 7 मन पानी (लगभग पौने तीन सौ लीटर पानी) की क्षमता रखता था। यह चमड़े का बना होता था। जब पानी से भरा हुआ 'पुर' कुँए की मेड़ पर आता था तो एक व्यक्ति उसको अपनी तरफ़ खींचकर ख़ाली करता था। इस क्षण पर उसे ज़ोर से 'राम' कहना होता था, जिससे बैलों के साथ वाला व्यक्ति बैलों की रस्सी से 'किल्ली' (लकड़ी की मोटी कील) को निकाल देता था। 'पुर' आसानी से ख़ाली हो जाता था। जब कुँए पर बैठा व्यक्ति 'राम' कहना भूल जाता था तो आदत के अनुसार बैल वापस चल देते थे। इससे 'पुर' भरी हुई हालत में ही कुँए में वापस जाने लगता था। यह भयानक विपत्ति होती थी जिसके कारण कभी-कभी बैल भी कुँए में चले जाते थे।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतकोश संस्थापक श्री आदित्य चौधरी जी की फ़ेसबुक वॉल से उद्धृत