ब्रज चौरासी कोस की यात्रा: Difference between revisions

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ब्रज यात्रा के अपने नियम हैं। इसमें शामिल होने वालों को प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है। इनमें प्रमुख हैं- धरती पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, कथा-संकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है।
ब्रज यात्रा के अपने नियम हैं। इसमें शामिल होने वालों को प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है। इनमें प्रमुख हैं- धरती पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, कथा-संकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है।


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ब्रज चौरासी कोस की यात्रा
विवरण ब्रज भूमि की पौराणिक "चौरासी कोस यात्रा" हज़ारों वर्ष पुरानी है। चालीस दिन में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख वेद-पुराण व श्रुति ग्रंथ संहिता में भी है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला मथुरा
प्रसिद्धि हिन्दू धार्मिक यात्रा
सावधानी जेबकतरों व बन्दरों से सावधान रहें
संबंधित लेख कृष्ण जन्म भूमि, यमुना, द्वारिकाधीश मन्दिर, विश्राम घाट, गोकुल, बरसाना, नन्दगाँव, बांकेबिहारी मन्दिर, वृन्दावन,


अन्य जानकारी ब्रज यात्रा के अपने नियम हैं। इसमें शामिल होने वालों को प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है।
अद्यतन‎
  • वराह पुराण कहता है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। यही वजह है कि ब्रज यात्रा करने वाले इन दिनों यहाँ खिंचे चले आते हैं। हज़ारों श्रद्धालु ब्रज के वनों में डेरा डाले रहते हैं।
  • ब्रजभूमि की यह पौराणिक यात्रा हज़ारों साल पुरानी है। चालीस दिन में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख वेद-पुराण व श्रुति ग्रंथ संहिता में भी है। कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं से ही नहीं, सतयुग में भक्त ध्रुव ने भी यहीं आकर नारद जी से गुरु मन्त्र ले अखंड तपस्या की व ब्रज की परिक्रमा की थी।
  • त्रेता युग में प्रभु राम के लघु भ्राता शत्रुघ्न ने मधु पुत्र लवणासुर को मारकर ब्रज परिक्रमा की थी। गली बारी स्थित शत्रुघ्न मंदिर यात्रा मार्ग में अति महत्त्व का माना जाता है।
  • द्वापर युग में उद्धव ने गोपियों के साथ ब्रज परिक्रमा की।
  • कलियुग में जैन और बौद्ध धर्मों के स्तूप चैत्य, संघाराम आदि स्थल इस परियात्रा की पुष्टि करते हैं।
  • 14वीं शताब्दी में जैन धर्माचार्य जिन प्रभु शूरी की ब्रज यात्रा का उल्लेख आता है।
  • 15वीं शताब्दी में माध्व सम्प्रदाय के आचार्य मघवेंद्र पुरी महाराज की यात्रा का वर्णन है तो 16वीं शताब्दी में महाप्रभु वल्लभाचार्य, गोस्वामी विट्ठलनाथ, चैतन्य मत केसरी चैतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, नारायण भट्ट, निम्बार्क संप्रदाय के चतुरानागा आदि ने ब्रज यात्रा की थी।

[[चित्र:Radha Kund Govardhan Mathura 1.jpg|right|राधा कुण्ड, गोवर्धन, मथुरा|thumb|400px]]

परिक्रमा मार्ग

इस यात्रा में मथुरा की अंतरग्रही परिक्रमा भी शामिल है। मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले निम्न स्थानों पर पहुँचती है।

  1. भक्त ध्रुव तपोस्थली
  2. मधुवन
  3. तालवन
  4. कुमुदवन
  5. शांतनु कुण्ड
  6. सतोहा
  7. बहुलावन
  8. राधा-कृष्ण कुण्ड
  9. गोवर्धन
  10. काम्यवन
  11. संच्दर सरोवर
  12. जतीपुरा
  13. डीग का लक्ष्मण मंदिर
  14. साक्षी गोपाल मंदिर
  15. जल महल
  16. कुमुदवन
  17. चरन पहाड़ी कुण्ड
  18. काम्यवन
  19. बरसाना
  20. नंदगाँव
  21. जावट
  22. कोकिलावन
  23. कोसी
  24. शेरगढ़
  25. चीर घाट
  26. नौहझील
  27. श्री भद्रवन
  28. भांडीरवन
  29. बेलवन
  30. राया वन
  31. गोपाल कुण्ड
  32. कबीर कुण्ड
  33. भोयी कुण्ड
  34. ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर
  35. दाऊजी
  36. महावन
  37. ब्रह्मांड घाट
  38. चिंताहरण महादेव
  39. गोकुल
  40. लोहवन
  41. वृन्दावन के मार्ग में तमाम पौराणिक स्थल हैं।

दर्शनीय स्थल

ब्रज चौरासी कोस यात्रा में दर्शनीय स्थलों की भरमार है। पुराणों के अनुसार उनकी उपस्थिति अब कहीं-कहीं रह गयी है। प्राचीन उल्लेख के अनुसार यात्रा मार्ग में

  • 12 वन
  • 24 उपवन
  • चार कुंज
  • चार निकुंज
  • चार वनखंडी
  • चार ओखर
  • चार पोखर
  • 365 कुण्ड
  • चार सरोवर
  • दस कूप
  • चार बावरी
  • चार तट
  • चार वट वृक्ष
  • पांच पहाड़
  • चार झूला
  • 33 स्थल रासलीला के तो हैं हीं, इनके अलावा कृष्ण कालीन अन्य स्थल भी हैं। चौरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा में ही नहीं, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फ़रीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है, लेकिन इसका अस्सी फ़ीसदी हिस्सा मथुरा में है।

36 नियमों का नित्य पालन

ब्रज यात्रा के अपने नियम हैं। इसमें शामिल होने वालों को प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है। इनमें प्रमुख हैं- धरती पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, कथा-संकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है।



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