अंगिका: Difference between revisions

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Latest revision as of 07:46, 18 January 2020

चित्र:Disamb2.jpg अंगिका एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- अंगिका (बहुविकल्पी)

अंगिका प्राचीन अंग महाजनपद अर्थात् भारत के उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण बिहार, झारखंड, बंगाल, असम, उड़ीसा और नेपाल के तराई के इलाक़ों में मुख्य रूप से बोली जाने वाली भाषा है। लगभग चार से पाँच करोड़ लोग अंगिका भाषा को मातृभाषा के रूप में प्रयोग करते हैं। यह प्राचीन भाषा कम्बोडिया, वियतनाम, मलेशिया आदि देशों में भी प्राचीन समय से बोली जाती रही है। प्राचीन समय में अंगिका भाषा की अपनी एक अलग 'अंग लिपि' भी थी।

नामकरण

प्राचीन अंग प्रदेश की भाषा को 'अंगिका' कहा जाता है। अंगिका भाषी भारत में लगभग सात लाख लोग हैं। इस भाषा का नाम 'भागलपुरी' इसकी स्थानीय राजधानी के कारण पड़ा। इसके अलावा अंगिका को 'अंगी', 'अंगीकार', 'चिक्का चिकि' और 'अपभ्रन्षा' भी कहा जाता है। अंगिका की उपभाषाएं हैं- 'देशी', 'दखनाहा', 'मुंगेरिया', 'देवघरिया', 'गिध्होरिया', 'धरमपुरिया'। अक्सर भाषा का नामकरण उसके बोले जाने के स्थान से होता है, यही हम यहाँ भी देखते हैं।[1]

बोलने वालों की संख्या

अंगिका 'आर्य-भाषा परिवार' की सदस्य है और भाषाई तौर पर बांग्ला, असमिया, उड़िया और नेपाली, ख्मेर भाषा से इसका काफ़ी निकट संबंध है। प्राचीन अंगिका के विकास के शुरुआती दौर को 'प्राकृत' और 'अपभ्रंश' के विकास से जोड़ा जाता है। लगभग 4 से 5 करोड़ लोग अंगिका को मातृ-भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं और इसके प्रयोगकर्ता भारत के विभिन्न हिस्सों सहित विश्व के कई देशों मे फैले हुए हैं।

साहित्यिक भाषा

भारत की अंगिका को साहित्यिक भाषा का दर्जा हासिल है। अंगिका साहित्य का अपना समृद्ध इतिहास रहा है और आठवीं शताब्दी के कवि 'सरह' या 'सरहपा' को अंगिका साहित्य में सबसे ऊँचा दर्जा प्राप्त है। सरहपा को हिन्दी एवं अंगिका का आदि कवि माना जाता है। 'भारत सरकार' द्वारा अंगिका को जल्द ही भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में भी शामिल किया जाएगा।

संकटग्रस्त भाषा

आज विश्व में बहुतेरी भाषाएँ मरने के कगार पर हैं। 96 प्रतिशत भाषाएँ मात्र चार प्रतिशत आबादी द्वारा बोली जाती हैं। 500 भाषाओं को बोलने वालों की संख्या 100 ही है; 1500 भाषाओं को 1000 से कम लोग बोलते हैं और 5000 भाषाओं को 100,000 से कम बोलने वाले ही हैं। धीरे-धीरे एक के बाद एक मरते जा रहे हैं। न केवल भाषाएँ मरती हैं; एक भाषा के साथ सामुदायिक इतिहास, बौद्धिक और सांस्कृतिक विविधता, सांस्कृतिक पहचान भी मर जाती है। यह क्षति सबकी क्षति है; एक तरह से स्थायी क्षति। क़रीब 3000 भाषाएँ अगले 100 साल में मर जाएँगी। हर दो सप्ताह में एक भाषा मर रही है। जितनी अधिक विविधता है, उतना ही अधिक खतरा है। और इसलिए भारतीय भाषाएँ भी उसकी जद में है। 197 भाषाएँ भारत में मरने के कगार पर हैं और उनमें से एक है 'अंगिका'।[2]

हालाँकि अंगिका मुश्किल में दिखती है, लेकिन स्थिति विकट नहीं है। बहुतेरे क्षेत्र में काम हो रहे हैं। अंगिका में साहित्य उपलब्ध है। लोग लिख रहे हैं। कुछेक फ़िल्में भी बनी हैं। शब्दकोश आदि भी तैयार किए गए हैं। लेकिन इस बदलते परिवेश में सबसे ज़रूरी है, अंगिका को सूचना-प्रौद्योगिकी के पटल पर लाना, जिससे डिजिटल युग में हम अंगिका की मौजूदगी को रेखांकित कर सकें।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भागलपुरी या अंगिका.....एक विवेचना (हिन्दी) लहरें। अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2014।
  2. तो क्या अंगिका मर जायेगी (हिन्दी) क्रमश:। अभिगमन तिथि: 22 जुलाई, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख