टी. के. माधवन: Difference between revisions

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==परिचय==
==परिचय==
टी. के. माधवन का जन्म मध्य त्रावनकोर (कार्थिकापल्ली, ज़िला अलापुझा, केरल) में [[1885]] ई. में हुआ था। उनके पिता केसवन चन्नर थे। उनकी औपचारिक शिक्षा अधिक नहीं हो पाई, पर अपने अध्यवसाय से उन्होंने [[मलयालम भाषा|मलयालम]] के साथ-साथ [[अंग्रेज़ी]] और [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। वह केरल के प्रसिद्ध समाज-सुधारक और हरिजन नेता थे। उनके ऊपर [[दादा भाई नौरोजी]], [[स्वामी विवेकानंद]], [[गाँधी जी]] आदि के विचारों का और ‘[[गीता|श्रीमद्भागवद्गीता]]’ का भी बहुत प्रभाव था।<ref name="s">{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=341|url=}}</ref>
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Latest revision as of 13:00, 28 March 2018

टी. के. माधवन
पूरा नाम टी. के. माधवन
जन्म 2 सितम्बर, 1885
जन्म भूमि कार्थिकापल्ली, ज़िला अलापुझा, केरल
मृत्यु 27 अप्रैल, 1930
अभिभावक केसवन चन्नर
पति/पत्नी नारायणी अम्मा
कर्म भूमि केरल
कर्म-क्षेत्र समाज सेवा
भाषा मलयालम, अंग्रेज़ी और संस्कृत
प्रसिद्धि समाज सुधारक
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख गाँधी जी, वायकोम सत्याग्रह
अन्य जानकारी टी. के. माधवन को 1924 के वायकोम सत्याग्रह के नेता के रूप में प्रसिद्धि मिली। इस सत्याग्रह के दौरान माधवन को जेल भी जाना पड़ा।[1]
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टी. के. माधवन (अंग्रेज़ी: T. K. Madhavan, जन्म- 2 सितम्बर,1885, कार्थिकापल्ली, ज़िला अलापुझा, केरल; मृत्यु- 27 अप्रैल, 1930) केरल के प्रसिद्ध समाज-सुधारक एवं पत्रकार थे। उन्होंने बहुत सी कुरितियों के खिलाफ आंदोलन किए थे।

परिचय

टी. के. माधवन का जन्म मध्य त्रावनकोर (कार्थिकापल्ली, ज़िला अलापुझा, केरल) में 1885 ई. में हुआ था। उनके पिता केसवन चन्नर थे। उनकी औपचारिक शिक्षा अधिक नहीं हो पाई, पर अपने अध्यवसाय से उन्होंने मलयालम के साथ-साथ अंग्रेज़ी और संस्कृत का भी अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। वह केरल के प्रसिद्ध समाज-सुधारक और हरिजन नेता थे। उनके ऊपर दादा भाई नौरोजी, स्वामी विवेकानंद, गाँधी जी आदि के विचारों का और ‘श्रीमद्भागवद्गीता’ का भी बहुत प्रभाव था।[1]

वायकोम सत्याग्रह

वायकोम सत्याग्रह केरल के पिछड़े वर्ग के लोगों का संघर्ष था, जो दक्षिण केरल के एक शहर वायकोम की मंदिर की सड़कों पर चलने का अपना अधिकार स्थापित करने के लिए था। अनुसूचित जाति के लोगों के साथ उन दिनों जिस प्रकार का भेद-भाव किया जाता था, इसका अनुभव माधवन को बाल्यकाल से ही अपनी पाठशाला से हो गया था। इस भेद-भाव को देखकर ही उन्होंने इसे मिटाने के प्रयत्न में अपना जीवन लगाने का निश्चय किया।

1924 के वायकोम मंदिर सत्याग्रह के नेता के रूप में माधवन को प्रसिद्धि मिली। हरिजनों के मंदिर प्रवेश को लेकर यह सत्याग्रह 20 महीनों तक चला। इसमें माधवन गिरफ़्तार भी किए गये। [1]

गाँधीजी से मुलाकात

टी. के. माधवन ने तिरुनेलवेली में गांधी से मुलाकात की और वायकोम की यात्रा करने के लिए उन्हें मनाया। गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एजेंडे में इस मुद्दे को शामिल करने के लिए सहमत हुए। मार्च 1925 में गाँधी जी वायकोम पहुँचे। वे माधवन के साथ ठहरे और सत्याग्रह आंदोलन सफलता के साथ समाप्त हुआ।

पत्रकार

प्रभावशाली वक्ता माधवन पत्रकार भी थे। उन्होंने मलयालम के दो पत्रों का संपादन किया और अनेक पुस्तकों की रचना की।

निधन

टी. के. माधवन का निधन 27 अप्रैल, 1930 को उनके निवास पर हुआ था। उनके सम्मान में चेत्तीकुलंगरा में एक स्मारक बनाया गया। 1964 में नांगीरकुलंगरा में उनके नाम पर टी. के. माधवन मेमोरियल कॉलेज की स्थापना की गई थी।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 341 |

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