User:रविन्द्र प्रसाद/1: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 29: | Line 29: | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||[[पुराण|पुराणों]] और [[रामायण]] में वर्णित [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु वंशी]] [[राजा दशरथ]] महाराज [[अज राजा|अज]] के पुत्र थे। इनकी [[माता]] का नाम इन्दुमती था। इन्होंने [[देवता|देवताओं]] की ओर से कई बार [[असुर|असुरों]] को पराजित किया था। [[वैवस्वत मनु]] के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुये, जिनमें से [[राजा दशरथ]] भी एक थे। राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं। सबसे बड़ी [[कौशल्या]], दूसरी [[सुमित्रा]] और तीसरी [[कैकेयी]]। परंतु तीनों रानियाँ निःसंतान थीं। इसी से राजा दशरथ अत्यधिक चिंतित रहते थे। एक बार अपनी चिंता का कारण दशरथ ने राजगुरु [[वसिष्ठ]] को बताया। इस पर राजगुरु वसिष्ठ ने उनसे कहा- "राजन! उपाय से भी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। तुम श्रृंगी ऋषि को बुलाकर 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' कराओ। तुम्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजा दशरथ]] | ||[[पुराण|पुराणों]] और [[रामायण]] में वर्णित [[इक्ष्वाकु वंश|इक्ष्वाकु वंशी]] [[राजा दशरथ]] महाराज [[अज राजा|अज]] के पुत्र थे। इनकी [[माता]] का नाम इन्दुमती था। इन्होंने [[देवता|देवताओं]] की ओर से कई बार [[असुर|असुरों]] को पराजित किया था। [[वैवस्वत मनु]] के वंश में अनेक शूरवीर, पराक्रमी, प्रतिभाशाली तथा यशस्वी राजा हुये, जिनमें से [[राजा दशरथ]] भी एक थे। राजा दशरथ की तीन रानियाँ थीं। सबसे बड़ी [[कौशल्या]], दूसरी [[सुमित्रा]] और तीसरी [[कैकेयी]]। परंतु तीनों रानियाँ निःसंतान थीं। इसी से राजा दशरथ अत्यधिक चिंतित रहते थे। एक बार अपनी चिंता का कारण दशरथ ने राजगुरु [[वसिष्ठ]] को बताया। इस पर राजगुरु वसिष्ठ ने उनसे कहा- "राजन! उपाय से भी सभी इच्छाएँ पूर्ण हो जाती हैं। तुम श्रृंगी ऋषि को बुलाकर 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' कराओ। तुम्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होगी।"{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राजा दशरथ]] | ||
{[[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] की तपस्या जिस [[अप्सरा]] ने भंग की थी, उसका नाम क्या था?(पृ.सं.-13 | {[[विश्वामित्र|महर्षि विश्वामित्र]] की तपस्या जिस [[अप्सरा]] ने भंग की थी, उसका नाम क्या था?(पृ.सं.-13 | ||
Line 50: | Line 43: | ||
-[[कुश]] | -[[कुश]] | ||
+कुशध्वज | +कुशध्वज | ||
- | -सिरध्वज | ||
||'जनक' [[मिथिला]] के राजा और [[निमि]] के पुत्र थे। जनक नन्दनी [[सीता]] का [[विवाह]] [[अयोध्या]] के [[राजा दशरथ]] के ज्येष्ठ पुत्र [[श्रीराम]] के साथ सम्पन्न हुआ था। [[जनक]] का वास्तविक नाम 'सिरध्वज' था। इनके छोटे भाई का नाम 'कुशध्वज' था। तत्कालीन समय में राजा जनक अपने अध्यात्म तथा तत्त्वज्ञान के लिए बहुत ही प्रसिद्ध थे। उनकी विद्वता की हर कोई प्रशंसा करता था। जनक के पिता [[निमि]] और [[वसिष्ठ]] ने एक-दूसरे को शाप दिया, जिससे वे दोनों जल कर भस्म हो गये थे। ऋषियों ने एक विशेष उपचार से [[यज्ञ]] समाप्ति तक निमि का शरीर सुरक्षित रखा। निमि के कोई सन्तान नहीं थी। अत: ऋषियों ने अरणि से उनके शरीर का मन्थन किया, जिससे इनके एक पुत्र उत्पन्न हुआ। शरीर मन्थन से उत्पन्न होने के कारण जनक को 'मिथि' भी कहा जाता है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[जनक]] | |||
{[[शत्रुघ्न]] के [[पुरोहित]] का क्या नाम था?(पृ.सं.-13 | {[[शत्रुघ्न]] के [[पुरोहित]] का क्या नाम था?(पृ.सं.-13 |
Revision as of 07:13, 4 June 2013
|