ऐतिहासिक कृतियाँ (सल्तनत काल): Difference between revisions

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Revision as of 06:06, 2 April 2011

सल्तनत काल में कई विद्वानों द्वारा अलग-अलग प्रकार की बहुत-सी कृतियों की रचना की गई। इन कृतियों के माध्यम से हमें सल्तनत काल के शासकों व उनकी प्रशासनिक व्यवस्था के विषय में काफ़ी महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। ये कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

  • चचनामा - अली अहमद द्वारा अरबी भाषा में लिखित इस ग्रंथ में अरबों द्वारा सिंध विजय का वर्णन किया गया है।
  • तारीख़े सिंध या तारिख़े मासूमी - भक्खर के मीर मुहम्मद मासूम द्वारा रचित इस कृति में अरबों की विजय से लेकर अकबर के शासन काल तक का इतिहास मिलता हे।
  • किताबुल यामिनी - अबू नस्र बिन मुहम्मद अल जबरूल उतबी द्वारा रचित इस पुस्तक में सुबुक्तगीन एवं महमूद ग़ज़नवी के शासन काल का वर्णन है।
  • तारीख़-ए-मसूदी - अबुल सईद द्वारा रचित इस ग्रन्थ में ईरान के इतिहास एवं महमूद ग़ज़नवी के जीवन के विषय में जानकारी मिलती है।
  • तारीख़-ए-मसूदी - अबुल फ़ज़ल मुहम्मद बिन हुसैन अल बहरी द्वारा रचित इस पुस्तक में महमूद ग़ज़नवी तथा मसूद के इतिहास के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है।
  • तारीख़-उल-हिन्द (किताबुल हिन्द) - महमूद ग़ज़नवी के साथ भारत आए अलबरूनी की इस महत्त्वपूर्ण कृति में 11वीं सदी के भारत की राजनैतिक एवं सामाजिक दशा का उल्लेख मिलता है। उसकी यह पुस्तक अरबी भाषा में लिखी गई है।
  • कमीलुत तवारीख़ - शेख़ अब्दुल हसन (इब्नुल अंसार) द्वारा रचित यह ग्रन्थ 1230 ई. में लिखा गया। इस ग्रंथ में मध्य एशिया के गोर शंसबनी राजवंश के इतिहास के विषय में जानकारी मिलती है।
  • ताजुल मासिर - हसन निजामी द्वारा रचित इस पुस्तक में मुहम्मद ग़ोरी के भारत आक्रमण के समय की घटनाओं का वर्णन मिलता है।
  • तबकाते नासिरी - मिनहाज-उस-सिराज (मिनिहाजुद्दीन अबू-उमर-बिन सिराजुद्दीन अल जुजियानी) द्वारा रचित इस पुस्तक में मुहम्मद ग़ोरी के भारत विजय तथा तुर्की सल्तनत का आरम्भिक इतिहास लगभग 1260 ई. तक की जानकारी मिलती है। मिनहाज ने अपनी इस कृति को गुलाम वंश के शासक नसीरूद्दीन महमूद को समर्पित किया था। उस समय मिनहाज दिल्ली का मुख्य क़ाज़ी था।
  • तारिख़े फ़िरोजशाही - जियाउद्दीन बरनी द्वारा रचित इस कृति में सल्तनत कालीन राजनीतिक विचारधारा की सही तस्वीर प्रस्तुत की गई है। इसके अतिरिक्त जियाउद्दीन बरनी की कुछ अन्य कृतियाँ 'सुनाए मुहमदी', 'सलाते कबीर', 'इनायत-ए-इलाही', 'मासीर सादात', 'हसरतनामा', तारीख़ बमलियान' आदि हैं।

अमीर ख़ुसरो की कुछ महत्त्वपूर्ण कृतियाँ

'ख़जाइन-उल-फुतूह', 'किरान-उस-सादेन', 'मिफता-उस-फुतूह', 'आशिका-उल-अनवर', 'शीरी व फरहाद', 'लैला व मजनू', 'आइने सिकन्दरी', ह'श्तबहिश्त', 'देवलरानी व खिज्र ख़ाँ', 'रसै इजाज अफ़जल', 'उल-फरायद', 'तारीख़े दिल्ली' आदि हैं। इनके अतिरिक्त सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृतियों का उल्लेख निम्नलिखित है-

