राजकुमारी (गायिका): Difference between revisions

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==परिचय==
==परिचय==
गुजरे जमाने की गायिका राजकुमारी का जन्म [[1924]] में [[गुजरात]] में हुआ था। कहते हैं कि सपूत के पांव पलने में दिखने लगते हैं। कुछ ऐसी ही सख्शियत गायिका राजकुमारी की भी थी। उन्होंने महज 14 वर्ष की उम्र में ही अपना पहला गाना एचएमवी में रिकॉर्ड कराया था। गाने के बोल थे- "सुन बैरी बलमा कछू सच बोल न।' यह अलग बात थी कि राजकुमारी ने किसी संस्था से [[संगीत]] की कोई शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन ईश्वर ने जो उन्हें कंठ बख्शा था, वह कम नहीं था। इसके बाद तो उन्होंने विभिन्न मंचों पर अपनी गायिकी का सफर जारी रखा।<ref name="a">{{cite web |url=http://www.jagran.com/bihar/madhepura-9022413.html |title=गायिका 'राजकुमारी' की पुण्यतिथि पर विशेष |accessmonthday=06 जुलाई |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=jagran.com |language=हिन्दी }}</ref>
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तीस के दशक में मूलत: अभिनेत्रियाँ अपने गीत खुद गाती थीं। इस सूरत को बदलने में राजकुमारी का नि:सन्देह बड़ा हाथ रहा। उनके गीतों की माँग के चलते कई संगीतकारों ने उनकी आवाज़ का इस्तेमाल किया और आने वाले समय में वे पार्शवगायन का एक चमकता हुआ सितारा बन गईं। उन्होंने सभी तरह के गीत गाए। स्टेज, महफिल, मुजरे, हास्य, रोमानी से लेकर दर्द भरे गीत उन्होंने गाए। तीस के दशक में जहाँ एक ओर उन्होंने क्लासिकल तर्ज के गीत संगीतकारों की मर्ज़ी के अनुसार गाए, वहीं दूसरी ओर मस्ती भरे गीत भी गाए। चालीस के दशक में बगावत का आलम था, जिसका असर ज़ाहिर है फिल्म संगीत पर भी पड़ा। पहले जहाँ धीमी गति के गीत प्रचलित थे, वहीं तेज़ लय और ताल के गीत आने लगे।
गायिका राजकुमारी बहुत ही भावुक गायिका थीं, जो जल्द ही गीत की तह को पकड़ लेती थीं और संगीतकार के मुताबिक गा सकती थीं। मुश्किल धुन वे बहुत जल्दी सीख लेती थीं। किस शब्द पर कितना दबाव डालना है, कब साँस लेनी है और कब नहीं जैसे सूक्ष्म तथ्य उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से तीस के दशक में ही सीख लिए थे। गौरतलब है कि फिल्मों में गज़ल गाने का प्रचलन भी उन्हीं की आवाज़ के कारण आया। मुश्किल गाने जैसे 'सईयाँ तू एक वेरी आजा' भी वे बहुत सरलता से गा लेती थीं। इसी तरह के कई नए प्रयोग संगीतकार कर पाए, क्योंकि उनके जैसी गायिका संगीतकारों के पास थीं। उनके गाने यदि कोई गाने की कोशिश करें तो स्वत: ही ज्ञात हो जाता है कि वे कितनी बड़ी कलाकार थीं। कई भाषाओं में गाने वाली वे शायद पहली गायिका थीं। [[हिन्दी]] के अलावा उन्होंने [[गुजराती भाषा|गुजराती]] एवं [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] में भी पार्शवगायन अपने कॅरियर के पहले पाँच-छह साल में ही गा लिया था। बाद में तो ये ट्रेन्ड बन गया, जिसे उन्होंने ही सेट किया था।<ref name="b">{{cite web |url=http://www.anmolfankaar.com/specials/ek-fankaar/277-rajkumari-hindi.html |title=गायिकाओं की रानी : राजकुमारी |accessmonthday=08 जुलाई |accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=anmolfankaar.com |language=हिन्दी }}</ref>
==फ़िल्मों के लिये गायन==
==फ़िल्मों के लिये गायन==
कहते हैं कि एक बार राजकुमारी सार्वजनिक मंच पर गाना गा रही थीं। वहीं उनकी मुलाकात फ़िल्म निर्माता प्रकाश भट्ट से हो गई। उन्होंने राजकुमारी को 'प्रकाश पिक्चर' से जुड़ने का न्यौता दे दिया। इस बैनर के तहत बनने वाली [[गुजराती भाषा|गुजराती]] फ़िल्म 'संसार लीला' में कई गाने पेश किए। इस फ़िल्म को [[हिन्दी]] में भी 'संसार' नाम से फ़िल्माया गया। इसमें राजकुमारी जी ने गीत पेश किया 'आंख गुलाबी जैसे मद की प्यालियां, जागी हुई आंखों में है शरम की लालियां।' इसके बाद तो उनकी प्रतिभा बॉलीवुड में सिर चढ़कर बोलने लगी।
कहते हैं कि एक बार राजकुमारी सार्वजनिक मंच पर गाना गा रही थीं। वहीं उनकी मुलाकात फ़िल्म निर्माता प्रकाश भट्ट से हो गई। उन्होंने राजकुमारी को 'प्रकाश पिक्चर' से जुड़ने का न्यौता दे दिया। इस बैनर के तहत बनने वाली [[गुजराती भाषा|गुजराती]] फ़िल्म 'संसार लीला' में कई गाने पेश किए। इस फ़िल्म को [[हिन्दी]] में भी 'संसार' नाम से फ़िल्माया गया। इसमें राजकुमारी जी ने गीत पेश किया 'आंख गुलाबी जैसे मद की प्यालियां, जागी हुई आंखों में है शरम की लालियां।' इसके बाद तो उनकी प्रतिभा बॉलीवुड में सिर चढ़कर बोलने लगी।


