समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम -आदित्य चौधरी: Difference between revisions
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जेलों में विचाराधीन क़ैदियों की स्थिति में अक्सर होता है कि अमीरों, नेताओं और सॅलिब्रिटी ग़ुंडों को जेलों में फ़ाइव स्टार जैसी सुविधाएँ मुहैया कराई जाती हैं। क्या समस्या है यदि जेलों में कुछ हिस्सा इस तरह की सुविधाओं से भरपूर हो इसका किराया इन हाइ-फ़ाइ अपराधियों से वसूला जाय। साथ ही शारीरिक परिश्रम में कोई ढील न बरती जाय। ऐसी फ़ाइव स्टार जेलों में रहने पर सज़ा की अवधि भी साधारण जेल से कम से कम दो गुनी या तीन गुनी हो। | जेलों में विचाराधीन क़ैदियों की स्थिति में अक्सर होता है कि अमीरों, नेताओं और सॅलिब्रिटी ग़ुंडों को जेलों में फ़ाइव स्टार जैसी सुविधाएँ मुहैया कराई जाती हैं। क्या समस्या है यदि जेलों में कुछ हिस्सा इस तरह की सुविधाओं से भरपूर हो इसका किराया इन हाइ-फ़ाइ अपराधियों से वसूला जाय। साथ ही शारीरिक परिश्रम में कोई ढील न बरती जाय। ऐसी फ़ाइव स्टार जेलों में रहने पर सज़ा की अवधि भी साधारण जेल से कम से कम दो गुनी या तीन गुनी हो। | ||
लाखों लोग दलालों (परिष्कृत भाषा में लाइज़न) की मदद से ही अपना काम करवाते हैं। दलाली, रिश्वत, कमीशन, सुविधाशुल्क आदि न जाने कितने नाम दिए गए हैं दलाली को। दलाली को भी यदि सरकारी मान्यता प्राप्त व्यवसाय का दर्जा दिया जाय तो काफ़ी हद तक बात बन सकती है। यह ठीक वैसे ही होगा जैसे कोई मुवक्किल एक वकील चुनता है जो अदालत में उसका मुक़दमा लड़ सके। जब भ्रष्टाचार होना ही है और रोका नहीं जा सकता तो फिर सरकार को इससे निपटने के लिए विचित्र उपाय ही करने चाहिए। एक विचित्र उपाय का उदाहरण देखिए- | लाखों लोग दलालों (परिष्कृत भाषा में लाइज़न) की मदद से ही अपना काम करवाते हैं। दलाली, रिश्वत, कमीशन, सुविधाशुल्क आदि न जाने कितने नाम दिए गए हैं दलाली को। दलाली को भी यदि सरकारी मान्यता प्राप्त व्यवसाय का दर्जा दिया जाय तो काफ़ी हद तक बात बन सकती है। यह ठीक वैसे ही होगा जैसे कोई मुवक्किल एक वकील चुनता है जो अदालत में उसका मुक़दमा लड़ सके। जब भ्रष्टाचार होना ही है और रोका नहीं जा सकता तो फिर सरकार को इससे निपटने के लिए विचित्र उपाय ही करने चाहिए। एक विचित्र उपाय का उदाहरण देखिए- | ||
[[प्रताप सिंह कैरों]] पचास के दशक में पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। उनके शासन का उदाहरण आज भी दिया जाता है और | [[प्रताप सिंह कैरों]] पचास के दशक में पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। उनके शासन का उदाहरण आज भी दिया जाता है और महान् नेता [[सरदार पटेल|सरदार वल्लभ भाई पटेल]] से उनकी तुलना की जाती है। उस दौर में भी अनाज की कालाबाज़ारी ज़ोरों पर थी। देश नया-नया आज़ाद हुआ था। राज्य सरकारों के पास संसाधन कम थे। जमाख़ोरों और दलालों ने अनाज गोदामों में बंद किया हुआ था, मंहगाई आसमान को छूने लगी थी, जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी। किसी के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाना चाहिए। कैरों ने एक गंभीर जनहितकारी चाल चली... केन्द्र सरकार और रेल मंत्रालय की सहायता से कई मालगाड़ियाँ रेलवे स्टेशनों पर जा पहुँची जिनके डब्बे सील बंद थे और उनपर विभिन्न अनाजों के नाम