छत्तीसगढ़ी बोली: Difference between revisions
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'''छत्तीसगढ़ी बोली''' का मुख्य क्षेत्र [[छत्तीसगढ़|छत्तीसगढ़ राज्य]] है, इसीलिए इसका नाम 'छत्तीसगढ़ी' पड़ा है। [[अर्ध मागधी]] के [[अपभ्रंश]] के दक्षिणी रूप से इसका विकास हुआ है। इसका क्षेत्र [[सरगुजा ज़िला|सरगुजा]], [[कोरिया ज़िला|कोरिया]], [[बिलासपुर छत्तीसगढ़|बिलासपुर]], [[रायगढ़ ज़िला|रायगढ़]], [[खैरागढ़]], [[रायपुर]], [[दुर्ग ज़िला|दुर्ग]], नन्दगाँव, [[कांकेर ज़िला|कांकेर]] आदि हैं। | |||
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==बोलीगत विभेद== | |||
[[छत्तीसगढ़]] की [[भाषा]] है 'छत्तीसगढ़ी'। पर क्या छत्तीसगढ़ी पूरे छत्तीसगढ़ में एक ही बोली के रूप में बोली जाती है? पूरे छत्तीसगढ़ में बोलीगत विभेद दिखाई देते हैं। डॉ. सत्यभामा आडिल अपने "छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य"<ref>विकल्प प्रकाशन, रायपुर, 2002 , प-.7</ref> में कहते हैं कि, "यह बोलीगत विभेद दो आधारों- जातिगत एवं भौगोलिक सीमाओं के आधार विवेचित किये जा सकते हैं।" इसी आधार पर उन्होंने छत्तीसगढ़ की बोलियों का निर्धारण निम्न प्रकार से किया है<ref name="aa">{{cite web |url= http://www.ignca.nic.in/coilnet/chgr0002.htm#bhasha|title= छत्तीसगढ़ी भाषा|accessmonthday= 21 जून|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher=इग्निका |language= हिन्दी}}</ref>- | |||
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#'''खल्टाही''' - छत्तीसगढ़ की यह बोली रायगढ़ ज़िले के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। यह बोली [[बालाघाट ज़िला|बालाघाट ज़िले]] के पूर्वी भाग में, कौड़िया में, साले-टेकड़ी में और भीमलाट में सुनाई देती है। | |||
#'''सरगुजिया''' - सरगुजिया छत्तीसगढ़ी बोली सरगुजा में प्रचलित है। इसके अलावा [[कोरिया ज़िला|कोरिया]] और उदयपुर क्षेत्रों में भी बोली जाती है। | |||
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#'''कलंगा''' - कलंगा बोली पर [[उड़िया भाषा|उड़िया]] का प्रभाव पड़ा है, क्योंकि यह बोली [[उड़ीसा]] के सीमावर्ती पटना क्षेत्र में बोली जाती है। | |||
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छत्तीसगढ़ी बोली बहुत ही मधुर है। इस बोली में एक अपनापन है, जो साफ महसूस कर सकते हैं। [[हिन्दी]] जानने वालों को छत्तीसगढ़ी बोली समझने में तकलीफ नहीं होती- 'उसने कहा' को छत्तीसगढ़ी में कहते हैं "कहीस", 'मेरा' को कहते हैं "मोर", 'हमारा' को "हमार", 'तुम्हारा' को "तोर" और बहुवचन में "तुम्हार"। छत्तीसगढ़ी में केवल लोक साहित्य है। [[उड़िया भाषा|उड़िया]] तथा [[मराठी भाषा|मराठी]] को सीमा पर की छत्तीसगढ़ी में 'ऋ' का उच्चारण 'रु' किया जाता है। कुछ शब्दों में महाप्राणीकरण <ref>इलाका- इलाखा</ref>, अघोषीकरण <ref>बन्दगी- बन्दकी, शराब- शराप, ख़राब- खराप</ref>, स का छ का स <ref>सीता- छीता, छेना- सेना</ref> आदि इसकी कुछ विशेषताएँ हैं। | |||
