त्रिशला: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''त्रिशला''' जैन धार्मिक मान्यतानुसार मह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
'''त्रिशला''' [[जैन धर्म|जैन]] धार्मिक मान्यतानुसार [[महावीर स्वामी]] की माता का नाम था। उन्हें 'पिर्यकारिणी' भी कहा जाता है।
'''त्रिशला''' [[जैन धर्म|जैन]] धार्मिक मान्यतानुसार [[महावीर स्वामी]] की माता का नाम था। उन्हें 'पिर्यकारिणी' भी कहा जाता है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=562, परिशिष्ट 'ग'|url=}}</ref>
==परिचय==
==परिचय==
जैन ग्रन्थ 'उत्तरपुराण' में [[तीर्थंकर]] और अन्य शलाका पुरुषों का वर्णन है। ग्रन्थ में लिखा है कि [[वैशाली]] के राजा चेटक के 10 पुत्र और सात पुत्रियाँ थीं। उनकी ज्येष्ठ पुत्री पिर्यकारिणी अर्थात त्रिशला का [[विवाह]] कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ से हुआ था। भगवान महावीर के जन्म से पूर्व एक बार महारानी त्रिशला नगर में हो रही अद्‍भुत रत्नवर्षा के बारे में सोच रही थीं। यह सोचते-सोचते ही वे गहरी नींद में सो गईं। उसी रात्रि को अंतिम प्रहर में महारानी ने सोलह शुभ मंगलकारी स्वप्न देखे। वह [[आषाढ़]] शुक्ल [[षष्ठी]] का दिन था। सुबह जागने पर रानी ने महाराज सिद्धार्थ से अपने स्वप्नों की चर्चा की और उसका फल जानने की इच्छा प्रकट की।
जैन ग्रन्थ 'उत्तरपुराण' में [[तीर्थंकर]] और अन्य शलाका पुरुषों का वर्णन है। ग्रन्थ में लिखा है कि [[वैशाली]] के राजा चेटक के 10 पुत्र और सात पुत्रियाँ थीं। उनकी ज्येष्ठ पुत्री पिर्यकारिणी अर्थात त्रिशला का [[विवाह]] कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ से हुआ था। भगवान महावीर के जन्म से पूर्व एक बार महारानी त्रिशला नगर में हो रही अद्‍भुत रत्नवर्षा के बारे में सोच रही थीं। यह सोचते-सोचते ही वे गहरी नींद में सो गईं। उसी रात्रि को अंतिम प्रहर में महारानी ने सोलह शुभ मंगलकारी स्वप्न देखे। वह [[आषाढ़]] शुक्ल [[षष्ठी]] का दिन था। सुबह जागने पर रानी ने महाराज सिद्धार्थ से अपने स्वप्नों की चर्चा की और उसका फल जानने की इच्छा प्रकट की।
Line 74: Line 74:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{जैन धर्म2}}
{{जैन धर्म2}}
[[Category:जैन धर्म]][[Category:चरित कोश]][[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
[[Category:जैन धर्म]][[Category:चरित कोश]][[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:जैन धर्म शब्दावली]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:पौराणिक कोश]][[Category:प्रसिद्ध चरित्र और मिथक कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 12:13, 8 May 2018

त्रिशला जैन धार्मिक मान्यतानुसार महावीर स्वामी की माता का नाम था। उन्हें 'पिर्यकारिणी' भी कहा जाता है।[1]

परिचय

जैन ग्रन्थ 'उत्तरपुराण' में तीर्थंकर और अन्य शलाका पुरुषों का वर्णन है। ग्रन्थ में लिखा है कि वैशाली के राजा चेटक के 10 पुत्र और सात पुत्रियाँ थीं। उनकी ज्येष्ठ पुत्री पिर्यकारिणी अर्थात त्रिशला का विवाह कुण्डग्राम के राजा सिद्धार्थ से हुआ था। भगवान महावीर के जन्म से पूर्व एक बार महारानी त्रिशला नगर में हो रही अद्‍भुत रत्नवर्षा के बारे में सोच रही थीं। यह सोचते-सोचते ही वे गहरी नींद में सो गईं। उसी रात्रि को अंतिम प्रहर में महारानी ने सोलह शुभ मंगलकारी स्वप्न देखे। वह आषाढ़ शुक्ल षष्ठी का दिन था। सुबह जागने पर रानी ने महाराज सिद्धार्थ से अपने स्वप्नों की चर्चा की और उसका फल जानने की इच्छा प्रकट की।

