User:रविन्द्र प्रसाद/2: Difference between revisions
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||[[चित्र:Yudhishthir-Birla-mandir.jpg|right|100px|युधिष्ठिर]]युधिष्ठिर [[पाण्डु]] के पुत्र और पाँच पाण्डवों में से सबसे बड़े भाई थे। वे [[महाभारत]] के नायकों में समुज्ज्वल चरित्र वाले ज्येष्ठ [[पाण्डव]] थे। [[युधिष्ठिर]] [[यमराज|धर्मराज]] के पुत्र थे। वे सत्यवादिता एवं धार्मिक आचरण के लिए विख्यात हैं। [[द्रुपद|राजा द्रुपद]] के यहाँ [[स्वयंवर]] में [[अर्जुन]] के लक्ष्यभेद करने पर [[द्रौपदी]] की प्राप्ति हुई थी। पाण्डवों के यह कहने पर कि- "माँ हम भिक्षा ले आये।" [[कुंती]] ने देखे बिना ही आज्ञा दी कि- "पाँचों भाई आपस में बाँट लो।" अंत में सब हाल मालूम होने पर कुंती बड़े असमंजस में पड़ीं। तब [[युधिष्ठिर]] ने कहा कि [[माता]] के मुँह से जो बात निकल गई है, उसी को हम लोग मानेंगे। [[विवाह]] हो चुकने पर [[पाण्डव]] लोग दुबारा [[हस्तिनापुर]] पहुँच गये। सदा [[धर्म]] के मार्ग पर चलने वाले धर्मराज युधिष्ठिर ने राजा शैव्य की पुत्री देविका को भी स्वयंवर में प्राप्त किया और उनसे [[विवाह]] किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[युधिष्ठिर]] | ||[[चित्र:Yudhishthir-Birla-mandir.jpg|right|100px|युधिष्ठिर]]युधिष्ठिर [[पाण्डु]] के पुत्र और पाँच पाण्डवों में से सबसे बड़े भाई थे। वे [[महाभारत]] के नायकों में समुज्ज्वल चरित्र वाले ज्येष्ठ [[पाण्डव]] थे। [[युधिष्ठिर]] [[यमराज|धर्मराज]] के पुत्र थे। वे सत्यवादिता एवं धार्मिक आचरण के लिए विख्यात हैं। [[द्रुपद|राजा द्रुपद]] के यहाँ [[स्वयंवर]] में [[अर्जुन]] के लक्ष्यभेद करने पर [[द्रौपदी]] की प्राप्ति हुई थी। पाण्डवों के यह कहने पर कि- "माँ हम भिक्षा ले आये।" [[कुंती]] ने देखे बिना ही आज्ञा दी कि- "पाँचों भाई आपस में बाँट लो।" अंत में सब हाल मालूम होने पर कुंती बड़े असमंजस में पड़ीं। तब [[युधिष्ठिर]] ने कहा कि [[माता]] के मुँह से जो बात निकल गई है, उसी को हम लोग मानेंगे। [[विवाह]] हो चुकने पर [[पाण्डव]] लोग दुबारा [[हस्तिनापुर]] पहुँच गये। सदा [[धर्म]] के मार्ग पर चलने वाले धर्मराज युधिष्ठिर ने राजा शैव्य की पुत्री देविका को भी स्वयंवर में प्राप्त किया और उनसे [[विवाह]] किया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[युधिष्ठिर]] | ||
{[[ | {[[महाभारत]] में [[शिशुपाल]] कहाँ का राजा था? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -[[मत्स्य जनपद|मत्स्य]] | ||
+ | +[[चेदि जनपद|चेदि]] | ||
- | -[[विराट नगर|विराट]] | ||
- | -[[मगध]] | ||
||'शिशुपाल' [[महाभारत]] कालीन [[चेदि जनपद|चेदि राज्य]] का स्वामी था। वह [[कृष्ण]] की बुआ का लड़का था। दमघोष के कुल में जब [[शिशुपाल]] का जन्म हुआ, तब उसके तीन नेत्र तथा चार भुजाएँ थीं। [[माता]]-[[पिता]] त्रस्त होकर उसका परित्याग कर देना चाहते थे। तभी आकाशवाणी हुई कि यह बालक बहुत वीर होगा तथा उसकी मृत्यु का कारण वह व्यक्ति होगा, जिसकी गोद में जाने पर बालक अपने भाल-स्थित नेत्र तथा दो भुजाओं का परित्याग कर देगा। शिशुपाल के जन्म के विषय में जानकर अनेक राजा उसे देखने आये थे। जब शिशुपाल के ममेरे भाई [[श्रीकृष्ण]] की गोद में जाते ही उसकी दो भुजाएँ [[पृथ्वी]] पर गिर गयीं तथा ललाटवर्ती नेत्र ललाट में विलीन हो गया, तब बालक की माता ने दु:खी होकर श्रीकृष्ण से उसके प्राणों की भीख माँगी। श्रीकृष्ण ने उसके सौ अपराध क्षमा करने का वचन दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[शिशुपाल]] | |||