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Latest revision as of 06:14, 12 June 2015
छत्तीसगढ़ी बोली का मुख्य क्षेत्र छत्तीसगढ़ राज्य है, इसीलिए इसका नाम 'छत्तीसगढ़ी' पड़ा है। अर्ध मागधी के अपभ्रंश के दक्षिणी रूप से इसका विकास हुआ है। इसका क्षेत्र सरगुजा, कोरिया, बिलासपुर, रायगढ़, खैरागढ़, रायपुर, दुर्ग, नन्दगाँव, कांकेर आदि हैं।
बोलीगत विभेद
छत्तीसगढ़ की भाषा है 'छत्तीसगढ़ी'। पर क्या छत्तीसगढ़ी पूरे छत्तीसगढ़ में एक ही बोली के रूप में बोली जाती है? पूरे छत्तीसगढ़ में बोलीगत विभेद दिखाई देते हैं। डॉ. सत्यभामा आडिल अपने "छत्तीसगढ़ी भाषा और साहित्य"[1] में कहते हैं कि, "यह बोलीगत विभेद दो आधारों- जातिगत एवं भौगोलिक सीमाओं के आधार विवेचित किये जा सकते हैं।" इसी आधार पर उन्होंने छत्तीसगढ़ की बोलियों का निर्धारण निम्न प्रकार से किया है[2]-
- छत्तीसगढ़ी - रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग में जो बोली सुनाई देती है, वह छत्तीसगढ़ी है।
- खल्टाही - छत्तीसगढ़ की यह बोली रायगढ़ ज़िले के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। यह बोली बालाघाट ज़िले के पूर्वी भाग में, कौड़िया में, साले-टेकड़ी में और भीमलाट में सुनाई देती है।
- सरगुजिया - सरगुजिया छत्तीसगढ़ी बोली सरगुजा में प्रचलित है। इसके अलावा कोरिया और उदयपुर क्षेत्रों में भी बोली जाती है।
- लरिया - छत्तीसगढ़ कीे यह बोली महासमुंद, सराईपाली, बसना, पिथौरा के आस-पास बोली जाती है।
- सदरी कोरबा - जशपुर में रहने वाले कोरबा जाति के लोग जो बोली बोलते हैं, वह सदरी कोरबा है। कोरबा जाति के लोग जो दूसरे क्षेत्र में रहते हैं, जैसे- पलमऊ, सरगुजा, बिलासपुर आदि, वे भी यही बोली बोलते हैं।
- बैगानी - बैगा जाति के लोग यह बोली बोलते हैं। यह बोली कवर्धा, बालाघाट, बिलासपुर, संबलपुर में बोली जाती है।
- बिंझवारी - बिंझवारी क्षेत्र में जो बोली प्रयोग की जाती है, वही है बिंझवारी। वीर नारायन सिंह भी बिंझवार के थे। रायपुर, रायगढ़ के कुछ हिस्सो में यह बोली प्रचलित है।
- कलंगा - कलंगा बोली पर उड़िया का प्रभाव पड़ा है, क्योंकि यह बोली उड़ीसा के सीमावर्ती पटना क्षेत्र में बोली जाती है।
- भूलिया - छत्तीसगढ़ी की भूलिया बोली सोनपुर और पटना के इलाकों में सुनाई देती है। कलंगा और भूलिया, ये दोनों ही उड़िया लिपि में लिखी जाती हैं।
- बस्तरी या हलबी - ये बोली बस्तर में हलबा जाति के लोग बोलते हैं। इस बोली पर मराठी का प्रभाव पड़ा है।[2]
मधुरता
छत्तीसगढ़ी बोली बहुत ही मधुर है। इस बोली में एक अपनापन है, जो साफ महसूस कर सकते हैं। हिन्दी जानने वालों को छत्तीसगढ़ी बोली समझने में तकलीफ नहीं होती- 'उसने कहा' को छत्तीसगढ़ी में कहते हैं "कहीस", 'मेरा' को कहते हैं "मोर", 'हमारा' को "हमार", 'तुम्हारा' को "तोर" और बहुवचन में "तुम्हार"। छत्तीसगढ़ी में केवल लोक साहित्य है। उड़िया तथा मराठी को सीमा पर की छत्तीसगढ़ी में 'ऋ' का उच्चारण 'रु' किया जाता है। कुछ शब्दों में महाप्राणीकरण [3], अघोषीकरण [4], स का छ का स [5] आदि इसकी कुछ विशेषताएँ हैं।
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