लिखे हुए थे। शहरों में आग की तरह से ये ख़बर फैल गयी कि सरकार ने 'बाहर' से अनाज मंगवा लिया है। इतना सुनना था कि जमाख़ोरो ने अपना अनाज बाज़ार में आनन-फानन में बेचना शुरू कर दिया। मंहगाई तुरंत क़ाबू में आ गई। एक सप्ताह बाद मालगाड़ियाँ ज्यों की त्यों वापस लौट गईं क्योंकि वे ख़ाली थीं।... यदि सरकार ठान ले तो देश की तरक्की के लिए हज़ार-लाख तरीक़े निकाल सकती है लेकिन... जब भी कोई नई योजना या परिवर्तन की बात आती है तो कहा जाता है कि हमारे देश की आबादी बहुत अधिक है और इतनी बड़ी आबादी को संभालना कोई आसान काम नही है। | ||
बहुत वर्षों पहले मैंने यह कहा था कि भारत की बढ़ती आबादी की समस्या को ही यदि हम अभिशाप के स्थान पर वरदान के रूप में लेते तो व्यावसायिक रूप से देश बहुत आगे जा सकता है। हमको अपनी विशाल आबादी को अपनी कमज़ोरी की बजाय ताक़त समझ उसे उत्पादन में झोंक देना चाहिए। लेकिन यह हुआ नहीं हमारी आबादी उत्पादक न होकर विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गयी... जो हमारी समझ में नहीं आया वह चीन ने समझ लिया। चीन ने अपनी आबादी को ही अपना हथियार बनाया और उसे उत्पादन में लगा दिया। इसलिए बाज़ार में भारत एक ख़रीददार बन गया और चीन विक्रेता। | बहुत वर्षों पहले मैंने यह कहा था कि भारत की बढ़ती आबादी की समस्या को ही यदि हम अभिशाप के स्थान पर वरदान के रूप में लेते तो व्यावसायिक रूप से देश बहुत आगे जा सकता है। हमको अपनी विशाल आबादी को अपनी कमज़ोरी की बजाय ताक़त समझ उसे उत्पादन में झोंक देना चाहिए। लेकिन यह हुआ नहीं हमारी आबादी उत्पादक न होकर विश्व का सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गयी... जो हमारी समझ में नहीं आया वह चीन ने समझ लिया। चीन ने अपनी आबादी को ही अपना हथियार बनाया और उसे उत्पादन में लगा दिया। इसलिए बाज़ार में भारत एक ख़रीददार बन गया और चीन विक्रेता। | ||
Revision as of 11:23, 1 August 2017
50px|right|link=|
20px|link=http://www.facebook.com/bharatdiscovery|फ़ेसबुक पर भारतकोश (नई शुरुआत) भारतकोश समाज का ऑपरेटिंग सिस्टम -आदित्य चौधरी "यार! ये बंडा काका का तो लास्ट शो चल रहा है... ये तो टेंऽऽऽ बोलने वाला है... पक्का मरेगा अब तो पक्का... सीधी सी बात है कि इलाज का पैसा तो है नईं..."
आइए भारतकोश पर वापस चलें-
ज़रा सोचिए किसी मृत्यु कारित करने वाले संगेय अपराध के अपराधी को दिया जाने वाला दण्ड बार-बार बीसियों वर्षों तक परिभाषित किया जाता रहता है। कभी उसे फांसी सुनाई जाती है तो कभी आजीवन कारावास। कभी वह ज़मानत पर जेल से बाहर रहता है तो कभी जेल के अंदर...। किसी भी निचली अदालत के फ़ैसले का पुनर्मूल्यांकन ऊँची अदालतों द्वारा बिना अपील किए ही हो तो बार-बार फ़ैसला बदले जाने की संभावना नहीं होगी।
जेलों में विचाराधीन क़ैदियों की स्थिति में अक्सर होता है कि अमीरों, नेताओं और सॅलिब्रिटी ग़ुंडों को जेलों में फ़ाइव स्टार जैसी सुविधाएँ मुहैया कराई जाती हैं। क्या समस्या है यदि जेलों में कुछ हिस्सा इस तरह की सुविधाओं से भरपूर हो इसका किराया इन हाइ-फ़ाइ अपराधियों से वसूला जाय। साथ ही शारीरिक परिश्रम में कोई ढील न बरती जाय। ऐसी फ़ाइव स्टार जेलों में रहने पर सज़ा की अवधि भी साधारण जेल से कम से कम दो गुनी या तीन गुनी हो। |
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