अनवरी औहदुद्दीन अबीवर्दी
अनवरी औहदुद्दीन अबीवर्दी का जन्म खुरासान के अंतर्गत खावराँ जंगल के पास अबीवर्द स्थान में हुआ था। इसने तूस के जाम: मंसूरिय: में शिक्षा प्राप्त की और अपने समय की बहुत सी विद्याओं में पारंगत हो गया। शिक्षा पूरी होने पर यह कविता करने लगा और इसे सेलजुकी सुलतान खंजर के दरबार में प्रश्रय मिल गया। आरंभ में खावराँ के संबंध से पहले इसने 'खावरी' उपनाम रखा, फिर 'अनवरी'। जीवन का अंतिम समय इसने एकांत में विद्याध्ययन करने में बलख में व्यतीत किया। इसकी मृत्यु के सन् के संबंध में विभिन्न मत पाए जाते हैं, पर रूसी विद्वान् जुकोव्स्की की खोज से इसका प्रामाणिक मृत्युकाल सन् 585 हि. तथा सन् 587 हि. ( सन् 1989 ई. तथा सन् 1991 ई.) के बीच जान पड़ता है।
अनवरी की प्रसिद्धि विशेषकर इसके कसीदों पर है, पर इसने दूसरे प्रकार की कविताएँ, जैसे गज़ल रुबाई, हजो आदि की भी रचना की है। इसकी काव्यशैली बहुत क्लिष्ट समझी जाती है। इसकी कुछ कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद भी हुआ है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 112,113 |
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