भेड़ाघाट: Difference between revisions
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भेड़ाघाट, [[मध्य प्रदेश]] के [[जबलपुर]] से 22 किलोमीटर दूर [[नर्मदा नदी]] के तट पर अवस्थित है। यहाँ से रानी अल्हण देवी का 907 चेदि संवत में लिखित एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है। अल्हण देवी के भेड़ाघाट अभिलेख से हमें ज्ञात होता है कि गांगेयदेव के पुत्र एवं उत्तराधिकारी [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] नरेश कर्ण ने बंग या पूर्वी बंगाल के राजा पर विजय प्राप्त की थी। | भेड़ाघाट, [[मध्य प्रदेश]] के [[जबलपुर]] से 22 किलोमीटर दूर [[नर्मदा नदी]] के तट पर अवस्थित है। यहाँ से रानी अल्हण देवी का 907 चेदि संवत में लिखित एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है। अल्हण देवी के भेड़ाघाट अभिलेख से हमें ज्ञात होता है कि गांगेयदेव के पुत्र एवं उत्तराधिकारी [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] नरेश कर्ण ने बंग या पूर्वी बंगाल के राजा पर विजय प्राप्त की थी। | ||
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यहाँ नर्मदा का प्रवाह ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिर कर [[झील]] के रुप में परिणत हो गया है। नदी की ऊपरी धारा के सिरे पर 'धुआंधार' नामक प्रसिद्ध जल प्रपात है और आगे नर्मदा दोनों और लगभग सौ फुट ऊँची संगमरमर की परतदार चट्टानों के कगारों के बीच बहती है। मार्बल-रॉक्स के लगभग दो किलोमीटर लम्बे सिलसिले में चट्टानों में आकार की अनूठी विविधा और विभिन्न मनोहारी रंगों की कोमल छटा है। इन कगारों की कमनीय स्निग्धता मुग्धकारी है। यहाँ चारों ओर व्याप्त निस्तब्धता में लगता है कि काल की गति थम गई। यहाँ नौकायन करने के बाद [[महात्मा गाँधी]] ने कहा था<blockquote>'''जितनी शांति यहाँ है, वैसी अगर दुनिया में हो जाएँ तो क्या कहना।'''</blockquote> मंत्रमुग्ध करने वाले इस स्वप्न लोक के कारण जबलपुर नगर को 'मार्बल सिटी' कहा जाता है। | यहाँ नर्मदा का प्रवाह ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिर कर [[झील]] के रुप में परिणत हो गया है। नदी की ऊपरी धारा के सिरे पर 'धुआंधार' नामक प्रसिद्ध जल प्रपात है और आगे नर्मदा दोनों और लगभग सौ फुट ऊँची संगमरमर की परतदार चट्टानों के कगारों के बीच बहती है। मार्बल-रॉक्स के लगभग दो किलोमीटर लम्बे सिलसिले में चट्टानों में आकार की अनूठी विविधा और विभिन्न मनोहारी रंगों की कोमल छटा है। इन कगारों की कमनीय स्निग्धता मुग्धकारी है। यहाँ चारों ओर व्याप्त निस्तब्धता में लगता है कि काल की गति थम गई। यहाँ नौकायन करने के बाद [[महात्मा गाँधी]] ने कहा था<blockquote>'''जितनी शांति यहाँ है, वैसी अगर दुनिया में हो जाएँ तो क्या कहना।'''</blockquote> मंत्रमुग्ध करने वाले इस स्वप्न लोक के कारण जबलपुर नगर को 'मार्बल सिटी' कहा जाता है। | ||
[[चित्र:Marble-Rocks-Bhedaghat-Jabalpur.jpg|thumb|250px|left|संगमरमर की चट्टानें, भेड़ाघाट, [[जबलपुर]]]] | |||
==चौंसठ योगिनी मन्दिर== | ==चौंसठ योगिनी मन्दिर== | ||
