बघेली बोली: Difference between revisions
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बघेली या बाघेली बोली, [[हिन्दी]] की एक बोली है जो [[भारत]] के [[बघेलखण्ड]] क्षेत्र में बोली जाती है। बघेले राजपूतों के आधार पर [[रीवा]] तथा आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है और वहाँ की बोली को बघेलखंडी या बघेली कहलाती हैं। इसके अन्य नाम मन्नाडी, रिवाई, गंगाई, मंडल, केवोत, केवाती बोली, केवानी और नागपुरी हैं। | बघेली या बाघेली बोली, [[हिन्दी]] की एक बोली है जो [[भारत]] के [[बघेलखण्ड]] क्षेत्र में बोली जाती है। बघेले राजपूतों के आधार पर [[रीवा]] तथा आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है और वहाँ की बोली को बघेलखंडी या बघेली कहलाती हैं। इसके अन्य नाम मन्नाडी, रिवाई, गंगाई, मंडल, केवोत, केवाती बोली, केवानी और नागपुरी हैं। | ||
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बघेली बोली का उद्भव | बघेली बोली का उद्भव [[अर्ध मागधी]] अपभ्रंश के ही एक क्षेत्रीय रूप से हुआ है। यद्यपि जनमत इसे अलग बोली मानता है, किंतु [[भाषा]] वैज्ञानिक स्तर पर पर यह [[अवधी भाषा|अवधी]] की ही उपबोली ज्ञात होती है और इसे दक्षिणी अवधी भी कह सकते हैं। | ||
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बघेली बोली के क्षेत्र के अंतर्गत रीवाँ अथवा रीवा, नागोद, शहडोल, सतना, मैहर तथा आसपास का क्षेत्र आता है। इसके अतिरिक्त बघेली बोली [[महाराष्ट्र]], [[उत्तर प्रदेश]] और [[नेपाल]] में भी बोली जाती है। भारत में इसके बोलने वालों की संख्या 3,96,000 है।<ref>{{cite web |url=http://www.ethnologue.com/14/show_language.asp?code=BFY |title=BAGHELI: a language of India |accessmonthday=28 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher= |language=अंग्रेज़ी }} </ref> | बघेली बोली के क्षेत्र के अंतर्गत रीवाँ अथवा रीवा, नागोद, शहडोल, सतना, मैहर तथा आसपास का क्षेत्र आता है। इसके अतिरिक्त बघेली बोली [[महाराष्ट्र]], [[उत्तर प्रदेश]] और [[नेपाल]] में भी बोली जाती है। भारत में इसके बोलने वालों की संख्या 3,96,000 है।<ref>{{cite web |url=http://www.ethnologue.com/14/show_language.asp?code=BFY |title=BAGHELI: a language of India |accessmonthday=28 सितम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format=ए.एस.पी |publisher= |language=अंग्रेज़ी }} </ref> | ||
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Latest revision as of 07:05, 22 July 2014
बघेली या बाघेली बोली, हिन्दी की एक बोली है जो भारत के बघेलखण्ड क्षेत्र में बोली जाती है। बघेले राजपूतों के आधार पर रीवा तथा आसपास का क्षेत्र बघेलखंड कहलाता है और वहाँ की बोली को बघेलखंडी या बघेली कहलाती हैं। इसके अन्य नाम मन्नाडी, रिवाई, गंगाई, मंडल, केवोत, केवाती बोली, केवानी और नागपुरी हैं।
उद्भव
बघेली बोली का उद्भव अर्ध मागधी अपभ्रंश के ही एक क्षेत्रीय रूप से हुआ है। यद्यपि जनमत इसे अलग बोली मानता है, किंतु भाषा वैज्ञानिक स्तर पर पर यह अवधी की ही उपबोली ज्ञात होती है और इसे दक्षिणी अवधी भी कह सकते हैं।
क्षेत्र
बघेली बोली के क्षेत्र के अंतर्गत रीवाँ अथवा रीवा, नागोद, शहडोल, सतना, मैहर तथा आसपास का क्षेत्र आता है। इसके अतिरिक्त बघेली बोली महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और नेपाल में भी बोली जाती है। भारत में इसके बोलने वालों की संख्या 3,96,000 है।[1]
विशेषताएँ
- कुछ अपवादों को छोड़कर बघेली में केवल लोक- साहित्य है।
- सर्वनामों में 'मुझे' के स्थान पर म्वाँ, मोही; तुझे के स्थान पर त्वाँ, तोही; विशेषण में -हा प्रत्यय (नीकहा), घोड़ा का घ्वाड़, मोर का म्वार, पेट का प्टवा, देत का द्यात आदि इसकी कुछ विशेषताएँ हैं।
- इसकी मुख्य बोलियाँ तिरहारी, जुड़ार, गहोरा आदि हैं।
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टीका टिप्पणी
- ↑ BAGHELI: a language of India (अंग्रेज़ी) (ए.एस.पी)। । अभिगमन तिथि: 28 सितम्बर, 2012।
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