नारियल: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "नक्काशी" to "नक़्क़ाशी") |
||
Line 9: | Line 9: | ||
पेड़ का प्रत्येक भाग किसी न किसी काम में आता है। ये भाग किसानों के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इसका धड़ मकानों की धरन, फर्नीचर आदि बनाने और जलावन के काम आता है, पत्तों से पंखे, टोकरियाँ, चटाइयाँ आदि बनती हैं और ये छतों के छाजन में भी प्रयुक्त होते हैं। गरी का पानी पीया जाता है। गरी खाई जाती है और उसे सुखाकर 'कोपरा' प्राप्त करते हैं, जिससे तेल निकाला जाता है। 1,000 फलों से 500 पाउंड कोपरा प्राप्त होता है, | पेड़ का प्रत्येक भाग किसी न किसी काम में आता है। ये भाग किसानों के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इसका धड़ मकानों की धरन, फर्नीचर आदि बनाने और जलावन के काम आता है, पत्तों से पंखे, टोकरियाँ, चटाइयाँ आदि बनती हैं और ये छतों के छाजन में भी प्रयुक्त होते हैं। गरी का पानी पीया जाता है। गरी खाई जाती है और उसे सुखाकर 'कोपरा' प्राप्त करते हैं, जिससे तेल निकाला जाता है। 1,000 फलों से 500 पाउंड कोपरा प्राप्त होता है, | ||
जिससे लगभग 25 गैलन तेल निकलता है। इसका तेल सफेद होता है। इसमें एक अरुचिकर गंध होती है, जिसको सरलता से दूर किया जा सकता है। इसका तेल खाने, साबुन बनाने, वनस्पति तैयार करने और अंगराग में प्रयुक्त होता है। नारियल की जटा से रस्से, चटाइयाँ, ब्रश, जाल, थैले आदि अनेक वस्तुएँ बनती हैं। यह गद्दों में भी भरा जाता है। नारियल की खोपड़ी से पानी या तेल रखने के पात्र और हुक्के बनते हैं। इन पात्रों पर सुंदर | जिससे लगभग 25 गैलन तेल निकलता है। इसका तेल सफेद होता है। इसमें एक अरुचिकर गंध होती है, जिसको सरलता से दूर किया जा सकता है। इसका तेल खाने, साबुन बनाने, वनस्पति तैयार करने और अंगराग में प्रयुक्त होता है। नारियल की जटा से रस्से, चटाइयाँ, ब्रश, जाल, थैले आदि अनेक वस्तुएँ बनती हैं। यह गद्दों में भी भरा जाता है। नारियल की खोपड़ी से पानी या तेल रखने के पात्र और हुक्के बनते हैं। इन पात्रों पर सुंदर नक़्क़ाशी के काम किए जा सकते हैं। | ||
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} |
Revision as of 12:00, 20 September 2011
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
thumb|250px|नारियल से भरा ट्रक नारियल खजूर जाति का पेड़ है। इस पेड़ के फल को भी नारियल कहते है। नारियल के उत्पादन में संसार में भारत का दूसरा स्थान है। भारत में लगभग 16 लाख एकड़ भूमि में नारियल उपजता है। उत्पादन के प्रमुख प्रदेश केरल, मैसूर, मद्रास और आंध्र हैं। पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, असम, अरब सागर, लक्षदीवी (लक्कादीव) और बंगाल की खाड़ी के अंडमान एवं निकोबार द्वीपों में भी नारियल उपजता है। भारत के अतिरिक्त लंका, फिलीपाइन्स, इंडोनीशिया, मलेशिया और दक्षिण सागर के द्वीपों, अमरीका के उष्णकटिबंधीय प्रदेशों और प्रशांत महासागर के उष्ण द्वीपों में नारियल प्रचुरता से उपजता है।