वर्ष [[1933]] में फ़िल्म 'आंख का तारा', 'भक्त और भगवान', [[1934]] में 'लाल चिट्ठी', 'मुंबई की रानी' और 'शमशरे अलम' में गीत पेश कर राजकुमारी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। इस दौरान उनके कई कालजयी गीतों ने लोगों को गुनगुनाने के लिए बाध्य कर दिया। जैसे 'चले जइयो बेदर्दा मैं रो पडूंगी, 'काली काली रतिया कैसे बिताऊं, बिरहा के सपने देख डर जाऊं।' इसके बाद 'नजरिया की मारी-मरी मोरी दइया' ने तो उन्हें बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इसी दौरान उन्होंने [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] में भी कई गीत पेश किए। इतना ही नहीं, उन्होंने मशहूर गायक [[मुकेश]] के साथ भी गीत गाए। 'मुझे सच सच बता दो कब मेरे दिल में समाए थे, जब तुम पहली बार देखकर मुस्कराए थे'। इसी दौरान [[वाराणसी]] निवासी बी.के. दुबे से राजकुमारी ने [[विवाह|शादी]] कर ली।<ref name="a"/>
वर्ष [[1933]] में फ़िल्म 'आंख का तारा', 'भक्त और भगवान', [[1934]] में 'लाल चिट्ठी', 'मुंबई की रानी' और 'शमशरे अलम' में गीत पेश कर राजकुमारी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। इस दौरान उनके कई कालजयी गीतों ने लोगों को गुनगुनाने के लिए बाध्य कर दिया। जैसे 'चले जइयो बेदर्दा मैं रो पडूंगी, 'काली काली रतिया कैसे बिताऊं, बिरहा के सपने देख डर जाऊं।' इसके बाद 'नजरिया की मारी-मरी मोरी दइया' ने तो उन्हें बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इसी दौरान उन्होंने [[पंजाबी भाषा|पंजाबी]] और [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] में भी कई गीत पेश किए। इतना ही नहीं, उन्होंने मशहूर गायक [[मुकेश]] के साथ भी गीत गाए। 'मुझे सच सच बता दो कब मेरे दिल में समाए थे, जब तुम पहली बार देखकर मुस्कराए थे'। इसी दौरान [[वाराणसी]] निवासी बी.के. दुबे से राजकुमारी ने [[विवाह|शादी]] कर ली।<ref name="a"/>
उस समय की शीर्ष गायिकाएँ मुख्यत: [[पंजाब]], [[बंगाल]] एवं [[महाराष्ट्र]] मूल की थीं। इन सबसे अलग राजकुमारी [[उत्तर प्रदेश]] के [[बनारस]] से आईं थीं और अपने साथ उसके पान की मिठास अपने कंठ में संग लाईं थीं। उन्हें तीस के आखिरी भाग में राजकुमारी 'बनारस वाली' या राजकुमारी 'बनारस' के नाम से भी जाना जाता था। कुछ साल ऐसे पृथक तरीके से बुलाने का कारण था कि उस समय एक अन्य गायिका भी थीं- राजकुमारी 'कलकत्ते वाली' जो ज़ाहिर है [[कोलकाता|कलकत्ते]] से थीं और उनका असली नाम पुलोबाई था। फिल्म 'गोरख आया' ([[1938]]) में जैसे दोनों ने ही गीत गाए थे। उसका एक रेकॉर्ड तो ऐसा भी था, जिसमें दोनों के गीत थे।
==अभिनय==
