बालाजी विश्वनाथ: Difference between revisions
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कोंकण के 'चित्तपावन वंश' का [[ब्राह्मण]] बालाजी विश्वनाथ अपनी बुद्धि एवं प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध था। बालाजी को करों के बारे में अच्छी जानकरी थी, इसलिए [[शाहू]] ने उसे अपनी सेना में लिया था। 1669 से 1702 ई. के मध्य बालाजी विश्वनाथ [[पूना]] एवं [[दौलताबाद]] का सूबेदार रहा। 1707 ई. में 'खेड़ा के युद्ध' में उसने शाहू को समर्थन देते हुए [[ताराबाई]] के सेनापति [[धनाजी जादव]] को शाहू की ओर करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। धनाजी जादव की मृत्योपरान्त उसके पुत्र चन्द्रसेन जादव को शाहू ने सेनापति बनाया। परन्तु उसका [[ताराबाई]] के प्रति झुकाव देखकर, उसे सेनापति के पद से हटा दिया, और साथ ही उसने नया सेनापति बालाजी विश्वनाथ को बना दिया। | कोंकण के 'चित्तपावन वंश' का [[ब्राह्मण]] बालाजी विश्वनाथ अपनी बुद्धि एवं प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध था। बालाजी को करों के बारे में अच्छी जानकरी थी, इसलिए [[शाहू]] ने उसे अपनी सेना में लिया था। 1669 से 1702 ई. के मध्य बालाजी विश्वनाथ [[पूना]] एवं [[दौलताबाद]] का सूबेदार रहा। 1707 ई. में 'खेड़ा के युद्ध' में उसने शाहू को समर्थन देते हुए [[ताराबाई]] के सेनापति [[धनाजी जादव]] को शाहू की ओर करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। धनाजी जादव की मृत्योपरान्त उसके पुत्र चन्द्रसेन जादव को शाहू ने सेनापति बनाया। परन्तु उसका [[ताराबाई]] के प्रति झुकाव देखकर, उसे सेनापति के पद से हटा दिया, और साथ ही उसने नया सेनापति बालाजी विश्वनाथ को बना दिया। | ||
==पेशवा का पद== | ==पेशवा का पद== | ||
सेनापति का पद छिन जाने से चन्द्रसेन काफ़ी क्रोधित था, तथा इसे अपना सबसे बड़ा अपमान समझता था। इसीलिए कालान्तर में चन्द्रसेन एवं 'सीमा रक्षक' कान्होजी आंगड़े के सहयोग से ताराबाई ने छत्रपति शाहू एवं उसके पेशवा बहिरोपन्त पिंगले को कैद कर लिया। परन्तु बालाजी की सफल कूटनीति रंग लायी। कान्होजी बगैर युद्ध के ही शाहू की तरफ़ आ गया तथा चन्द्रसेन युद्ध में पराजित हुआ। इस तरह शाहू को अपने को पुनस्र्थापित करने का एक अवसर मिला। 1713 ई. में बालाजी को शाहू ने अपना [[पेशवा]] बनाया। | सेनापति का पद छिन जाने से चन्द्रसेन काफ़ी क्रोधित था, तथा इसे अपना सबसे बड़ा अपमान समझता था। इसीलिए [[कालान्तर]] में चन्द्रसेन एवं 'सीमा रक्षक' कान्होजी आंगड़े के सहयोग से ताराबाई ने छत्रपति शाहू एवं उसके पेशवा बहिरोपन्त पिंगले को कैद कर लिया। परन्तु बालाजी की सफल कूटनीति रंग लायी। कान्होजी बगैर युद्ध के ही शाहू की तरफ़ आ गया तथा चन्द्रसेन युद्ध में पराजित हुआ। इस तरह शाहू को अपने को पुनस्र्थापित करने का एक अवसर मिला। 1713 ई. में बालाजी को शाहू ने अपना [[पेशवा]] बनाया। | ||
==मुग़लों से संधि== | ==मुग़लों से संधि== | ||
1719 ई. में शाहू के नेतृत्व में पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने [[सैयद बन्धु|सैय्यद बंधुओं]] की पहल पर [[मुग़ल]] सम्राट से एक संधि की जिसकी शर्ते निम्नलिखित थी- | 1719 ई. में शाहू के नेतृत्व में पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने [[सैयद बन्धु|सैय्यद बंधुओं]] की पहल पर [[मुग़ल]] सम्राट से एक संधि की जिसकी शर्ते निम्नलिखित थी- |
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बालाजी विश्वनाथ प्रथम पेशवा (1713-20 ई.) था, जिसका जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ था। शाहू के सेनापति धनाजी जादव ने 1708 ई. में उसे 'कारकून' (राजस्व का क्लर्क) नियुक्त किया था। धनाजी जादव की मृत्यु के उपरान्त वह उसके पुत्र चन्द्रसेन जादव के साथ संयुक्त रहा। चन्द्रसेन जादव ने उसे 1712 ई. में 'सेनाकर्त्ते' (सैन्यभार का संगठनकर्ता) की उपाधि दी। इस प्रकार उसे एक असैनिक शासक तथा सैनिक संगठनकर्ता-दोनों रूपों में अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का अवसर मिला। शीघ्र ही शाहू ने उसके द्वारा की गई बहुमूल्य सेवाओं को स्वीकार किया और 16 नवम्बर, 1713 ई. को उसे "पेशवा" (प्रधानमंत्री) नियुक्त किया।
