नारायण तीर्थ: Difference between revisions
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'''नारायण तीर्थ''' का उल्लेख [[महाभारत]] के [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] में हुआ है, जो प्रसंग के अनुसार [[गंडक नदी]] ([[बिहार]]) के तटवर्ती क्षेत्र में अवस्थित एक पौराणिक तीर्थ स्थान जान पड़ता है। यहाँ शालग्राम [[विष्णु]] का [[तीर्थ स्थान]] माना गया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=493|url=}}</ref> | '''नारायण तीर्थ''' का उल्लेख [[महाभारत]] के [[वनपर्व महाभारत|वनपर्व]] में हुआ है, जो प्रसंग के अनुसार [[गंडक नदी]] ([[बिहार]]) के तटवर्ती क्षेत्र में अवस्थित एक पौराणिक तीर्थ स्थान जान पड़ता है। यहाँ शालग्राम [[विष्णु]] का [[तीर्थ स्थान]] माना गया है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=493|url=}}</ref> | ||
*आज भी गंडकी नदी में पाए जाने वाले गोल कृष्ण वर्ण के पत्थरों को शालग्राम के रूप में [[पूजा]] जाता है। | *आज भी [[गंडकी नदी]] में पाए जाने वाले गोल कृष्ण वर्ण के पत्थरों को शालग्राम के रूप में [[पूजा]] जाता है। | ||
*नारायण तीर्थ में एक पुण्य कूप का भी वर्णन है- | *नारायण तीर्थ में एक पुण्य कूप का भी वर्णन है- | ||
<blockquote>'ततो गच्छेत राजेन्द्र स्थानं नारायणस्य च। सदा संनिहितो यत्र विष्णुर्वसति भारत। यत्र ब्रह्मादयो देवा ऋषयश्च तपोधना:, आदित्या वसवो रुद्रा जनार्दनमुपासते। शालग्राम इति ख्यातो विष्णुरद्भुतकर्मक:, अभिगम्य त्रिलोकेशं वरदं विष्णुमव्ययम्। अश्वमेधमवाप्नोति विष्णुलोकं च गच्छति। तत्रोदपानं धर्मज्ञ सर्वपापप्रमोचनम् समुद्रास्तत्र चत्वार: कूपे संनिहिता: सदा'।<ref>[[वनपर्व महाभारत|महाभारत वनपर्व]], 84, 122- 123- 124- 125- 126.</ref></blockquote> | <blockquote>'ततो गच्छेत राजेन्द्र स्थानं नारायणस्य च। सदा संनिहितो यत्र विष्णुर्वसति भारत। यत्र ब्रह्मादयो देवा ऋषयश्च तपोधना:, आदित्या वसवो रुद्रा जनार्दनमुपासते। शालग्राम इति ख्यातो विष्णुरद्भुतकर्मक:, अभिगम्य त्रिलोकेशं वरदं विष्णुमव्ययम्। अश्वमेधमवाप्नोति विष्णुलोकं च गच्छति। तत्रोदपानं धर्मज्ञ सर्वपापप्रमोचनम् समुद्रास्तत्र चत्वार: कूपे संनिहिता: सदा'।<ref>[[वनपर्व महाभारत|महाभारत वनपर्व]], 84, 122- 123- 124- 125- 126.</ref></blockquote> |
Latest revision as of 08:45, 5 September 2012
नारायण तीर्थ का उल्लेख महाभारत के वनपर्व में हुआ है, जो प्रसंग के अनुसार गंडक नदी (बिहार) के तटवर्ती क्षेत्र में अवस्थित एक पौराणिक तीर्थ स्थान जान पड़ता है। यहाँ शालग्राम विष्णु का तीर्थ स्थान माना गया है।[1]
- आज भी गंडकी नदी में पाए जाने वाले गोल कृष्ण वर्ण के पत्थरों को शालग्राम के रूप में पूजा जाता है।
- नारायण तीर्थ में एक पुण्य कूप का भी वर्णन है-
'ततो गच्छेत राजेन्द्र स्थानं नारायणस्य च। सदा संनिहितो यत्र विष्णुर्वसति भारत। यत्र ब्रह्मादयो देवा ऋषयश्च तपोधना:, आदित्या वसवो रुद्रा जनार्दनमुपासते। शालग्राम इति ख्यातो विष्णुरद्भुतकर्मक:, अभिगम्य त्रिलोकेशं वरदं विष्णुमव्ययम्। अश्वमेधमवाप्नोति विष्णुलोकं च गच्छति। तत्रोदपानं धर्मज्ञ सर्वपापप्रमोचनम् समुद्रास्तत्र चत्वार: कूपे संनिहिता: सदा'।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 493 |
- ↑ महाभारत वनपर्व, 84, 122- 123- 124- 125- 126.