नारियल का पेड़
नारियल का पेड़ लगभग 80 वर्षों तक जीवित रहता है। 15 वर्षों के बाद पेड़ में फल लगते हैं। पेड़ 60 फुट से 100 फुट तक ऊँचा और उसका धड़ बेलनाकार दो फुट तक या मोटा हो सकता है। पेड़ के शिखर पर सुंदर पिच्छाकार, 20 फुट तक लंबे पत्ते होते हैं। पाँच या छ: फुट लंबे स्पाइकों पर फूल और 10 से 20 के गुच्छों में फल लगते हैं। परिपक्व फल 12 से 18 इंच लंबा और 6 से 8 इंच व्यास का होता है। फलों के ऊपर रेशों की गद्दी होती है। [[चित्र:Coconut-Tree.jpg|thumb|left|नारियल का पेड़, गोवा]] इस गद्दी के नीचे कठोर काठ की बनी खोपड़ी होती है और खोपड़ी के नीचे गरी रहती है। गरी में पानी रहता है, जिसे नारियल का पानी या नारियल का दूध कहते हैं। कच्चे नारियल का पानी सुस्वादु और स्फूर्तिदायक होता है। गरमी के दिनों में प्यास बुझाने के लिए लोग इस पानी को बड़े चाव से पीते हैं। इसकी खोपड़ी पर तीन गड्ढे होते हैं, जिनमें एक गड्ढा कोमल होता है, जिसको बड़ी सरलता से छेद कर पानी निकाला जा सकता है। इस कोमल गड्ढे के नीचे भ्रूण होता है, जिसके अंकुरण से छोटा पौधा निकलता है। बीज के लिए स्वस्थ, गठीले 40 वर्ष के पुराने पेड़ का फल चुना जाता है। बरसात के पहले किसी संबर्धनशाला में इसे मिट्टी से ढँककर गाड़ देते हैं। लगभग डेढ़ वर्ष का हो जाने पर पौधे को खेतों में बोते हैं। पेड़ों को पर्याप्त धूप की आवश्यकता पड़ती है। अत: 20 से 30 फुट की दूरी पर पेड़ लगाना अच्छा होता है। अच्छी वृद्धि के लिए पौधे को खाद की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन, पोटाश या गोबर की खाद देनी चाहिए। प्रत्येक पेड़ को प्रति वर्ष एक से तीन पाउंड ऐमोनियम सल्फेट, एक से दो पाउंड पोटासियम सल्फेट, या 10 से 20 पाउंड राख और लगभग 200 पाउंड गोबर की खाद, या कंपोस्ट खाद दी जा सकता है। साल में 5 से 10 बार तक फल लगते हैं तथा प्रत्येक वर्ष पेड़ में साधारणतया 60 से 100 फल तक होते हैं।
पेड़ का प्रत्येक भाग किसी न किसी काम में आता है। ये भाग किसानों के लिए बड़े उपयोगी सिद्ध हुए हैं। इसका धड़ मकानों की धरन, फर्नीचर आदि बनाने और जलावन के काम आता है, पत्तों से पंखे, टोकरियाँ, चटाइयाँ आदि बनती हैं और ये छतों के छाजन में भी प्रयुक्त होते हैं। गरी का पानी पीया जाता है। गरी खाई जाती है और उसे सुखाकर 'कोपरा' प्राप्त करते हैं, जिससे तेल निकाला जाता है। 1,000 फलों से 500 पाउंड कोपरा प्राप्त होता है,
जिससे लगभग 25 गैलन तेल निकलता है। इसका तेल सफेद होता है। इसमें एक अरुचिकर गंध होती है, जिसको सरलता से दूर किया जा सकता है। इसका तेल खाने, साबुन बनाने, वनस्पति तैयार करने और अंगराग में प्रयुक्त होता है। नारियल की जटा से रस्से, चटाइयाँ, ब्रश, जाल, थैले आदि अनेक वस्तुएँ बनती हैं। यह गद्दों में भी भरा जाता है। नारियल की खोपड़ी से पानी या तेल रखने के पात्र और हुक्के बनते हैं। इन पात्रों पर सुंदर नक़्क़ाशी के काम किए जा सकते हैं।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख