दर्भशयनम: Difference between revisions
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'''दर्भशयनम''' [[मद्रास]] में 'रामनाद' अथवा 'रामनाथपुरम' से 6 मील की दूरी पर है। [[समुद्र]] यहाँ से तीन मील दूर है। कहा जाता है कि समुद्र पार करने के लिए [[श्रीराम|श्रीरामचंद्र]] ने समुद्र से तीन दिन तक प्रार्थना की थी और इसी स्थान पर कुशासन पर शयन कर उन्होंने व्रत का अनुष्ठान किया था, जिसके कारण इस स्थान को 'दर्भशयन' कहते हैं। | '''दर्भशयनम''' [[मद्रास]] में 'रामनाद' अथवा '[[रामनाथपुरम]]' से 6 मील की दूरी पर है। [[समुद्र]] यहाँ से तीन मील दूर है। कहा जाता है कि समुद्र पार करने के लिए [[श्रीराम|श्रीरामचंद्र]] ने समुद्र से तीन दिन तक प्रार्थना की थी और इसी स्थान पर कुशासन पर शयन कर उन्होंने व्रत का अनुष्ठान किया था, जिसके कारण इस स्थान को 'दर्भशयन' कहते हैं। | ||
*[[वाल्मीकि रामायण]] में इस घटना का वर्णन इस प्रकार है- | *[[वाल्मीकि रामायण]] में इस घटना का वर्णन इस प्रकार है- |
Latest revision as of 13:49, 26 September 2012
दर्भशयनम मद्रास में 'रामनाद' अथवा 'रामनाथपुरम' से 6 मील की दूरी पर है। समुद्र यहाँ से तीन मील दूर है। कहा जाता है कि समुद्र पार करने के लिए श्रीरामचंद्र ने समुद्र से तीन दिन तक प्रार्थना की थी और इसी स्थान पर कुशासन पर शयन कर उन्होंने व्रत का अनुष्ठान किया था, जिसके कारण इस स्थान को 'दर्भशयन' कहते हैं।
- वाल्मीकि रामायण में इस घटना का वर्णन इस प्रकार है-
'तत: सागरवेलायां दर्भानास्तीर्यराघव:, अंजलि प्राड्मुख: कृत्वा प्रतिशिश्ये महोदधे:'[1]
अर्थात् तब समुद्र के तीर पर कुश या दर्भ बिछाकर रामचंद्र पूर्व की ओर समुद्र को हाथ जोड़कर सो गए।
- 'स त्रिरात्रोषितस्तत्रनयज्ञो धर्मवत्सल: उपासत तदाराम: सागरं सरितांपतिम्'[2]
अर्थात् नीतिज्ञ, धर्मपरायण राम ने विधिपूर्वक तीन रात वहाँ रहकर सरितापति समुद्र की उपासना की।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 427 |