अधिकतर सुनने वालों को याद नहीं होगा कि पार्शवगायन से पहले राजकुमारी अभिनय से भी जुड़ी हुईं थीं। वे जब तीस के दशक में [[बम्बई]] आईं तो वे एक ग्रामोफोन कम्पनी में आईं। वहाँ उन्होंने उस समय रेकॉर्डों में गाने भी गाए और कुछ ड्रामों में भी बोला जो आज उपलब्द्ध नहीं हैं। उन्हें [[नाटक]] में काम करने का शौक हुआ और वे स्टेज पर आ गईं। वह अच्छा गा लेती थीं, इसलिए उन्हें बुलाया गया कि आप रोल भी कीजिए और गाने भी गाईए। इस तरह से उन्होंने पहली बार अभिनय किया। अभिनय एवं गायन के लिए वह मश्हूर होने लगीं। एक बार 'प्रकाश पिक्चर्स' के विजय भट्ट उनका नाटक देखने आए। उन्हें राजकुमारी का अभिनय एवं गायन बहुत पसंद आया। उनका स्टूडियो तब एक नई फिल्म की तैयारी कर रहा था और उसमें काम करने के लिए उन्होंने राजकुमारी को न्यौता दिया। उस ज़माने में स्टेज के ऊपर माईक नहीं होता था। याद से हर डायलौग ज़ोर-ज़ोर से चीख-चीख कर बोलना पड़ता था और गाने भी इसी प्रकार से चिल्ला-चिल्ला कर गाने पड़ते थे। उनकी अदायगी के चाहने वालों के चलते कई बार 'वन्स मोर' की गुहार भी हो जाती और कभी-कभी उन्हें एक गीत 8-9 बार गाना पड़ता था। उनके शुभचिन्तकों ने उन्हें बोला अपनी आवाज़ स्टेज पर खराब करना छोड़ो और भट्ट साहब का निवेदन स्वीकार कर लो। फिल्मों का उन्हें शौक भी था और यह सब सोचकर उन्होंने हाँ कर दी। कई लोग नहीं जानते होंगे कि राजकुमारी [[1932]] में कमला मूवीटोन, [[लाहौर]] की फिल्म 'राधेश्याम' में बालिका का किरदार पहले ही निभा चुकी थीं। हीरोइन बनने के लिए राजकुमारी अब तैयार थीं।
यह प्रस्तावित फिल्म 'प्रकाश पिक्चर्स' [[हिन्दी]] एवं [[गुजराती भाषा|गुजराती]] दोनों में बना रहा था और वर्ष था [[1934]]। गुजराती संस्करण का नाम था 'संसारलीला'। हिन्दी संस्करण को 'नई दुनिया' नाम दिया गया था, जिसका एक नाम 'Sacred Scandal' भी था। नायिका मालती का किरदार राजकुमारी ने ही निभाया। इस फिल्म में प्रकाश की अभिनेत्री गुलाब के अलावा मुख्य भूमिका में काशीनाथ एवं ऊमाकान्त देसाई थे। इस फिल्म के संगीतकार ने खुद इस फिल्म में अभिनय भी किया था और वे उस समय की चर्चित हस्ती थे। ये संगीतकार थे लल्लूभाई नायक, जिनके साथ ही राजकुमारी को अपने प्रारम्भिक दौर में अधिकांश गीत गाने थे। 'नई दुनिया' में अपने ऊपर फिल्माए ‘प्रीत की रीत सिखा जा बलम’ और ‘प्रीतम तुम घन बन जाओ’ जैसे गीत राजकुमारी ने गाए थे। लल्लूभाई नायक प्रकाश के मूख्य संगीतकार थे।<ref>हालांकि बाद में उनकी जगह शंकरराव व्यास और फिर [[नौशाद]] ने ले ली थी। सालों बाद वे गुमनाम हो गए और फिल्म 'पटरानी' में [[शंकर-जयकिशन]] की सहायता के लिए बुलाए गए थे।</ref> अभिनेता जयन्त भी उस समय [[प्रभात फ़िल्म कम्पनी|प्रभात]] में थे, जिनके साथ राजकुमारी ने अभिनय किया और संगीतकार तो लल्लूभाई ही थे। ये फिल्में थीं- [[1935]] में आई 'बम्बई की सेठानी', 'बाम्बे मेल', 'लाल चिट्ठी', 'शमशीर-ए-अरब' और [[1936]] की 'स्नेहलता'।<ref name="b"/>