वंश व सेनापति का पद
कोंकण के 'चित्तपावन वंश' का ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ अपनी बुद्धि एवं प्रतिभा के कारण प्रसिद्ध था। बालाजी को करों के बारे में अच्छी जानकरी थी, इसलिए शाहू ने उसे अपनी सेना में लिया था। 1669 से 1702 ई. के मध्य बालाजी विश्वनाथ पूना एवं दौलताबाद का सूबेदार रहा। 1707 ई. में 'खेड़ा के युद्ध' में उसने शाहू को समर्थन देते हुए ताराबाई के सेनापति धनाजी जादव को शाहू की ओर करने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। धनाजी जादव की मृत्योपरान्त उसके पुत्र चन्द्रसेन जादव को शाहू ने सेनापति बनाया। परन्तु उसका ताराबाई के प्रति झुकाव देखकर, उसे सेनापति के पद से हटा दिया, और साथ ही उसने नया सेनापति बालाजी विश्वनाथ को बना दिया।
पेशवा का पद
सेनापति का पद छिन जाने से चन्द्रसेन काफ़ी क्रोधित था, तथा इसे अपना सबसे बड़ा अपमान समझता था। इसीलिए कालान्तर में चन्द्रसेन एवं 'सीमा रक्षक' कान्होजी आंगड़े के सहयोग से ताराबाई ने छत्रपति शाहू एवं उसके पेशवा बहिरोपन्त पिंगले को कैद कर लिया। परन्तु बालाजी की सफल कूटनीति रंग लायी। कान्होजी बगैर युद्ध के ही शाहू की तरफ़ आ गया तथा चन्द्रसेन युद्ध में पराजित हुआ। इस तरह शाहू को अपने को पुनस्र्थापित करने का एक अवसर मिला। 1713 ई. में बालाजी को शाहू ने अपना पेशवा बनाया।
मुग़लों से संधि
1719 ई. में शाहू के नेतृत्व में पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने सैय्यद बंधुओं की पहल पर मुग़ल सम्राट से एक संधि की जिसकी शर्ते निम्नलिखित थी-
- शाहू को शिवाजी के वे प्रदेश लौटा दिये जायेंगे, जिन्हें वह 'स्वराज' कहता था।
- हैदराबाद, गोंडवाना, ख़ानदेश, बरार एवं कर्नाटक के वे प्रदेश भी शाहू को वापस कर दिये जायेंगें, जिन्हे मराठों ने हाल ही में जीता था।
- दक्कन के प्रदेश में मराठों को 'चौथ' एवं 'सरदेशमुखी' वसूल करने का अधिकार होगा, जिसके बदले मराठे क़रीब 15,000 जवानों की एक सैनिक टुकड़ी सम्राट की सेवा हेतु रखेंगे।
- शाहू मुग़ल सम्राट को प्रतिवर्ष लगभग दस लाख रुपये का कर खिराज देगा।
- मुग़ल क़ैद से शाहू की माँ एवं भाई समेत सभी सगे-सम्बन्धियों को आज़ाद कर दिया जायेगा।
मृत्यु
इस संधि को 'सर रिचर्ड टेम्पल' ने 'मराठा साम्राज्य का मैग्नाकार्टा' की संज्ञा दी है। संधि के फलस्वरूप मराठों को मुग़ल राजनीति में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप का अवसर मिला, जैसा कि बालाजी विश्वनाथ के 15000 सैनिकों सहित दिल्ली में प्रवेश से स्पष्ट है। इन सैनिकों की सहायता से सैय्यद बन्धुओं ने सम्राट फ़र्रुख़सियर को सिंहासन से उतारकर रफ़ीउद्दाराजात को सम्राट बनाया, जिन्होंने इस सन्धि को स्वीकार कर लिया। शून्य से लेकर पेशवा के महत्त्वपूर्ण पद का सफर तय करने वाले बालाजी विश्वनाथ का 2 अप्रैल, 1720 को देहान्त हो गया। किन्तु अपनी मृत्यु से पहले वे शाहू की स्थिति को महाराष्ट्र में दृढ़ कर चुके थे, तथा मुग़ल बादशाह से शाहू के लिए छत्रपति पद की स्वीकृत भी प्राप्त कर चुके थे।
पेशवा पद की वंशागति
बालाजी विश्वनाथ द्वारा की गई सेवाओं से मराठा साम्राज्य अपने गौरवपूर्ण अतीत को एक बार फिर से प्राप्त करने में काफ़ी हद तक सफल हो चुका था। इसीलिए उसके द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण सेवाओं का फल राजा शाहू ने उसे उसके जीते जी दे दिया था। शाहू ने पेशवा का पद अब बालाजी विश्वनाथ के परिवार के लिए वंशगत कर दिया। इसीलिए बालाजी विश्वनाथ की मृत्यु के बाद उसके पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा का पद प्रदान कर दिया गया, जो एक वीर, साहसी और एक समझदार राजनीतिज्ञ था।
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