Difference between revisions of "अनार्य"
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(2 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
*'''अनार्य''' का प्रयोग प्रजातीय और नैतिक दोनों अर्थो में होता है अर्थात वह व्यक्ति जो [[आर्य]] प्रजाति का न हो, अनार्य कहलाता है। आर्येतर अर्थात् [[किरात]] ([[मंगोल]]), हब्शी (नीग्रो), सामी, हामी, आग्नेय (ऑस्ट्रिक) आदि किसी मानव प्रजाति का व्यक्ति। | *'''अनार्य''' का प्रयोग प्रजातीय और नैतिक दोनों अर्थो में होता है अर्थात वह व्यक्ति जो [[आर्य]] प्रजाति का न हो, अनार्य कहलाता है। आर्येतर अर्थात् [[किरात]] ([[मंगोल]]), हब्शी (नीग्रो), सामी, हामी, आग्नेय (ऑस्ट्रिक) आदि किसी मानव प्रजाति का व्यक्ति। | ||
− | + | *ऐसे [[प्रदेश]] को भी अनार्य कहते हैं जहाँ आर्य न बसते हों, इसलिए म्लेच्छ को भी कभी-कभी अनार्य कहा जाता है। | |
− | *ऐसे प्रदेश को भी अनार्य कहते हैं जहाँ आर्य न बसते हों, इसलिए म्लेच्छ को भी कभी-कभी अनार्य कहा जाता है। | + | *अनार्य प्रजाति की भाँति अनार्य [[भाषा]], अनार्य [[धर्म]] अथवा अनार्य [[संस्कृति]] का प्रयोग भी मिलता है। |
− | *अनार्य प्रजाति की भाँति अनार्य भाषा, अनार्य धर्म अथवा अनार्य संस्कृति का प्रयोग भी मिलता है। | + | *नैतिक अर्थ में अनार्य का प्रयोग असामान्य, ग्राम्य, नीच, [[आर्य]] के लिए अयोग्य, अनार्य के लिए ही अनुरूप आदि के अर्थ में होता है।<ref>{{cite book | last = पांडेय | first = राजबली | title = हिन्दी विश्वकोश | edition = 1973 | publisher = नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी | location = भारतडिस्कवरी पुस्तकालय | language = [[हिन्दी]] | pages = पृष्ठ सं 115-116 | chapter = खण्ड 1 }}</ref> |
− | *नैतिक अर्थ में अनार्य का प्रयोग | ||
− | {{लेख प्रगति | + | |
− | |आधार= | + | '''अनार्य''' ([[विशेषण]]) [न. त.] |
− | |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 | + | |
− | |माध्यमिक= | + | *दुर्जन, दुःशील, अप्रतिष्ठित, नीच, अधम-'''यैः''' |
− | |पूर्णता= | + | :::::::1. जो [[आर्य]] न हो |
− | |शोध= | + | :::::::2. वह देश जहाँ आर्य न हों |
− | }} | + | :::::::3. [[शूद्र]] |
+ | :::::::4. म्लेच्छ | ||
+ | :::::::5. कमीना<ref>{{पुस्तक संदर्भ|पुस्तक का नाम=संस्कृत-हिन्दी शब्दकोश|लेखक=वामन शिवराम आप्टे|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=कमल प्रकाशन, [[नई दिल्ली]]-110002|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=39|url=|ISBN=}}</ref> | ||
+ | |||
+ | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{जातियाँ और जन जातियाँ}} | {{जातियाँ और जन जातियाँ}} | ||
− | [[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | + | [[Category:जातियाँ और जन जातियाँ]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]][[Category:संस्कृत हिन्दी शब्दकोश]][[Category:संस्कृत शब्दकोश]] |
__INDEX__ | __INDEX__ |
Latest revision as of 08:36, 9 September 2023
- anary ka prayog prajatiy aur naitik donoan artho mean hota hai arthat vah vyakti jo ary prajati ka n ho, anary kahalata hai. aryetar arthath kirat (mangol), habshi (nigro), sami, hami, agney (aaustrik) adi kisi manav prajati ka vyakti.
- aise pradesh ko bhi anary kahate haian jahaan ary n basate hoan, isalie mlechchh ko bhi kabhi-kabhi anary kaha jata hai.
- anary prajati ki bhaanti anary bhasha, anary dharm athava anary sanskriti ka prayog bhi milata hai.
- naitik arth mean anary ka prayog asamany, gramy, nich, ary ke lie ayogy, anary ke lie hi anuroop adi ke arth mean hota hai.[1]
anary (visheshan) [n. t.]
- durjan, duahshil, apratishthit, nich, adham-yaiah
|
|
|
|
|