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'''जिझिक''' [[बिहार]] का एक ऐतिहासिक ग्राम है। प्राचीन [[जैन]] ग्रंथों के अनुसार [[तीर्थंकर]] [[महावीर|वर्धमान महावीर]] को 'अन्तर्ज्ञान' अथवा 'कैवल्य' की प्राप्ति इसी स्थान पर हुई थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=366|url=}}</ref> | '''जिझिक''' [[बिहार]] का एक ऐतिहासिक ग्राम है। प्राचीन [[जैन]] ग्रंथों के अनुसार [[तीर्थंकर]] [[महावीर|वर्धमान महावीर]] को 'अन्तर्ज्ञान' अथवा 'कैवल्य' की प्राप्ति इसी स्थान पर हुई थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=366|url=}}</ref> | ||
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इस ग्राम की [[जैन धर्म]] में बहुत महत्ता है। 'आचारांगसूत्र' के वर्णन के अनुसार 'तेरहवें वर्ष में ग्रीष्म ऋतु के दूसरे [[मास]] के चौथे पक्ष में, [[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[दशमी]] के दिन, जबकि छाया पूर्व की ओर फिर गई थी और पहला जागरण समाप्त हो गया था | इस ग्राम की [[जैन धर्म]] में बहुत महत्ता है। 'आचारांगसूत्र' के वर्णन के अनुसार 'तेरहवें वर्ष में ग्रीष्म ऋतु के दूसरे [[मास]] के चौथे पक्ष में, [[वैशाख]] [[शुक्ल पक्ष|शुक्ल]] [[दशमी]] के दिन, जबकि छाया पूर्व की ओर फिर गई थी और पहला जागरण समाप्त हो गया था अर्थात् सुव्रत के दिन, विजय मुहूर्त में, ऋजुपालिका नदी के तट पर जिझकि ग्राम के बाहर, एक पुराने मंदिर के निकट, एक सामान्य गृहस्थ के खेत में शालवृक्ष के नीचे, जिस समय [[चन्द्रमा]] [[उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र]] में था, दोनों एड़ियों को मिला कर बैठे हुए, [[धूप]] में ढाई दिन तक निर्जल व्रत करके, गंभीर [[ध्यान]] में मग्न रहकर, उसने सर्वोच्च ज्ञान अर्थात् कैवल्य को प्राप्त किया, जो अपरिचित, प्रधान, अंकुरित, पूरा और सम्पूर्ण है।' इस प्रकार जिझिक की महत्ता [[जैन|जैनों]] के लिए वही है, जो [[बोधगया]] की [[बौद्ध|बौद्धों]] के लिए। यह ग्राम [[वैशाली]], [[मुजफ्फरपुर ज़िला]], [[बिहार]] के निकट स्थित था। | ||
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जिझिक बिहार का एक ऐतिहासिक ग्राम है। प्राचीन जैन ग्रंथों के अनुसार तीर्थंकर वर्धमान महावीर को 'अन्तर्ज्ञान' अथवा 'कैवल्य' की प्राप्ति इसी स्थान पर हुई थी।[1]
महत्ता
इस ग्राम की जैन धर्म में बहुत महत्ता है। 'आचारांगसूत्र' के वर्णन के अनुसार 'तेरहवें वर्ष में ग्रीष्म ऋतु के दूसरे मास के चौथे पक्ष में, वैशाख शुक्ल दशमी के दिन, जबकि छाया पूर्व की ओर फिर गई थी और पहला जागरण समाप्त हो गया था अर्थात् सुव्रत के दिन, विजय मुहूर्त में, ऋजुपालिका नदी के तट पर जिझकि ग्राम के बाहर, एक पुराने मंदिर के निकट, एक सामान्य गृहस्थ के खेत में शालवृक्ष के नीचे, जिस समय चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में था, दोनों एड़ियों को मिला कर बैठे हुए, धूप में ढाई दिन तक निर्जल व्रत करके, गंभीर ध्यान में मग्न रहकर, उसने सर्वोच्च ज्ञान अर्थात् कैवल्य को प्राप्त किया, जो अपरिचित, प्रधान, अंकुरित, पूरा और सम्पूर्ण है।' इस प्रकार जिझिक की महत्ता जैनों के लिए वही है, जो बोधगया की बौद्धों के लिए। यह ग्राम वैशाली, मुजफ्फरपुर ज़िला, बिहार के निकट स्थित था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 366 |