==कॅरियर==
'बम्बई की सेठानी' में अभिनय के साथ ही राजकुमारी ने “हमसे क्यों रूठ गये बंसी बजाने वाले” गीत भी गाया था। फिल्म 'बाम्बे मेल' के गीत उस ज़माने में बेहद मुकम्मल साबित हुए। गीत “किसकी आमद का यूँ इन्तज़ार है” राजकुमारी ने स्वयं लल्लूभाई एवं इस्माइल के साथ बहुर खूबसूरती के साथ गाया। इस गीत में आरकेस्ट्रा न के बराबर है, पर उनकी आवाज़ की मिठास सुनने वाले का ध्यान खींचती है। इसी फिल्म में धीमी गति की एक [[गज़ल]] “बातों बातों में दिल-ए-बेज़ार” उन्होंने अपनी मीठी तानों संग गाया था। फिल्म का “कागा रे जइयो पिया की गलियन” तो बहुत ही लोकप्रिय हुआ था। [[1936]] उनके लिए बहुत सफल साबित रहा। कुछ लोग गलत समझते हैं कि इस साल की लोकप्रिय फिल्म '[[देवदास (1936)|देवदास]]' में भी अभिनेत्री थीं, पर चन्द्रमुखी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री भिन्न हैं।
'लाल चिट्ठी' में उन्होंने “कुदरत है रब की न्यारी” जैसे गीत गाए। स्नेहलता में भी राजकुमारी ने कई गीत गाए। यह फिल्म गुजराती में भी बनी थी और इसे 'भारत की देवी' नाम से भी जाना जाता है। इसमें गाए कुछ उनके गीत हैं “हे धन्य तू भारत नारी”, “सम्भल कर रख कदम, काँटे बिछे हैं प्रेम के बन में”, “तुम हो किसी के घर के उजाले” और “मूरख़ मन भरमाने”। प्रकाश में राजकुमारी को भरपूर ट्रेनिंग मिली गायन में जो उनको सालों तक लोकप्रिय बनाती रही। 'पासिंग शो' (1936) में राजकुमारी का गीत “शरद मयंक ना तब मुख सम है, देखा बार बार बार” भी एक मधुर गीत था, जो उनके उस दौर के कई गीतों कि तरह नहीं मिलता। 'ख्वाब की दुनिया' (1937) में भी उन्होंने “कली कली पर है भ्रमर” और “आओ आओ प्राण प्यारे, संसार एक नया बसाएँ” जैसे गीत भी गाए। इस दौर में वे प्रकाश के बाहर भी अवसर पाने लगीं। फिल्म 'परख' (1937), 'छोटे सरकार' (1938), 'जंगल का जवान' (1938), 'तूफान एक्सप्रेस' (1937), 'विजय मार्ग' (1938) 'सेक्रेटरी' (1938) एवं 'गोरख आया' (1938) में भी उन्होंने अभिनय किया और गीत गाए। यह खेद का विषय है कि आज उनमें से एक भी फिल्म उपलब्द्ध नहीं है और हम उनके अभिनय का लुत्फ उठाने में असमर्थ हैं।<ref name="b"/>
==अंतिम समय==
==अंतिम समय==
[[1952]] में उन्होंने [[ओ. पी. नैयर]] के साथ भी कई गीत गाए। यह अलग बात है कि उनका नाम भले ही राजकुमारी था, लेकिन उनका अंत मुफलिसी में हुआ। इस दौरान उन्होंने गायिका और अभिनेत्री के रूप में जो काम बॉलीवुड में किया, वह शायद ही कभी भुला लोग पाएँ।
[[1952]] में उन्होंने [[ओ. पी. नैयर]] के साथ भी कई गीत गाए। यह अलग बात है कि उनका नाम भले ही राजकुमारी था, लेकिन उनका अंत मुफलिसी में हुआ। इस दौरान उन्होंने गायिका और अभिनेत्री के रूप में जो काम बॉलीवुड में किया, वह शायद ही कभी भुला लोग पाएँ।