  • ख़जाइन-उल-फुतूह - इसे तारीख़ अलाई के नाम से भी जाना जाता है। अमीर ख़ुसरो द्वारा रचित इस कृति से अलाउद्दीन ख़िलजी के शासन काल के पूर्व के 15 वर्षों की घटनाओं का वर्णन मिलता है।
  • किरान-उस-सादेन - अमीर खुसरो द्वारा 1289 ई . में रचित इस पुस्तक में बुगरा ख़ाँ और उसके बेटे कैकुबाद के मिलन का वर्णन है।
  • मिफता-उस-फुतूह - 1291 ईं. में रचित अमीर ख़ुसरो की इस कृति में जलालुद्दीन ख़िलजी के सैन्य अभियानों, मलिक छज्जू का विद्रोह एवं उसका दमन, रणथम्भौर पर सुल्तान की चढ़ाई और झाइन की विजयों का वर्णन है।
  • आशिका - ख़ुसरो की इस कृति में गुजरात के राज करन की पुत्री देवलरानी और खिज्र ख़ाँ के बीच प्रेम का उल्लेख है। इसके अतिरिक्त यह पुस्तक अलाउद्दीन ख़िलजी की गुजरात तथा मालवा पर विजय, तथा मंगोलों द्वारा स्वयं को क़ैद किऐ जाने की जानकारी भी देती है।
  • नूह-सिपेहर - अमीर ख़ुसरो की इस कृति में कुतुबुद्दीन मुबारक ख़िलजी के समय की सामाजिक स्थिति के विषय में जानकारी मिलती है।
  • तुग़लक़नामा - अमीर ख़ुसरो की इस अंतिम एवं ऐतिहासिक कृति में ख़ुसरों शाह के विरुद्ध ग़यासुद्दीन तुग़लक़ की विजय का उल्लेख है।
  • फुतूह-उस-सलातीन - ख्वाजा अबूबक्र इसामी द्वारा रचित इस पुस्तक में ग़ज़नवी वंश के समय से लेकर मुहम्मद बिन तुग़लक़ के समय तक का काव्यात्मक इतिहास मिलता है। यह पुस्तक बहमनी वंश के प्रथम शासक अलाउद्दीन बहमनशाह को समर्पित है।
  • किताब-उल-रेहला - यह मोरक्कोवासी यात्री, इब्न बतूता, जो 1333 ई. में (मुहम्मद तुग़लक़) के समय में भारत आय था, का यात्रा वृतान्त है। इस पुस्तक में 1333 से 1342 तक के भारत की राजनीतिक गतिविधियों एवं सामाजिक हालातों का वर्णन है। इसे मुहम्मद तुग़लक़ ने दिल्ली का क़ाज़ी नियुक्त किया था। कालान्तर में इसे दूत बनाकर चीन भेजा गया।
  • तारीख़-ए-फ़िरोजशाही - शम्स-ए-सिराज अफ़ीफ़ द्वारा लिखे गये इस ग्रंथ में फ़िरोज शाह तुग़लक़ के शासन काल में एवं तुग़लक़ वंश के पतन के बारे में जानकारी मिलती है। इसकी अन्य कृतियाँ ‘मन की बें अलाई’, ‘मना की बे सुल्तान मुहम्मद’ एवं ‘जिक्रे खराबीये देहली’ है।
  • सीराते फ़िरोजशाही - किसी अज्ञात लेखक द्वारा लिखी इस कृति से फ़िरोज शाह तुग़लक़ के शासन काल के बारे में जानकारी मिलती है।
  • फुतूहाते फ़िरोजशाही - इस किताब में फ़िरोज शाह तुग़लक़ के अध्यादेशों का संग्रह एवं उसकी आत्मरक्षा है।
  • तारीख़-ए-मुबारकशाही - याहिया बिन अहमद सरहिन्दी द्वारा लिखे गये इस ग्रंथ से तुग़लक़ काल के बाद सैय्यद वंश की जानकारी मिलती हे। इस काल के इतिहास को जानने का यह एकमात्र स्रोत है।
  • गुलरुखी - लोदी वंश सुल्तान सिकन्दर शाह लोदी ने गुलरुखी शीर्षक से फ़ारसी में कविताएँ लिखीं।

संस्कृत पुस्तकों का फ़ारसी अनुवाद

सल्तनत काल में संस्कृत की कुछ पुस्तकों का फ़ारसी भाषा में अनुवाद किया गया, जो निम्नलिखत है-

  • दलयाले फ़िरोजशाही - ऐजद्दीन ख़ालिद किरमानी द्वारा संस्कृत से फ़ारसी में अनूदित यह पुस्तक नक्षत्र-शास्त्र से सम्बन्धित है।
  • याद नुसशाफियाये सिकन्दरी या तिब्बे सिकन्दरी - सिकन्दर शाह लोदी के वज़ीर मियाँ भुआँ द्वारा संस्कृत से फ़ारसी में अनुदित यह पुस्तक चिकित्साशास्त्र से सम्बन्धित है।
  • ताज-उल-मासिर - इस ग्रन्थ की रचना हसन निजामी ने की है। इसमें 1192 ई. से लेकर 1228 ई. तक के काल की घटनाओं का वर्णन मिलता हे। हसन निजामी ने अपनी इस पुस्तक में कुतुबुद्दीन ऐबक के जीवन व शासन और इल्तुतमिश के राज्य के प्रारम्भिक वर्षों का वर्णन किया है।
  • कामिल-उत-तवारीख़ - इसकी रचना 1230 ई. में शेख़ अब्दुल हसन (उपनाम इब्नुल आसीर) ने की। इसमें मुहम्मद ग़ोरी की विजयों का वृतान्त मिलता है।
  • तारीख़-ए-सिंध या तारीख़-ए-मासूमी - यह ग्रन्थ 'चचनामा' पर आधरित है। इसकी रचना 1600 ई. में मीर मुहम्मद मासूम द्वारा की गई थी। इसमें अरबों की विजय से लेकर मुग़ल सम्राट अकबर महान तक के राज्य में सिंध का इतिहास वर्णित है।
  • किताब-उल-यामिनी - इस ग्रन्थ का रचियता उतबी है। सुबुक्तगीन और महमूद ग़ज़नवी का 1020 ई. तक का इतिहास इस पुस्तक का विषय है।
  • तारीख़-ए-मसूदी - अबुल फ़ज़ल मुहम्मद बिन हुसैन-अल-बेहाकी द्वारा लिखित इस ग्रन्थ में महमूद ग़ज़नवी के इतिहास, दरबार के जीवन की झलक और कर्मचारियों के षडयंत्रों का विवरण मिलता है।
  • हिन्दी में मसनवी लिखने की परम्परा की शुरुआत तुग़लक़ काल में हुई थी।


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