User:रविन्द्र प्रसाद/2: Difference between revisions
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- [[अथर्ववेद]] | - [[अथर्ववेद]] | ||
||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]यजुर्वेद ग्रन्थ से पता चलता है, कि [[आर्य]] '[[सप्त सिंघव]]' से आगे बढ़ गए थे और वे प्राकृतिक [[पूजा]] के प्रति उदासीन होने लगे थे। [[यजुर्वेद]] के [[मंत्र|मंत्रों]] का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक [[पुरोहित]] करता था। इस [[वेद]] में अनेक प्रकार के [[यज्ञ|यज्ञों]] को सम्पन्न करने की विधियों का उल्लेख है। यह 'गद्य' तथा 'पद्य' दोनों में लिखा गया है। गद्य को 'यजुष' कहा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[यजुर्वेद]] | ||[[चित्र:Yajurveda.jpg|right|100px|यजुर्वेद का आवरण पृष्ठ]]यजुर्वेद ग्रन्थ से पता चलता है, कि [[आर्य]] '[[सप्त सिंघव]]' से आगे बढ़ गए थे और वे प्राकृतिक [[पूजा]] के प्रति उदासीन होने लगे थे। [[यजुर्वेद]] के [[मंत्र|मंत्रों]] का उच्चारण 'अध्वुर्य' नामक [[पुरोहित]] करता था। इस [[वेद]] में अनेक प्रकार के [[यज्ञ|यज्ञों]] को सम्पन्न करने की विधियों का उल्लेख है। यह 'गद्य' तथा 'पद्य' दोनों में लिखा गया है। गद्य को 'यजुष' कहा गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[यजुर्वेद]] | ||
{ज्ञानमार्गी शाखा के [[कवि|कवियों]] को किस नाम से पुकारा जाता है? | {ज्ञानमार्गी शाखा के [[कवि|कवियों]] को किस नाम से पुकारा जाता है? | ||
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-भक्त कवि | -भक्त कवि | ||
+संत कवि | +संत कवि | ||
{निम्नलिखित में से किसे 'जाटों का प्लेटो' कहा जाता था? | {निम्नलिखित में से किसे 'जाटों का प्लेटो' कहा जाता था? | ||
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+ [[सूरजमल]] | + [[सूरजमल]] | ||
- [[बदनसिंह]] | - [[बदनसिंह]] | ||
||[[[[चित्र:Maharaja-Surajmal-1.jpg|right| | ||[[[[चित्र:Maharaja-Surajmal-1.jpg|right|100px|राजा सूरजमल]]राजा सूरजमल ने [[ब्रज]] में एक स्वतंत्र [[हिन्दू]] राज्य को बना [[इतिहास]] में गौरव प्राप्त किया। उसके शासन का समय सन 1755 से 1763 ई. तक है। वह सन 1755 से कई साल पहले से अपने [[पिता]] [[बदनसिंह]] के शासन के समय से ही राजकार्य सम्भालता था। [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में [[सूरजमल]] को 'जाटों का प्लेटो' कहकर भी सम्बोधित किया गया है। राजा सूरजमल के दरबारी कवि 'सूदन' ने राजा की तारीफ में 'सुजानचरित्र' नामक ग्रंथ लिखा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सूरजमल]] | ||
{किस [[बौद्ध संगीति]] में [[बौद्ध धर्म]] के [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में [[संस्कृत]] का प्रयोग प्रारम्भ हुआ? | {किस [[बौद्ध संगीति]] में [[बौद्ध धर्म]] के [[ग्रंथ|ग्रंथों]] में [[संस्कृत]] का प्रयोग प्रारम्भ हुआ? | ||
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-तृतीय | -तृतीय | ||
+चतुर्थ | +चतुर्थ | ||
{[[वेदान्त]] किसे कहा गया है? | |||
|type="()"} | |||
- [[वेद|वेदों]] को | |||
- [[आरण्यक|आरण्यकों]] को | |||
- [[ब्राह्मण ग्रंथ|ब्राह्मण ग्रंथों]] को | |||
+ [[उपनिषद|उपनिषदों]] को | |||
||[[सर्वपल्ली राधाकृष्णन|डॉ. राधाकृष्णन]] के अनुसार [[उपनिषद]] शब्द की व्युत्पत्ति 'उप' (निकट), 'नि' (नीचे), और 'षद' (बैठो) से है। इस संसार के बारे में सत्य को जानने के लिए शिष्यों के दल अपने गुरु के निकट बैठते थे। उपनिषदों का [[दर्शन]] [[वेदान्त]] भी कहलाता है, जिसका अर्थ है- 'वेदों का अन्त', उनकी परिपूर्ति। इनमें मुख्यत: ज्ञान से सम्बन्धित समस्याऔं पर विचार किया गया है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:- [[उपनिषद]] | |||
{[[महात्मा बुद्ध]] द्वारा दिये गये प्रथम उपदेश को क्या कहा जाता है? | {[[महात्मा बुद्ध]] द्वारा दिये गये प्रथम उपदेश को क्या कहा जाता है? | ||
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- [[अटक]] | - [[अटक]] | ||
+ उदमाण्डपुर या ओहिन्द | + उदमाण्डपुर या ओहिन्द | ||
{[[मराठा|मराठों]] ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली का कुशल प्रशिक्षण सम्भवतः किससे प्राप्त किया था? | |||
|type="()"} | |||
- [[गोलकुण्डा]] के मीर जुमला से | |||
+ [[अहमदनगर]] के [[अबीसीनिया|अबीसीनियायी मंत्री [[मलिक अम्बर]] से | |||
- [[मलिक काफ़ूर]] से | |||
- [[मीर ज़ाफ़र]] से | |||
||मराठे तेज़ गति वाले थे और दुश्मन की रसद काटने में काफ़ी होशियार थे। [[मलिक अम्बर]] ने [[मराठा|मराठों]] को गुरिल्ला युद्ध में भी निपुणता प्रदान कर दी थी। यह गुरिल्ला युद्ध प्रणाली दक्कन के मराठों के लिए परम्परागत थी और वे इसमें और भी निपुण हो गए। लेकिन [[मुग़ल]] इससे अपरिचित थे। मराठों की सहायता से मलिक अम्बर ने मुग़लों को [[बरार]], [[अहमदनगर]], और [[बालाघाट]] में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक अम्बर]] | |||
{[[भारत का इतिहास|भारतीय इतिहास]] में 'अमरम' का अर्थ क्या हुआ करता था? | |||
|type="()"} | |||
+जागीर | |||
-एक पदवी | |||
-किसान | |||
-राजा | |||
{[[अशोक]] ने [[कलिंग]] पर कब आक्रमण किया था? | |||
|type="()"} | |||
+260 ई. पू. में | |||
-259 ई. पू. में | |||
-261 ई. पू. में | |||
-273 ई. पू. में | |||
||[[चित्र:Asoka's-Pillar.jpg|100px|right|अशोक स्तम्भ, वैशाली]]कलिंग युद्ध में हुए नरसंहार तथा विजित देश की जनता के कष्ट से [[अशोक]] की अंतरात्मा को तीव्र आघात पहुँचा। 260 ई. पू. में अशोक ने [[कलिंग]] पर आक्रमण किया था और उसे पूरी तरह कुचलकर रख दिया। [[मौर्य]] सम्राट के शब्दों में, 'इस लड़ाई के कारण 1,50,000 आदमी विस्थापित हो गए, 1,00,000 व्यक्ति मारे गए और इससे कई गुना नष्ट हो गए....'। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट अशोक को शोकाकुल बना दिया और वह प्रायश्चित्त करने के प्रयत्न में [[बौद्ध]] विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक]] | |||
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Revision as of 13:28, 15 December 2011
इतिहास सामान्य ज्ञान
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