Revision as of 12:01, 8 July 2017

राजकुमारी (जन्म- 1924, गुजरात) हिन्दी सिनेमा की जानीमानी गायिका थीं। उनका नाम भले ही नई पीढ़ी के लिए विस्मृत हो चुका हो, लेकिन पुराने संगीत के चाहने वालों में उनका नाम आज भी उसी अदब के साथ लिया जाता है, जैसे उनके कार्यकाल में लिया जाता था। उनकी आवाज़ में एक अनोखी मिठास थी, जो भुलाए नहीं भूलती। वे अपने ज़माने की अग्रणी और बेहद प्रतिभाशाली गायिका रहीं। उनके गाए गानों ने बीस से भी अधिक वर्षों तक श्रोताओं का दिल लुभाया। गायिका राजकुमारी ने बेशुमार अभिनेत्रियों को आवाज़ प्रदान की। उन्होंने अनगिनत संगीतकारों, गीतकारों एवं रंगमंच के कलाकारों को सफलताएँ देने में अहम भूमिका निभाई थी।

परिचय

गुजरे जमाने की गायिका राजकुमारी का जन्म 1924 में गुजरात में हुआ था। कहते हैं कि सपूत के पांव पलने में दिखने लगते हैं। कुछ ऐसी ही सख्शियत गायिका राजकुमारी की भी थी। उन्होंने महज 14 वर्ष की उम्र में ही अपना पहला गाना एचएमवी में रिकॉर्ड कराया था। गाने के बोल थे- "सुन बैरी बलमा कछू सच बोल न।' यह अलग बात थी कि राजकुमारी ने किसी संस्था से संगीत की कोई शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन ईश्वर ने जो उन्हें कंठ बख्शा था, वह कम नहीं था। इसके बाद तो उन्होंने विभिन्न मंचों पर अपनी गायिकी का सफर जारी रखा।[1]

तीस के दशक में मूलत: अभिनेत्रियाँ अपने गीत खुद गाती थीं। इस सूरत को बदलने में राजकुमारी का नि:सन्देह बड़ा हाथ रहा। उनके गीतों की माँग के चलते कई संगीतकारों ने उनकी आवाज़ का इस्तेमाल किया और आने वाले समय में वे पार्शवगायन का एक चमकता हुआ सितारा बन गईं। उन्होंने सभी तरह के गीत गाए। स्टेज, महफिल, मुजरे, हास्य, रोमानी से लेकर दर्द भरे गीत उन्होंने गाए। तीस के दशक में जहाँ एक ओर उन्होंने क्लासिकल तर्ज के गीत संगीतकारों की मर्ज़ी के अनुसार गाए, वहीं दूसरी ओर मस्ती भरे गीत भी गाए। चालीस के दशक में बगावत का आलम था, जिसका असर ज़ाहिर है फिल्म संगीत पर भी पड़ा। पहले जहाँ धीमी गति के गीत प्रचलित थे, वहीं तेज़ लय और ताल के गीत आने लगे।

