शिवाजी का व्यक्तित्व: Difference between revisions
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[[भारत]] के जिन वीरों ने अपनी असाधारण वीरता, त्याग और बलिदान से भारतभूमि को धन्य किया है, उनमें वीर [[शिवाजी]] का नाम अग्रगण्य है। मातृभूमि भारत की स्वतन्त्रता एवं गौरव के रक्षक वीर शिवाजी एक साहसी सैनिक, दूरदर्शी इंसान, सतर्क व सहिष्णु देशभक्त थे। उनकी चारित्रिक श्रेष्ठता, दानशीलता के अनेक उदाहरण गौरवगाथा के रूप में मिलते हैं। वे [[महाराष्ट्र]] के ही नहीं, समूची मातृभूमि के सेवक थे। वे हिन्दुत्व के नहीं, राष्ट्रीयता के पोषक रहे थे। | [[भारत]] के जिन वीरों ने अपनी असाधारण वीरता, त्याग और बलिदान से भारतभूमि को धन्य किया है, उनमें वीर [[शिवाजी]] का नाम अग्रगण्य है। मातृभूमि भारत की स्वतन्त्रता एवं गौरव के रक्षक वीर शिवाजी एक साहसी सैनिक, दूरदर्शी इंसान, सतर्क व सहिष्णु देशभक्त थे। उनकी चारित्रिक श्रेष्ठता, दानशीलता के अनेक उदाहरण गौरवगाथा के रूप में मिलते हैं। वे [[महाराष्ट्र]] के ही नहीं, समूची मातृभूमि के सेवक थे। वे हिन्दुत्व के नहीं, राष्ट्रीयता के पोषक रहे थे। | ||
==समर्पित हिन्दू व सहिष्णु== | |||
शिवाजी एक समर्पित [[हिन्दू]] होने के साथ-ही-साथ धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को पूरी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। उनके [[मराठा साम्राज्य]] में हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी पूरा सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में [[मुसलमान]] सैनिक भी थे। [[शिवाजी]] हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। वह अपने अभियानों का आरंभ भी अकसर [[दशहरा]] के अवसर पर करते थे। | शिवाजी एक समर्पित [[हिन्दू]] होने के साथ-ही-साथ धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को पूरी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। उनके [[मराठा साम्राज्य]] में हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी पूरा सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में [[मुसलमान]] सैनिक भी थे। [[शिवाजी]] हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। वह अपने अभियानों का आरंभ भी अकसर [[दशहरा]] के अवसर पर करते थे। | ||
==आदर्श पुत्र== | |||
छत्रपति शिवाजी महाराज को अपने [[पिता]] से स्वराज की शिक्षा ही मिली, जब [[बीजापुर]] के सुल्तान ने [[शाहजी भोंसले]] को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र की तरह उन्होंने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव नजर आता है। उसके बाद उन्होंने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसा कि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी के मरने के बाद ही उन्होंने अपना राज्याभिषेक करवाया। हालांकि वे उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे, यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी। | छत्रपति शिवाजी महाराज को अपने [[पिता]] से स्वराज की शिक्षा ही मिली, जब [[बीजापुर]] के सुल्तान ने [[शाहजी भोंसले]] को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र की तरह उन्होंने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव नजर आता है। उसके बाद उन्होंने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसा कि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी के मरने के बाद ही उन्होंने अपना राज्याभिषेक करवाया। हालांकि वे उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे, यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी। | ||
==श्रेष्ठ सेनानायक व कूटनीतिज्ञ== | |||
वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय युद्ध से भाग लिया था। लेकिन यही उनकी कूटनीति थी, जो हर बार बड़े से बड़े शत्रु को मात देने में उनका साथ देती रही। शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कूटनीति, जिसमें शत्रु पर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियता से और आदरसहित याद किया जाता है। शिवाजी महाराज के गौरव में निम्न पंक्तियाँ लिखी गई हैं- | वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय युद्ध से भाग लिया था। लेकिन यही उनकी कूटनीति थी, जो हर बार बड़े से बड़े शत्रु को मात देने में उनका साथ देती रही। शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कूटनीति, जिसमें शत्रु पर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियता से और आदरसहित याद किया जाता है। शिवाजी महाराज के गौरव में निम्न पंक्तियाँ लिखी गई हैं- | ||
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Latest revision as of 13:19, 29 October 2017
शिवाजी का व्यक्तित्व
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पूरा नाम | शिवाजी राजे भोंसले |
जन्म | 19 फ़रवरी, 1630 ई. |
जन्म भूमि | शिवनेरी, महाराष्ट्र |
मृत्यु तिथि | 3 अप्रैल, 1680 ई. |
मृत्यु स्थान | रायगढ़ |
पिता/माता | शाहजी भोंसले, जीजाबाई |
पति/पत्नी | साइबाईं निम्बालकर |
संतान | सम्भाजी |
उपाधि | छत्रपति |
शासन काल | 1642 - 1680 ई. |
शा. अवधि | 38 वर्ष |
राज्याभिषेक | 6 जून, 1674 ई. |
पूर्वाधिकारी | शाहजी भोंसले |
उत्तराधिकारी | सम्भाजी |
राजघराना | मराठा |
वंश | भोंसले |
संबंधित लेख | महाराष्ट्र, मराठा, मराठा साम्राज्य, ताना जी, रायगढ़, समर्थ गुरु रामदास, दादोजी कोंडदेव, राजाराम, ताराबाई। |
भारत के जिन वीरों ने अपनी असाधारण वीरता, त्याग और बलिदान से भारतभूमि को धन्य किया है, उनमें वीर शिवाजी का नाम अग्रगण्य है। मातृभूमि भारत की स्वतन्त्रता एवं गौरव के रक्षक वीर शिवाजी एक साहसी सैनिक, दूरदर्शी इंसान, सतर्क व सहिष्णु देशभक्त थे। उनकी चारित्रिक श्रेष्ठता, दानशीलता के अनेक उदाहरण गौरवगाथा के रूप में मिलते हैं। वे महाराष्ट्र के ही नहीं, समूची मातृभूमि के सेवक थे। वे हिन्दुत्व के नहीं, राष्ट्रीयता के पोषक रहे थे।
समर्पित हिन्दू व सहिष्णु
शिवाजी एक समर्पित हिन्दू होने के साथ-ही-साथ धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को पूरी तरह से धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। उनके मराठा साम्राज्य में हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को भी पूरा सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में मुसलमान सैनिक भी थे। शिवाजी हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। वह अपने अभियानों का आरंभ भी अकसर दशहरा के अवसर पर करते थे।
आदर्श पुत्र
छत्रपति शिवाजी महाराज को अपने पिता से स्वराज की शिक्षा ही मिली, जब बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी भोंसले को बन्दी बना लिया तो एक आदर्श पुत्र की तरह उन्होंने बीजापुर के शाह से सन्धि कर शाहजी को छुड़वा लिया। इससे उनके चरित्र में एक उदार अवयव नजर आता है। उसके बाद उन्होंने पिता की हत्या नहीं करवाई जैसा कि अन्य सम्राट किया करते थे। शाहजी के मरने के बाद ही उन्होंने अपना राज्याभिषेक करवाया। हालांकि वे उस समय तक अपने पिता से स्वतंत्र होकर एक बड़े साम्राज्य के अधिपति हो गये थे। उनके नेतृत्व को सब लोग स्वीकार करते थे, यही कारण है कि उनके शासनकाल में कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी प्रमुख घटना नहीं हुई थी।
श्रेष्ठ सेनानायक व कूटनीतिज्ञ
वह एक अच्छे सेनानायक के साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। कई जगहों पर उन्होंने सीधे युद्ध लड़ने की बजाय युद्ध से भाग लिया था। लेकिन यही उनकी कूटनीति थी, जो हर बार बड़े से बड़े शत्रु को मात देने में उनका साथ देती रही। शिवाजी महाराज की "गनिमी कावा" नामक कूटनीति, जिसमें शत्रु पर अचानक आक्रमण करके उसे हराया जाता है, विलोभनियता से और आदरसहित याद किया जाता है। शिवाजी महाराज के गौरव में निम्न पंक्तियाँ लिखी गई हैं-
- शिवरायांचे आठवावे स्वरूप। शिवरायांचा आठवावा साक्षेप ।
- शिवरायांचा आठवावा प्रताप। भूमंडळी ॥
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