भेड़ाघाट का एक और प्रमुख आकर्षण संगमरमरी कगारों के पीछे शंकु आकार की एक पहाड़ी के शिखर पर बना चौंसठ योगिनी मन्दिर है। यह एक बड़ा मन्दिर है। कई पाश्चात्य पर्यटन लेखकों ने इसे दुनिया का ख़ूबसूरत मन्दिर कहा है। योगिनियों की मूर्तियाँ यद्यपि 1808 ई. में अमीर ख़ाँ पिंडारी के हाथों खण्डित हो गई थीं पर उसमें मूर्तिकला की अद्भुत ऊर्जा के दर्शन होते हैं। मूर्तियों में प्रचुर अलंकरण हैं और सूक्ष्म विवरण की प्रधानता है। भेड़ाघाट में भृगुऋषि की तपस्थली मानी जाती है। यहाँ कई पुराने मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं। यह स्थान अवश्य ही बहुत प्राचीन है। नर्मदा नदी के प्रसिद्ध जल-प्रपात धुआँधार के निकट द्वितीय सदी ई. की एक मूर्ति प्राप्त हुई है, जो अब चौंसठ-योगिनियों के मंदिर में है। | [[चित्र:Jabalpur-devi-yogini.jpg|thumb|250px|योगिनी देवी, भेड़ाघाट, [[जबलपुर]]]] | ||
भेड़ाघाट का एक और प्रमुख आकर्षण संगमरमरी कगारों के पीछे शंकु आकार की एक पहाड़ी के शिखर पर बना चौंसठ योगिनी मन्दिर है। यह एक बड़ा मन्दिर है। कई पाश्चात्य पर्यटन लेखकों ने इसे दुनिया का ख़ूबसूरत मन्दिर कहा है। योगिनियों की मूर्तियाँ यद्यपि 1808 ई. में अमीर ख़ाँ पिंडारी के हाथों खण्डित हो गई थीं पर उसमें मूर्तिकला की अद्भुत ऊर्जा के दर्शन होते हैं। मूर्तियों में प्रचुर अलंकरण हैं और सूक्ष्म विवरण की प्रधानता है। भेड़ाघाट में भृगुऋषि की तपस्थली मानी जाती है। यहाँ कई पुराने मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं। यह स्थान अवश्य ही बहुत प्राचीन है। नर्मदा नदी के प्रसिद्ध जल-प्रपात धुआँधार के निकट द्वितीय [[सदी]] ई. की एक मूर्ति प्राप्त हुई है, जो अब चौंसठ-योगिनियों के मंदिर में है। | |||
==दर्शनीय स्थल== | ==दर्शनीय स्थल== | ||
भेड़ाघाट से कई अन्य गुप्तकालीन मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जो इस प्रदेश के तत्कालीन शासक परिव्राजक महाराजाओं तथा उच्छकल्प के नरेशों के समय में निर्मित हुई थीं। चौंसठ योगिनियों के मंदिर में [[त्रिपुरी]] के नरेशों के समय की भी कई मूर्तियाँ लक्ष्मणराज की रानी नोहाला द्वारा प्रतिष्ठापित की गई थीं। चौंसठ योगिनियों के मंदिर का निर्माण संवत 907 (1155-1156 ई.) में अल्हण देवी ने करवाया था। इस मंदिर की गोलाकृति होने के कारण इसे गोलकीमठ भी कहते हैं। भेड़ाघाट का प्राकृतिक परिदृश्य मनोरम है। वर्तमान समय में बंदर कूदनी, चौंसठ योगिनि का गोल मन्दिर और गौरी-शंकर का मन्दिर यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं। | भेड़ाघाट से कई अन्य गुप्तकालीन मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जो इस प्रदेश के तत्कालीन शासक परिव्राजक महाराजाओं तथा [[उच्छकल्प]] के नरेशों के समय में निर्मित हुई थीं। चौंसठ योगिनियों के मंदिर में [[त्रिपुरी]] के नरेशों के समय की भी कई मूर्तियाँ लक्ष्मणराज की रानी नोहाला द्वारा प्रतिष्ठापित की गई थीं। चौंसठ योगिनियों के मंदिर का निर्माण संवत 907 (1155-1156 ई.) में अल्हण देवी ने करवाया था। इस मंदिर की गोलाकृति होने के कारण इसे गोलकीमठ भी कहते हैं। भेड़ाघाट का प्राकृतिक परिदृश्य मनोरम है। वर्तमान समय में बंदर कूदनी, चौंसठ योगिनि का गोल मन्दिर और गौरी-शंकर का मन्दिर यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं। | ||
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Latest revision as of 12:38, 24 August 2017
भेड़ाघाट
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[[चित्र:Dhuandhar-Falls-Bhedaghat.jpg|धुआंधार झरना, भेड़ाघाट, जबलपुर|200px|center]]
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विवरण | मध्य प्रदेश के जबलपुर से 22 किलोमीटर दूर नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है। |
