बुन्देली बोली: Difference between revisions
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Latest revision as of 08:53, 14 October 2011
- बुन्देली राजपूतों के कारण मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की सीमा के झाँसी, छतरपुर, सागर आदि तथा आसपास के भागों को बुन्देलखंड कहते हैं।
- वहीं की बोली बुन्देली या बुन्देलखंडी है।
- इसका क्षेत्र झाँसी, जालौन, हमीरपुर, ग्वालियर, भोपाल, ओरछा, सागर, नृसिंहपुर, सिवानी, होशंगाबाद तथा आसपास के क्षेत्र है।
- बुन्देली का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
- बुन्देली में लोक- साहित्य काफ़ी है जिसमें इसुरी के फाग बड़े प्रसिद्ध हैं।
- कहा जाता है कि हिन्दी प्रदेश की लोकगाथा 'आल्हा' जिसे हिन्दी साहित्य में भी स्थान मिला है, मूलत: बुन्देली की एक उपबोली बनाफरी में लिखा गया था।
- इसकी अन्य उपबोलियाँ राठौरी, लोधांती आदि हैं।
- ब्रज के ऐ और औ का ए, ओ (ओर, जेसो), अंत्य अल्प्राणीकरण (भूक, हात्, दूद , जीब), स का छ (सीढ़ी, छीड़ी), च का स (साँचे- साँसे), कर्म- सम्प्रदान में 'को' के स्थान पर खों, खाँ, खँ तथा 'के लिए' के स्थान पर 'के लाने' का प्रयोग, क्रियार्थक संज्ञा में 'न' तथा 'ब' वाले दोनों रूप (मारब, मारन) इसकी कुछ मुख्य विशेषताएँ हैं।
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