गायिका राजकुमारी बहुत ही भावुक गायिका थीं, जो जल्द ही गीत की तह को पकड़ लेती थीं और संगीतकार के मुताबिक गा सकती थीं। मुश्किल धुन वे बहुत जल्दी सीख लेती थीं। किस शब्द पर कितना दबाव डालना है, कब साँस लेनी है और कब नहीं जैसे सूक्ष्म तथ्य उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से तीस के दशक में ही सीख लिए थे। गौरतलब है कि फिल्मों में गज़ल गाने का प्रचलन भी उन्हीं की आवाज़ के कारण आया। मुश्किल गाने जैसे 'सईयाँ तू एक वेरी आजा' भी वे बहुत सरलता से गा लेती थीं। इसी तरह के कई नए प्रयोग संगीतकार कर पाए, क्योंकि उनके जैसी गायिका संगीतकारों के पास थीं। उनके गाने यदि कोई गाने की कोशिश करें तो स्वत: ही ज्ञात हो जाता है कि वे कितनी बड़ी कलाकार थीं। कई भाषाओं में गाने वाली वे शायद पहली गायिका थीं। हिन्दी के अलावा उन्होंने गुजराती एवं पंजाबी में भी पार्शवगायन अपने कॅरियर के पहले पाँच-छह साल में ही गा लिया था। बाद में तो ये ट्रेन्ड बन गया, जिसे उन्होंने ही सेट किया था।[2]

फ़िल्मों के लिये गायन

कहते हैं कि एक बार राजकुमारी सार्वजनिक मंच पर गाना गा रही थीं। वहीं उनकी मुलाकात फ़िल्म निर्माता प्रकाश भट्ट से हो गई। उन्होंने राजकुमारी को 'प्रकाश पिक्चर' से जुड़ने का न्यौता दे दिया। इस बैनर के तहत बनने वाली गुजराती फ़िल्म 'संसार लीला' में कई गाने पेश किए। इस फ़िल्म को हिन्दी में भी 'संसार' नाम से फ़िल्माया गया। इसमें राजकुमारी जी ने गीत पेश किया 'आंख गुलाबी जैसे मद की प्यालियां, जागी हुई आंखों में है शरम की लालियां।' इसके बाद तो उनकी प्रतिभा बॉलीवुड में सिर चढ़कर बोलने लगी।

वर्ष 1933 में फ़िल्म 'आंख का तारा', 'भक्त और भगवान', 1934 में 'लाल चिट्ठी', 'मुंबई की रानी' और 'शमशरे अलम' में गीत पेश कर राजकुमारी ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। इस दौरान उनके कई कालजयी गीतों ने लोगों को गुनगुनाने के लिए बाध्य कर दिया। जैसे 'चले जइयो बेदर्दा मैं रो पडूंगी, 'काली काली रतिया कैसे बिताऊं, बिरहा के सपने देख डर जाऊं।' इसके बाद 'नजरिया की मारी-मरी मोरी दइया' ने तो उन्हें बुलंदियों पर पहुंचा दिया। इसी दौरान उन्होंने पंजाबी और बांग्ला में भी कई गीत पेश किए। इतना ही नहीं, उन्होंने मशहूर गायक मुकेश के साथ भी गीत गाए। 'मुझे सच सच बता दो कब मेरे दिल में समाए थे, जब तुम पहली बार देखकर मुस्कराए थे'। इसी दौरान वाराणसी निवासी बी.के. दुबे से राजकुमारी ने शादी कर ली।[1]

उस समय की शीर्ष गायिकाएँ मुख्यत: पंजाब, बंगाल एवं महाराष्ट्र मूल की थीं। इन सबसे अलग राजकुमारी उत्तर प्रदेश के बनारस से आईं थीं और अपने साथ उसके पान की मिठास अपने कंठ में संग लाईं थीं। उन्हें तीस के आखिरी भाग में राजकुमारी 'बनारस वाली' या राजकुमारी 'बनारस' के नाम से भी जाना जाता था। कुछ साल ऐसे पृथक तरीके से बुलाने का कारण था कि उस समय एक अन्य गायिका भी थीं- राजकुमारी 'कलकत्ते वाली' जो ज़ाहिर है कलकत्ते से थीं और उनका असली नाम पुलोबाई था। फिल्म 'गोरख आया' (1938) में जैसे दोनों ने ही गीत गाए थे। उसका एक रेकॉर्ड तो ऐसा भी था, जिसमें दोनों के गीत थे।