सोलह स्वप्न

राजा सिद्धार्थ एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ ही ज्योतिष शास्त्र के भी विद्वान थे। उन्होंने रानी से कहा कि एक-एक कर अपना स्वप्न बताएं। वे उसी प्रकार उसका फल बताते चलेंगे। तब महारा‍नी त्रिशला ने अपने सारे स्वप्न उन्हें एक-एक कर विस्तार से सुनाएं।[2]

पहला स्वप्न - एक अति विशाल श्वेत हाथी दिखाई दिया

फल - एक अद्भुत पुत्र-रत्न उत्पन्न होगा।

दूसरा स्वप्न - श्वेत वृषभ

फल - वह पुत्र जगत का कल्याण करने वाला होगा।

तीसरा स्वप्न - श्वेत वर्ण और लाल अयालों वाला सिंह

फल - वह पुत्र सिंह के समान बलशाली होगा।

चौथा स्वप्न - कमलासन लक्ष्मी का अभिषेक करते हुए दो हाथी

फल - देवलोक से देवगण आकर उस पुत्र का अभिषेक करेंगे।

पांचवां स्वप्न - दो सुगंधित पुष्पमालाएं

फल - वह धर्म तीर्थ स्थापित करेगा और जन-जन द्वारा पूजित होगा।

छठा स्वप्न - पूर्ण चंद्रमा

फल - उसके जन्म से तीनों लोक आनंदित होंगे।

सातवां स्वप्न - उदय होता सूर्य

फल - वह पुत्र सूर्य के समान तेजयुक्त और पापी प्राणियों का उद्धार करने वाला होगा।

आठवां स्वप्न - कमल पत्रों से ढंके हुए दो स्वर्ण कलश

फल - वह पुत्र अनेक निधियों का स्वामी निधि‍पति होगा।

नौवां स्वप्न - कमल सरोवर में क्रीड़ा करती दो मछलियां

फल - वह पुत्र महाआनंद का दाता, दु:खहर्ता होगा।

दसवां स्वप्न - कमलों से भरा जलाशय

फल - एक हजार आठ शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र प्राप्त होगा।

ग्यारहवां स्वप्न - लहरें उछालता समुद्र

फल - भूत-भविष्य-वर्तमान का ज्ञाता केवली पुत्र।

बारहवां स्वप्न - हीरे-मोती और रत्नजडि़त स्वर्ण सिंहासन

फल - वह पुत्र राज्य का स्वामी और प्रजा का हितचिंतक रहेगा।

तेरहवां स्वप्न - स्वर्ग का विमान

फल - इस जन्म से पूर्व वह पुत्र स्वर्ग में देवता होगा।

चौदहवां स्वप्न - पृथ्वी को भेद कर निकलता नागों के राजा नागेन्द्र का विमान

फल - वह पुत्र जन्म से ही त्रिकालदर्शी होगा।

पन्द्रहवां स्वप्न - रत्नों का ढेर

फल - वह पुत्र अनंत गुणों से संपन्न होगा।

सोलहवां स्वप्न - धुआंरहित अग्नि

फल - वह पुत्र सांसारिक कर्मों का अंत करके मोक्ष (निर्वाण) को प्राप्त होगा।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पौराणिक कोश |लेखक: राणा प्रसाद शर्मा |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 562, परिशिष्ट 'ग' |
  2. जानिए महारानी त्रिशला के 16 शुभ स्वप्न (हिन्दी) webdunia। अभिगमन तिथि: 08 मई, 2018।

संबंधित लेख