राज्य | मध्य प्रदेश |
ज़िला | जबलपुर |
चित्र:Map-icon.gif | गूगल मानचित्र |
संबंधित लेख | त्रिपुरी, चालुक्य, महात्मा गाँधी
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अन्य जानकारी | भेड़ाघाट का एक और प्रमुख आकर्षण संगमरमरी कगारों के पीछे शंकु आकार की एक पहाड़ी के शिखर पर बना चौंसठ योगिनी मन्दिर है। |
अद्यतन | 06:04, 24 अगस्त 2017 (IST) |
भेड़ाघाट, मध्य प्रदेश के जबलपुर से 22 किलोमीटर दूर नर्मदा नदी के तट पर अवस्थित है। यहाँ से रानी अल्हण देवी का 907 चेदि संवत में लिखित एक शिलालेख उपलब्ध हुआ है। अल्हण देवी के भेड़ाघाट अभिलेख से हमें ज्ञात होता है कि गांगेयदेव के पुत्र एवं उत्तराधिकारी चालुक्य नरेश कर्ण ने बंग या पूर्वी बंगाल के राजा पर विजय प्राप्त की थी।
मार्बल सिटी
यहाँ नर्मदा का प्रवाह ऊँची-ऊँची पहाड़ियों से घिर कर झील के रुप में परिणत हो गया है। नदी की ऊपरी धारा के सिरे पर 'धुआंधार' नामक प्रसिद्ध जल प्रपात है और आगे नर्मदा दोनों और लगभग सौ फुट ऊँची संगमरमर की परतदार चट्टानों के कगारों के बीच बहती है। मार्बल-रॉक्स के लगभग दो किलोमीटर लम्बे सिलसिले में चट्टानों में आकार की अनूठी विविधा और विभिन्न मनोहारी रंगों की कोमल छटा है। इन कगारों की कमनीय स्निग्धता मुग्धकारी है। यहाँ चारों ओर व्याप्त निस्तब्धता में लगता है कि काल की गति थम गई। यहाँ नौकायन करने के बाद महात्मा गाँधी ने कहा था
जितनी शांति यहाँ है, वैसी अगर दुनिया में हो जाएँ तो क्या कहना।
मंत्रमुग्ध करने वाले इस स्वप्न लोक के कारण जबलपुर नगर को 'मार्बल सिटी' कहा जाता है।
[[चित्र:Marble-Rocks-Bhedaghat-Jabalpur.jpg|thumb|250px|left|संगमरमर की चट्टानें, भेड़ाघाट, जबलपुर]]
चौंसठ योगिनी मन्दिर
[[चित्र:Jabalpur-devi-yogini.jpg|thumb|250px|योगिनी देवी, भेड़ाघाट, जबलपुर]] भेड़ाघाट का एक और प्रमुख आकर्षण संगमरमरी कगारों के पीछे शंकु आकार की एक पहाड़ी के शिखर पर बना चौंसठ योगिनी मन्दिर है। यह एक बड़ा मन्दिर है। कई पाश्चात्य पर्यटन लेखकों ने इसे दुनिया का ख़ूबसूरत मन्दिर कहा है। योगिनियों की मूर्तियाँ यद्यपि 1808 ई. में अमीर ख़ाँ पिंडारी के हाथों खण्डित हो गई थीं पर उसमें मूर्तिकला की अद्भुत ऊर्जा के दर्शन होते हैं। मूर्तियों में प्रचुर अलंकरण हैं और सूक्ष्म विवरण की प्रधानता है। भेड़ाघाट में भृगुऋषि की तपस्थली मानी जाती है। यहाँ कई पुराने मंदिर पहाड़ी के ऊपर स्थित हैं। यह स्थान अवश्य ही बहुत प्राचीन है। नर्मदा नदी के प्रसिद्ध जल-प्रपात धुआँधार के निकट द्वितीय सदी ई. की एक मूर्ति प्राप्त हुई है, जो अब चौंसठ-योगिनियों के मंदिर में है।
दर्शनीय स्थल
भेड़ाघाट से कई अन्य गुप्तकालीन मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई हैं, जो इस प्रदेश के तत्कालीन शासक परिव्राजक महाराजाओं तथा उच्छकल्प के नरेशों के समय में निर्मित हुई थीं। चौंसठ योगिनियों के मंदिर में त्रिपुरी के नरेशों के समय की भी कई मूर्तियाँ लक्ष्मणराज की रानी नोहाला द्वारा प्रतिष्ठापित की गई थीं। चौंसठ योगिनियों के मंदिर का निर्माण संवत 907 (1155-1156 ई.) में अल्हण देवी ने करवाया था। इस मंदिर की गोलाकृति होने के कारण इसे गोलकीमठ भी कहते हैं। भेड़ाघाट का प्राकृतिक परिदृश्य मनोरम है। वर्तमान समय में बंदर कूदनी, चौंसठ योगिनि का गोल मन्दिर और गौरी-शंकर का मन्दिर यहाँ के दर्शनीय स्थल हैं।
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