सोजत

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सोजत राजस्थान के पाली ज़िले में सूकड़ी नदी के किनारे स्थित एक शहर है। यह इसी नाम से एक तहसील भी है। सोजत राष्ट्रीय राजमार्ग 14 पर स्थित है। प्राचीन काल में यह शहर 'तम्रावती' के नाम से जाना जाता था। यह स्थान सेजल माता मन्दिर, चतुर्भुज मन्दिर और चामुण्डा माता मन्दिर जैसे तीर्थों और एक क़िले के लिये जाना जाता है। हिना की खेती इस शहर का प्रमुख आकर्षण है, जिसके लेप का उपयोग शरीर के हिस्सों पर अस्थाई डिज़ाइन बनाकर श्रृंगार के लिये किया जाता है।

ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी

प्राचीन ऐतिहासिक एवं धार्मिक नगरी सोजत के रक्त रंजित इतिहास के साथ-साथ धार्मिक आस्था के बीच परवान चढ़ती अध्यात्म की ज्योति तथा सुर्ख मेहन्दी की आभा ने इसे अन्तराष्ट्रीय मानचित्र पर प्रसिद्धि दिलवाई है। यह भूमि देवताओं की क्रीड़ा स्थली एवं ऋषि मुनियों की तपोभूमि, प्राचीन सभ्यताओ की समकालीन रही है। शास्त्रों में 'शुद्धदेती' के नाम से प्रसिद्ध इस नगरी के नाम का सफर भी बड़ा ही रोमांचक एवं रोचक रहा है। आबू और अजमेर के बीच किराड़ू लोद्रवा के पुंगल राज के दौरान पंवारों का यहां पर भी राज था तथा राजा त्रंबसेन त्रववसेन सोजत पर राज करता था। तब इस नगरी का नाम 'त्रंबावती' हुआ करता था।[1]

किंवदंती

राजा त्रवणसेन के सोजत सेजल नाम की एक 8-10 वर्षीय पुत्री थी, जो देवताओं की कला को प्राप्त कर शक्ति का अवतार हुई। यह बालिका आधी रात को पोल का द्वार बंद होने के बाद देवी की भाखरी पर चौसठ जोगनियों के पास रम्मत करने जाती थी। राजा को शक होने पर उसने अपने प्रधान सेनापति बान्धर हुल को उसका पीछा करने का निर्देश दिया। एक दिन सेजल के रात्रि में बाहर निकलने पर बांधर उसके पीछे-पीछे भाखरी तक गया। तब जोगनियों ने कहा आज तो तूं अकेली नहीं आई है। तब सेजल ने नीचे जाकर देखा तो उसे सेनापति नजर आया। सेजल ने कुपीत होकर उसे शाप देना चाहा, तब वह उसके चरणों में गिर गया तथा बताया कि वह तो उनके पिताजी के आदेश से आया है। इस पर उसने बांधर को आशीर्वाद दिया तथा अपने पिता को शाप दिया।

बालिका ने बांधर से कहा कि आज से राजा का राज तुझे दिया। तू इस गांव का नाम मेरे नाम सोजत पर रखकर अमुक स्थान पर मेरी स्थापना करके पूजा करना। इतना कहकर वह देवस्वरूप बालिका जोगनियों के साथ उड़ गई। राजा को जब यह बात पता चली तो दु:खी होकर उसने अपने प्राण त्याग दिए। इसी बांधर हुल ने सेजल माता का मंदिर एवं भाखरी के नीचे चबूतरा तथा पावता जाव के पीछे बाघेलाव तालाब खुदवाया। इसके बाद सोजत पर कई वर्षों तक हुलों का राज रहा, जिसमें हरिसिंह हुल, हरिया हुल नाम से प्रसिद्ध राजा हुए। इसके बाद में मेवाड़ के राणा ने इसे सोनगरा एवं सींघलों को दे दिया।

विभिन्न शासकों का अधिकार

सन 1588 ई. में सोजत रावगंगा के अधिकार में रहा। उसके बाद उसके पुत्र राव मालदेव तथा उसके बाद राव चन्द्रसेन का राजतिलक हुआ। सन 1621 में अकबर का अधिकार सोजत पर हो गया। राव कला रांमोत के बाद क्रमश: सोजत पर राव सुरताण जैमलोत, संवत 1665 में राजा सूरज सिंह 1676 में राजा गजसिंह, 1694 में जसवन्त सिंह, रायसिंह का राज रहा। मोटा राजा उदयसिंह ने 1641 में इसे नवाब ख़ानख़ाना को दिया। 1656 मेें शक्ति सिंह को एक वर्ष के लिए दिया गया। 1664 में जहाँगीर ने इसे करम सेन उग्र से नोत को दिया। महाराजा विजय सिंह के समय सोजत में कई निर्माण कार्य हुए।

दर्शनीय स्थल

यहाँ आने वाले पर्यटक 'पीर मस्तान की दरगाह', 'रामदेवजी का मन्दिर', सोजत के देसुरी और कुकरी क़िलों को भी देख सकते हैं। यह शहर हिन्दू देवता भगवान कृष्ण के प्रति अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाली कवयित्री मीराबाई की जन्मस्थली भी है।[2]

हिना की कृषि

हिना की कृषि इस शहर का प्रमुख आकर्षण है। भारतीय महिलायें इस पौधे की पत्तियों को पतला पीस कर इसके लेप को अपने हाथों और पैरों पर विभिन्न डिज़ाइनों में लगाती हैं। सामान्यतः स्त्रियाँ विवाह और उत्सवों, जैसे- विभिन्न शुभ अवसरों पर इसे मेंहदी के रूप में प्रयोग करती हैं। यह पारम्परिक कला अब विश्व प्रसिद्ध हो गई है और अन्तर्राष्ट्रीय फैशन जगत में भी इसे अपनाया गया है। इसलिये कई विदेशी पर्यटक माउन्ट आबू जाते समय इस जगह भी आते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सोजत का इतिहास (हिन्दी) सोजत सिटी ब्लॉग स्पॉट। अभिगमन तिथि: 20 फरवरी, 2015।
  2. सोजत, पाली (हिन्दी) नेटिव प्लेनेट। अभिगमन तिथि: 20 फरवरी, 2015।

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