अभिनय

अधिकतर सुनने वालों को याद नहीं होगा कि पार्शवगायन से पहले राजकुमारी अभिनय से भी जुड़ी हुईं थीं। वे जब तीस के दशक में बम्बई आईं तो वे एक ग्रामोफोन कम्पनी में आईं। वहाँ उन्होंने उस समय रेकॉर्डों में गाने भी गाए और कुछ ड्रामों में भी बोला जो आज उपलब्द्ध नहीं हैं। उन्हें नाटक में काम करने का शौक हुआ और वे स्टेज पर आ गईं। वह अच्छा गा लेती थीं, इसलिए उन्हें बुलाया गया कि आप रोल भी कीजिए और गाने भी गाईए। इस तरह से उन्होंने पहली बार अभिनय किया। अभिनय एवं गायन के लिए वह मश्हूर होने लगीं। एक बार 'प्रकाश पिक्चर्स' के विजय भट्ट उनका नाटक देखने आए। उन्हें राजकुमारी का अभिनय एवं गायन बहुत पसंद आया। उनका स्टूडियो तब एक नई फिल्म की तैयारी कर रहा था और उसमें काम करने के लिए उन्होंने राजकुमारी को न्यौता दिया। उस ज़माने में स्टेज के ऊपर माईक नहीं होता था। याद से हर डायलौग ज़ोर-ज़ोर से चीख-चीख कर बोलना पड़ता था और गाने भी इसी प्रकार से चिल्ला-चिल्ला कर गाने पड़ते थे। उनकी अदायगी के चाहने वालों के चलते कई बार 'वन्स मोर' की गुहार भी हो जाती और कभी-कभी उन्हें एक गीत 8-9 बार गाना पड़ता था। उनके शुभचिन्तकों ने उन्हें बोला अपनी आवाज़ स्टेज पर खराब करना छोड़ो और भट्ट साहब का निवेदन स्वीकार कर लो। फिल्मों का उन्हें शौक भी था और यह सब सोचकर उन्होंने हाँ कर दी। कई लोग नहीं जानते होंगे कि राजकुमारी 1932 में कमला मूवीटोन, लाहौर की फिल्म 'राधेश्याम' में बालिका का किरदार पहले ही निभा चुकी थीं। हीरोइन बनने के लिए राजकुमारी अब तैयार थीं।

यह प्रस्तावित फिल्म 'प्रकाश पिक्चर्स' हिन्दी एवं गुजराती दोनों में बना रहा था और वर्ष था 1934। गुजराती संस्करण का नाम था 'संसारलीला'। हिन्दी संस्करण को 'नई दुनिया' नाम दिया गया था, जिसका एक नाम 'Sacred Scandal' भी था। नायिका मालती का किरदार राजकुमारी ने ही निभाया। इस फिल्म में प्रकाश की अभिनेत्री गुलाब के अलावा मुख्य भूमिका में काशीनाथ एवं ऊमाकान्त देसाई थे। इस फिल्म के संगीतकार ने खुद इस फिल्म में अभिनय भी किया था और वे उस समय की चर्चित हस्ती थे। ये संगीतकार थे लल्लूभाई नायक, जिनके साथ ही राजकुमारी को अपने प्रारम्भिक दौर में अधिकांश गीत गाने थे। 'नई दुनिया' में अपने ऊपर फिल्माए ‘प्रीत की रीत सिखा जा बलम’ और ‘प्रीतम तुम घन बन जाओ’ जैसे गीत राजकुमारी ने गाए थे। लल्लूभाई नायक प्रकाश के मूख्य संगीतकार थे।[3] अभिनेता जयन्त भी उस समय प्रभात में थे, जिनके साथ राजकुमारी ने अभिनय किया और संगीतकार तो लल्लूभाई ही थे। ये फिल्में थीं- 1935 में आई 'बम्बई की सेठानी', 'बाम्बे मेल', 'लाल चिट्ठी', 'शमशीर-ए-अरब' और 1936 की 'स्नेहलता'।[2]

कॅरियर

'बम्बई की सेठानी' में अभिनय के साथ ही राजकुमारी ने “हमसे क्यों रूठ गये बंसी बजाने वाले” गीत भी गाया था। फिल्म 'बाम्बे मेल' के गीत उस ज़माने में बेहद मुकम्मल साबित हुए। गीत “किसकी आमद का यूँ इन्तज़ार है” राजकुमारी ने स्वयं लल्लूभाई एवं इस्माइल के साथ बहुर खूबसूरती के साथ गाया। इस गीत में आरकेस्ट्रा न के बराबर है, पर उनकी आवाज़ की मिठास सुनने वाले का ध्यान खींचती है। इसी फिल्म में धीमी गति की एक गज़ल “बातों बातों में दिल-ए-बेज़ार” उन्होंने अपनी मीठी तानों संग गाया था। फिल्म का “कागा रे जइयो पिया की गलियन” तो बहुत ही लोकप्रिय हुआ था। 1936 उनके लिए बहुत सफल साबित रहा। कुछ लोग गलत समझते हैं कि इस साल की लोकप्रिय फिल्म 'देवदास' में भी अभिनेत्री थीं, पर चन्द्रमुखी की भूमिका निभाने वाली अभिनेत्री भिन्न हैं।

'लाल चिट्ठी' में उन्होंने “कुदरत है रब की न्यारी” जैसे गीत गाए। स्नेहलता में भी राजकुमारी ने कई गीत गाए। यह फिल्म गुजराती में भी बनी थी और इसे 'भारत की देवी' नाम से भी जाना जाता है। इसमें गाए कुछ उनके गीत हैं “हे धन्य तू भारत नारी”, “सम्भल कर रख कदम, काँटे बिछे हैं प्रेम के बन में”, “तुम हो किसी के घर के उजाले” और “मूरख़ मन भरमाने”। प्रकाश में राजकुमारी को भरपूर ट्रेनिंग मिली गायन में जो उनको सालों तक लोकप्रिय बनाती रही। 'पासिंग शो' (1936) में राजकुमारी का गीत “शरद मयंक ना तब मुख सम है, देखा बार बार बार” भी एक मधुर गीत था, जो उनके उस दौर के कई गीतों कि तरह नहीं मिलता। 'ख्वाब की दुनिया' (1937) में भी उन्होंने “कली कली पर है भ्रमर” और “आओ आओ प्राण प्यारे, संसार एक नया बसाएँ” जैसे गीत भी गाए। इस दौर में वे प्रकाश के बाहर भी अवसर पाने लगीं। फिल्म 'परख' (1937), 'छोटे सरकार' (1938), 'जंगल का जवान' (1938), 'तूफान एक्सप्रेस' (1937), 'विजय मार्ग' (1938) 'सेक्रेटरी' (1938) एवं 'गोरख आया' (1938) में भी उन्होंने अभिनय किया और गीत गाए। यह खेद का विषय है कि आज उनमें से एक भी फिल्म उपलब्द्ध नहीं है और हम उनके अभिनय का लुत्फ उठाने में असमर्थ हैं।[2]

अंतिम समय

1952 में उन्होंने ओ. पी. नैयर के साथ भी कई गीत गाए। यह अलग बात है कि उनका नाम भले ही राजकुमारी था, लेकिन उनका अंत मुफलिसी में हुआ। इस दौरान उन्होंने गायिका और अभिनेत्री के रूप में जो काम बॉलीवुड में किया, वह शायद ही कभी भुला लोग पाएँ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 गायिका 'राजकुमारी' की पुण्यतिथि पर विशेष (हिन्दी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 06 जुलाई, 2017।
  2. 2.0 2.1 2.2 गायिकाओं की रानी : राजकुमारी (हिन्दी) anmolfankaar.com। अभिगमन तिथि: 08 जुलाई, 2017।
  3. हालांकि बाद में उनकी जगह शंकरराव व्यास और फिर नौशाद ने ले ली थी। सालों बाद वे गुमनाम हो गए और फिल्म 'पटरानी' में शंकर-जयकिशन की सहायता के लिए बुलाए गए थे।

बाहरी कड़ियाँ

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