मौसम है ओलम्पिकाना -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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"देखो एक तो खिलाड़ी वो हैं जो दिन-रात प्रॅक्टिस करते हैं। अपनी ट्रेनिंग ख़र्च ख़ुद ही उठाते हैं और मॅडल भी ले ही आते हैं, दूसरे वो हैं जिन्हें हम तैयार करते हैं। हमारे वाले खिलाड़ी ही असली खिलाड़ी हैं जो बेचारे न जाने कितने इंस्ट्रॅक्टरों, कोचों और मंत्रियों के चमचों को सॅट करके हमारे पास आते हैं, तब कहीं जाकर हम उनको 'शपथ' दिलाते हैं। | "देखो एक तो खिलाड़ी वो हैं जो दिन-रात प्रॅक्टिस करते हैं। अपनी ट्रेनिंग ख़र्च ख़ुद ही उठाते हैं और मॅडल भी ले ही आते हैं, दूसरे वो हैं जिन्हें हम तैयार करते हैं। हमारे वाले खिलाड़ी ही असली खिलाड़ी हैं जो बेचारे न जाने कितने इंस्ट्रॅक्टरों, कोचों और मंत्रियों के चमचों को सॅट करके हमारे पास आते हैं, तब कहीं जाकर हम उनको 'शपथ' दिलाते हैं। | ||
"कैसी शपथ ?" | "कैसी शपथ ?" | ||
"अरे यही मॅडल जीतने की शपथ... कि मैं सत्यनिष्ठा से शपथ लेता हूँ कि किसी प्रकार का कोई मॅडल नहीं जीतूँगा, सोने चाँदी की चमक देखकर मेरा मन नहीं डोलेगा। मैं ओलम्पिक में अपने देश [[भारत]] के लिए नहीं बल्कि भारत-सरकार के बाबुओं, राजकर्मचारियों, खेल-प्रशिक्षकों और मंत्रियों के विश्व-भ्रमण और जेब-भरण के लिए खेलूंगा।...बस यही तो छोटी सी ही शपथ है कोई ज़्यादा लम्बी | "अरे यही मॅडल जीतने की शपथ... कि मैं सत्यनिष्ठा से शपथ लेता हूँ कि किसी प्रकार का कोई मॅडल नहीं जीतूँगा, सोने चाँदी की चमक देखकर मेरा मन नहीं डोलेगा। मैं ओलम्पिक में अपने देश [[भारत]] के लिए नहीं बल्कि भारत-सरकार के बाबुओं, राजकर्मचारियों, खेल-प्रशिक्षकों और मंत्रियों के विश्व-भ्रमण और जेब-भरण के लिए खेलूंगा।...बस यही तो छोटी सी ही शपथ है कोई ज़्यादा लम्बी चौड़ी शपथ नहीं है।" | ||
"अच्छाऽऽऽ ! तो ये है वो शपथ जो सीधे ओलम्पिक में पहुँचा देती है" | "अच्छाऽऽऽ ! तो ये है वो शपथ जो सीधे ओलम्पिक में पहुँचा देती है" | ||
"अरे शपथ तो हम दिला देते हैं लेकिन फिर भी कुछ खिलाड़ी नालायक़ निकल जाते हैं... विदेश में जाकर न जाने क्या हो जाता है इनको, कभी-कभी शपथ को भूलकर सोने-चाँदी के मॅडलों पर ध्यान लगा देते हैं। वैसे तो मैं ख़ूब समझाता हूँ कि कितने भी मॅडल जीत लो, बुढ़ापे में मरना तो तुम्हें भूखा ही है... बाद में इन्हीं मॅडल को बेचकर काम चलाते हैं... एक-आध तो डाकू भी बन गया...अब तुम ही बताओ कि कहाँ तक समझाऊँ इन्हें, ये नई जॅनरेशन के लोग नहीं मानते हैं हमारी बात" | "अरे शपथ तो हम दिला देते हैं लेकिन फिर भी कुछ खिलाड़ी नालायक़ निकल जाते हैं... विदेश में जाकर न जाने क्या हो जाता है इनको, कभी-कभी शपथ को भूलकर सोने-चाँदी के मॅडलों पर ध्यान लगा देते हैं। वैसे तो मैं ख़ूब समझाता हूँ कि कितने भी मॅडल जीत लो, बुढ़ापे में मरना तो तुम्हें भूखा ही है... बाद में इन्हीं मॅडल को बेचकर काम चलाते हैं... एक-आध तो डाकू भी बन गया...अब तुम ही बताओ कि कहाँ तक समझाऊँ इन्हें, ये नई जॅनरेशन के लोग नहीं मानते हैं हमारी बात" |
Revision as of 11:59, 31 July 2012
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