{[[अम्बा]] और [[अम्बालिका]] किस राजवंश की राजकुमारियाँ थी?(हि.ध.प्र.- 135) | {[[अम्बा]] और [[अम्बालिका]] किस राजवंश की राजकुमारियाँ थी?(हि.ध.प्र.- 135) | ||
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-[[अग्नि देवता|अग्नि]] | -[[अग्नि देवता|अग्नि]] | ||
||'युधिष्ठिर' जन्म [[धर्मराज (यमराज)|धर्मराज]] के संयोग से [[कुंती]] के गर्भ द्वारा हुआ था। [[अज्ञातवास]] के समय एक दिन [[युधिष्ठिर]] ने पीने का पानी लाने के लिए [[नकुल]] को भेजा। उनके लौटने में देर होने पर [[सहदेव]] को पता लगाने के लिए भेजा। उनके भी न लौटने पर [[भीम]] और फिर [[अर्जुन]] को भेज दिया। जब कोई भी लौट कर नहीं आया, तब [[युधिष्ठिर]] स्वयं ढूँढ़ने निकले। उन्होंने जाकर देखा कि चारों भाई एक सरोवर के तट पर मरे पड़े हैं। वहाँ पर एक [[यक्ष]] को देखकर उन्होंने अपने भाइयों की इस विपत्ति का कारण उससे पूछा। यक्ष ने बतलाया कि "तुम्हारे भाइयों ने मेरी बात न मानकर पानी पी लिया, इसी से उनकी यह दशा हुई है। यदि तुम मेरे प्रश्नों का ठीक-ठीक उत्तर दिये बिना पानी पी लोगे तो तुम्हारा भी यही हाल होगा।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[युधिष्ठिर]], [[यक्ष]] | ||'युधिष्ठिर' जन्म [[धर्मराज (यमराज)|धर्मराज]] के संयोग से [[कुंती]] के गर्भ द्वारा हुआ था। [[अज्ञातवास]] के समय एक दिन [[युधिष्ठिर]] ने पीने का पानी लाने के लिए [[नकुल]] को भेजा। उनके लौटने में देर होने पर [[सहदेव]] को पता लगाने के लिए भेजा। उनके भी न लौटने पर [[भीम]] और फिर [[अर्जुन]] को भेज दिया। जब कोई भी लौट कर नहीं आया, तब [[युधिष्ठिर]] स्वयं ढूँढ़ने निकले। उन्होंने जाकर देखा कि चारों भाई एक सरोवर के तट पर मरे पड़े हैं। वहाँ पर एक [[यक्ष]] को देखकर उन्होंने अपने भाइयों की इस विपत्ति का कारण उससे पूछा। यक्ष ने बतलाया कि "तुम्हारे भाइयों ने मेरी बात न मानकर पानी पी लिया, इसी से उनकी यह दशा हुई है। यदि तुम मेरे प्रश्नों का ठीक-ठीक उत्तर दिये बिना पानी पी लोगे तो तुम्हारा भी यही हाल होगा।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[युधिष्ठिर]], [[यक्ष]] | ||
{[[पाण्डव]] [[अर्जुन]] का देहांत किस स्थान पर हुआ? | |||
|type="()"} | |||
+[[हिमालय पर्वत]] | |||
-[[विन्ध्याचल पर्वत]] | |||
-[[मन्दराचल पर्वत]] | |||
-[[द्रोणगिरि|द्रोण पर्वत]] | |||
||[[चित्र:Gita-Krishna-1.jpg|right|80px|श्रीकृष्ण तथा अर्जुन]]'अर्जुन' [[हस्तिनापुर]] के महाराज [[पाण्डु]] एवं रानी [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे, जो तत्कालीन समय के सर्वश्रेष्ठ तीरंदाज माने जाते थे। वे [[द्रोणाचार्य]] के प्रिय शिष्य थे। जीवन में अनेक अवसरों पर उन्होंने अपने साहस का परिचय दिया था। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में जीतने वाले भी [[अर्जुन]] ही थे। [[महाभारत]] युद्ध में [[कृष्ण]] अर्जुन के सारथी थे। युद्ध के आरंभ में अपने ही बंधु-बांधवों को प्रतिपक्ष में देखकर अर्जुन मोहाच्छन्न हो गए। तब श्रीकृष्ण ने '[[गीता]]' का संदेश देकर उन्हें कर्त्तव्य-पथ पर लगाया। महाभारत में [[पांडव|पांडवों]] की विजय का बहुत कुछ श्रेय अर्जुन को है। महाभारत युद्ध के बाद वे अपने भाइयों के साथ [[हिमालय]] चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देंखे:-[[अर्जुन]] | |||
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Revision as of 13:19, 29 May 2013
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